9 नवम्बर, 2020
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 अपनी पूर्णाहुति पर है, कल यानि 10 नवम्बर, 2020 को चुनाव परिणाम भी आ जायेंगे, और सरकार भी बन जाएगी, जिनको बहुमत मिलेगी। आम तौर पर होता भी यही है, कुछ भी नहीं नया नहीं है, यही लोकतंत्र है, यही लोकतंत्र की खूबसूरती है, जनता जिसको चाहे राजा बना दे, जिसको चाहे गद्दी से बाहर कर दे।
बिहार के चुनाव में मुख्यतः 2 ही गठबंधन थे, एक तेजस्वी यादव जैसे नौसिखिए की रहनुमाई में महागठबंधन एवं दूसरा नीतीश कुमार जैसे अनुभवी नेता के नेतृत्व में राजग। लेकिन और भी पार्टियाँ थी, छोटी छोटी जिसका काम सिर्फ पक्ष या विपक्ष के वोट काटने से ज्यादा नहीं होता है, जैसे ओवैसी की पार्टी, कुशवाहा की पार्टी, पप्पू यादव की पार्टी। ये तो शुक्र करो कि नीतीश जी ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और भाजपा ने अनिल सहनी की पार्टी को अपना दामन थमा दिया, वरना वो भी कुछ हजार वोट काटने की जुगत में लगे रहते। ये छोटी छोटी पार्टियाँ खुद अपने लिए बेशक 2 - 4 सीट भी न जीत पाएं, लेकिन कुछ हजार वोट काट कर बड़ी पार्टियों का खेल जरूर बिगाड़ देते हैं। अगर जीत हार का अंतर कम हो तो समझिए छोटी पार्टी ने वोट काटा है। लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता और छोटी पार्टियों के उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो जाती है।
इस बार तो छोटे मौसम वैज्ञानिक भी अकेले कूद पड़े हैं चुनावी मैदान में, जेडीयू के खिलाफ। उनका विरोध सिर्फ जेडीयू से है, कहते हैं कि जेडीयू ने बिलकुल बढ़िया काम नहीं किया है पिछले 15 साल में, वैसे अगर उनको 40 सीट दे देती भाजपा लड़ने के लिए तो जेडीयू बहुत बढ़िया काम कर रही होती और नीतीश कुमार से बेहतर मुख्यमंत्री नहीं मिला होता आज तक बिहार को। देखते हैं उनकी पार्टी सिर्फ वोट कटवा सिद्ध होती है या कुछ सीट का भी जुगाड़ कर पाती है। वैसे जानकारों का मानना है कि दहाई अंक भी पाना मुश्किल है इस पार्टी के लिए, हकीकत तो कल ही पता लगेगा।
हमेशा की तरह एग्जिट पोल ने इस बार भी पक्ष को चिंता और विपक्ष को ख़ुशी का कारण दे दिया है। अभी से ही नीतीश बाबू झोला उठाकर निकलने की तैयारी में हो न हो, लेकिन तेजस्वी भैया गद्दी पर बैठने को उतारू हो गए हैं, एग्जिट पोल का रिजल्ट देखकर ही कार्यकर्ताओं से संयम बनाने को कह रहे हैं, मानो ये जीत का माला पहन लिए हों और कार्यकर्त्ता जुलुस निकालने को बेताब हो।
एग्जिट पोल का नतीजा शायद ही कभी सही होता हो, लेकिन चुनाव परिणाम आने तक पार्टियों की धड़कने जरूर बढ़ा देता है। एग्जिट पोल की माने तो लालू परिवार की सत्ता में वापसी हो रही है, धमाकेदार तो नहीं लेकिन जैसे तैसे वापसी हो रही है। लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि नीतीश जी की विदाई क्यों हो रही है ? तेजस्वी भैया में क्या दीख गया वोटरों को, और नीतीश बाबू से क्या भूल हो गयी ? लालू परिवार के राज का जिनको अनुभव रहा हो, क्या वो उसकी वापसी कभी चाहेंगे ? फिर क्यों सत्ता में वापसी हो रही है ? भूल गए बेरोजगारी के दिन या भूल गए सड़कों के गड्ढे ? भूल गए नित नए होते अपराध या भूल गए स्वास्थ्य सेवा का बूरा हाल ?
या फिर नीतीश जी ने आते ही रोजगार और विकास की जो बयार बहाई, उससे सर्दी जुकाम हो गया है ? आखिर कौन हैं वो लोग जिनका सर्दी जुकाम ठीक नहीं हो रहा ? रिफाइंड को तरसते को अगर शुद्ध घी दे दिया जाए तो बदहजमी हो जाती है। आखिर कौन हैं वो लोग वर्तमान सरकार की विदाई चाहते हैं ? कौन हैं जिनको शुद्ध घी हजम नहीं हो रहा ? इन सब बातों पर विचार किए जाने की जरुरत है।
आज की रात वाकई में बोझिल है, चिंतन मनन की रात है। न पक्ष को नींद आएगी आज की रात न ही विपक्ष को। नीतीश जी सोचेंगे कि गलती कहाँ हुई और तेजस्वी भैया शेरवानी की डिजाइन के बारे में सोचेंगे। और बिहार की जनता !!!!!! वो जगी है क्या ???
हाँ कल रात जरूर नींद आएगी सबको, पक्ष को भी विपक्ष को भी और जनता की तो बात ही न पूछिए। बस इंतजार कीजिए कल की सुबह का।
0 टिप्पणियाँ:
टिप्पणी पोस्ट करें