आम तौर पर जब किसी की मौत होती है तो उसके परिजन कई दिनों तक होश हवास खो देते हैं। अगर पुरुष की मौत हो तो उसकी पत्नी इस अचानक सदमे को झेलने में सक्षम नहीं होती है, और कई दिनों तक विलाप करती रहती है। उसको सुध बुध ही नहीं रहती, बस दिन रात पति का वियोग सताता रहता है। अगर पति की मृत्यु प्राकृतिक न होकर उसकी जघन्य हत्या हुई हो तो उसका दर्द कई गुना बढ़ जाता है। जी हाँ, मैं लखनऊ में पुलिस की गोली से मृत विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी की ही बात कर रहा हूँ। पति की आकस्मिक मौत या यूँ कहिये की जघन्य हत्या के सदमे से उबर का जिस तरह से उन्होंने पूरे मामले को बुद्धिमता से संभाला, काबिल ए तारीफ है। पति के असमय जाने का दुःख, पति की अकाल मृत्यु का सदमा तो उनको जिंदगी भर रहेगा।
जीवन साथी के चले जाने की जो भावनात्मक, क्षति हुई है उसकी जीवन में कभी पूर्ति नहीं हो सकती है। लेकिन परिवार के आय में जो कमी आई है, आर्थिक क्षति हुई है वो तो पूरी करने की कोशिश की ही जा सकती है। विलाप करने, मातम मनाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है। लेकिन मामला ठंडा होने के बाद मुआवजे की रकम की मात्रा भी कम होती जाती है। उन्होंने पति की मृत्यु के बाद धैर्य नहीं खोया, जितना भी उनको उचित लगा, बड़े ही सौम्य तरीके से प्रदेश सरकार से मुआवजा माँगा और लिया भी। इस बात को लेकर कुछ नासमझ लोग सोशल मिडिया में उनकी निंदा भी कर रहे हैं। उन नासमझों को ये नहीं पता कि जाँच अपनी गति से चलेगी, जो दोषी हैं उनको सजा मिलेगी लेकिन अगर कल्पना तिवारी सिर्फ दोषी को सजा दिलाने पर ही अड़ी रहती तो आर्थिक क्षति की पूर्ति कैसे होती ?
जज्बाती होने और भावनाओं में बहने से जिंदगी नहीं कटती। एक महिला का पति चला गया इस दुनिया को छोड़कर, इससे सिर्फ भावनात्क क्षति ही नहीं हुई है, आर्थिक क्षति भी हुई है। अब दोषी को सजा मिल जाने से उनका पति वापस तो नहीं आ जाता, परन्तु मनमाफिक मुआवजा मिलने से आर्थिक क्षति पूरी नहीं हो सकती कम तो हो सकती है। इस मामले में बहुत से राजनीतिक दलों ने, विपक्षी दलों ने उनको बरगलाने की कोशिश भी की। इस मामले को राजनीतिक रंग देने की बहुत कोशिश की विपक्षी दलों ने। लेकिन बड़ी ही समझदारी से कल्पना तिवारी ने इस मामले को संभाला। विपक्षी दलों की बातों में न आते हुए प्रदेश सरकार में पूरी आस्था जताई कल्पना तिवारी ने और राजनीति करने वाले दलों को सख्ती से झाड़ भी लगाई।
अगर वह इन विपक्षियों की बातों के आकर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री की निंदा और भर्त्सना करती, तो क्या उनको मुआवजा इतनी आसानी से मिल जाता ? उन्होंने प्रदेश सरकार में आस्था जताई तो उनको मनमाफिक मुआवजा मिला, खुद मुख्यमंत्री ने उनको मिलने के लिए बुलाया और उनकी सारी माँगे मान ली।
शत शत नमन है, कल्पना तिवारी की बुद्धिमत्ता को।
जीवन साथी के चले जाने की जो भावनात्मक, क्षति हुई है उसकी जीवन में कभी पूर्ति नहीं हो सकती है। लेकिन परिवार के आय में जो कमी आई है, आर्थिक क्षति हुई है वो तो पूरी करने की कोशिश की ही जा सकती है। विलाप करने, मातम मनाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है। लेकिन मामला ठंडा होने के बाद मुआवजे की रकम की मात्रा भी कम होती जाती है। उन्होंने पति की मृत्यु के बाद धैर्य नहीं खोया, जितना भी उनको उचित लगा, बड़े ही सौम्य तरीके से प्रदेश सरकार से मुआवजा माँगा और लिया भी। इस बात को लेकर कुछ नासमझ लोग सोशल मिडिया में उनकी निंदा भी कर रहे हैं। उन नासमझों को ये नहीं पता कि जाँच अपनी गति से चलेगी, जो दोषी हैं उनको सजा मिलेगी लेकिन अगर कल्पना तिवारी सिर्फ दोषी को सजा दिलाने पर ही अड़ी रहती तो आर्थिक क्षति की पूर्ति कैसे होती ?
जज्बाती होने और भावनाओं में बहने से जिंदगी नहीं कटती। एक महिला का पति चला गया इस दुनिया को छोड़कर, इससे सिर्फ भावनात्क क्षति ही नहीं हुई है, आर्थिक क्षति भी हुई है। अब दोषी को सजा मिल जाने से उनका पति वापस तो नहीं आ जाता, परन्तु मनमाफिक मुआवजा मिलने से आर्थिक क्षति पूरी नहीं हो सकती कम तो हो सकती है। इस मामले में बहुत से राजनीतिक दलों ने, विपक्षी दलों ने उनको बरगलाने की कोशिश भी की। इस मामले को राजनीतिक रंग देने की बहुत कोशिश की विपक्षी दलों ने। लेकिन बड़ी ही समझदारी से कल्पना तिवारी ने इस मामले को संभाला। विपक्षी दलों की बातों में न आते हुए प्रदेश सरकार में पूरी आस्था जताई कल्पना तिवारी ने और राजनीति करने वाले दलों को सख्ती से झाड़ भी लगाई।
अगर वह इन विपक्षियों की बातों के आकर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री की निंदा और भर्त्सना करती, तो क्या उनको मुआवजा इतनी आसानी से मिल जाता ? उन्होंने प्रदेश सरकार में आस्था जताई तो उनको मनमाफिक मुआवजा मिला, खुद मुख्यमंत्री ने उनको मिलने के लिए बुलाया और उनकी सारी माँगे मान ली।
शत शत नमन है, कल्पना तिवारी की बुद्धिमत्ता को।
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