4 नवम्बर, 2020
लोकतान्त्रिक जनता पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने शुरुआत फिल्म लाइन से की थी, अब लगातार २ बार सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। कहा जाता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन से अलग होकर राजग से मिलने का फैसला इनका ही था। पिता की तरह ही मौसम वैज्ञानिक साबित हुए हैं अभी तक। शायद इनके उसी दूरदर्शी फैसले का नतीजा था कि राजग के दलों में न्यूनतम सीट होने के बावजूद भी इनके पिताजी मंत्री पद पर आसीन होने में कामयाब रहे।
पिछली बार विधानसभा चुनाव में सुशासन बाबू, जंगल राज वाले के साथ थे तो लोजपा को अच्छी तवज्जो मिली थी और पूरे 40 सीट मिले थे इनको लड़ने के लिए, ये बात और है कि सिर्फ 2 सीट पर ही जीत नसीब हुई थी। इस बार सुशासन बाबू की घर वापसी हो गयी, बिहार की कुल सीट को दो भागों में बाँट लिया जेडीयू और भाजपा ने। 122 सीट सुशासन बाबू की पार्टी और 121 सीट भाजपा के हिस्से आयी। जेडीयू ने अपने हिस्स्से में से 7 सीट जीतन राम मांझी जी की पार्टी को दे दिया और 115 सीट पर लड़ रही है। अब चिराग बाबू को पहले से ही इल्म था कि पिछली बार की तरह दिल खोलकर सीट नहीं दे पायेगी भाजपा इस बार के चुनाव में। इसलिए दुरी बनाने वाले बयान भी देते रहे, लेकिन बाबू जी केंद्र में मंत्री थे, तो सीधे भारतीय जनता पार्टी पर हमला करने से बचते रहे, लेकिन नीतीश बाबू के प्रति कोई मुरव्वत नहीं दिखाई, उनके शासन को कुशासन बताने वाले बयान जारी करते रहे।
अब जब, मन माफिक सीट नहीं मिली तो चिराग जी, अकेले निकल पड़े पार्टी को रौशन करने। उनकी सुशासन बाबू से अदावत तो जग जाहिर है, जिसका प्रदर्शन वो गाहे बगाहे करते रहते थे, लेकिन भाजपा से दामन कैसे झटक लेते ? पिताजी, मृत्युपर्यन्त केंद्र सरकार में मंत्री रहे, और विधानसभा चुनाव 2020 के बाद पिताजी वाला मंत्रिपद इनको ही मिलने की उम्मीद ही नहीं बल्कि पूरी निश्चिंतता है। इसलिए मोदी जी और भाजपा की तारीफ करते रहे, और जेडीयू, नीतीश जी की बुराई करते रहे। मौसम विज्ञान के इतने धुरंधर कि भाजपा के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारे सिर्फ जेडीयू या हिंदुस्तान आवामी मोर्चा के खिलाफ उम्मीदवार उतारे।
इतने नौसिखिए नहीं हैं अपने चिराग बाबू, आखिर मौसम वैज्ञानिक के सुपुत्र हैं और शिक्षा भी बेहतरीन पाई है , बिलकुल नाप तौल के सुरक्षित कदम उठा रहे हैं। अब अलग होकर चुनाव न लड़े तो क्या करें ? 40 सीट पर भी नहीं लड़े तो कितने पर लड़ें, 10 पर ? पिछली बार 40 पर लड़े थे तो 2 सीट जीते थे, जबकि 20 पर लड़ते तो शायद 2 सीट भी हार जाते। कब तक आखिर भाजपा और जेडीयू के पिछलग्गू बने रहते और उनके दिए हुए सीटों पर आश्रित रहते ? उनके बाबू जी के समकालीन लालू जी और नीतीश बाबू अपनी पार्टी को एक अच्छी ऊंचाई पर ले गए 15 - 15 साल बिहार की सत्ता पर आसीन भी रहे, और इनके बाबू जी ने पार्टी को कैसी ऊंचाई दी ? केंद्र सरकार किसी की भी हो, बस अपने लिए मंत्रीपद पाने में कामयाब रहे, यही उनकी उपलब्धि रही। सो चिराग बाबू, कुछ नया करने के लिए निकल पड़े हैं।
अब थोड़ा नफा नुकसान की बात कर लिए जाए। चिराग बाबू के पास खोने के लिए क्या है ? खुद सांसद हैं, चूँकि भाजपा और मोदी जी से बिगाड़ नहीं किये हैं तो पिताजी वाली कुर्सी जरूर मिलेगी। विधानसभा में उनकी कुल जमा 2 विधायक हैं। तो क्या होगा ? 2 से ज्यादा सीट पाए तो 50 % से ज्यादा का फायदा होगा। अगर 1 सीट पाए तो आधे का नुकसान। अगर एक भी सीट नहीं मिली, जिसकी बहुत कम ही गुंजाईश है, तो 2 सीट का नुकसान होगा। इसलिए अगर 2 या उससे ज्यादा सीट मिली तो चिराग भाई की जय जयकार होगी। खोने के लिए सिर्फ 2 सीट है और पाने के लिए 134 सीट है। मंत्रिपद तो दोनों ही स्थिति में है। इससे बेहतर दाँव कुछ भी नहीं हो सकता है। अभी चिराग पासवान के सामने पूरी जिंदगी पड़ी है, अभी रिस्क नहीं लेंगे तो कब लेंगे ? अगर तक़दीर ने साथ दे दिया और ये 10 से ज्यादा सीट पा गए तो एक मंत्री पद बिहार विधानसभा में भी सुरक्षित कर लेंगे अपनी पार्टी के लिए।
अगर नीतीश बाबू के सितारे गर्दिश में हुए और इनको 50 के आस पास सीट मिल गयी तो मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। मतलब, एक हाथ में केंद्र का मंत्री पद है, दूसरे हाथ में खोने के लिए 2 सीट और पाने के लिए मुख्यमंत्री पद है।
अब आखिरी मतदान 7 नवंबर 2020 को है और परिणाम 10 नवम्बर 2020 को आएंगे। तभी पता चलेगा कि चिराग बाबू के नाम के आगे मंत्री लगेगा या मुख्यमंत्री।
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