16 अगस्त, 2018
कल हम सभी हिंदुस्तानियों ने आज़ादी की 71वी वर्षगाँठ बड़े ही धूमधाम, हर्ष उल्लास के साथ मनाई। झंडे फहराए, मिठाइयां खाई, जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए, एक दूसरे को बधाई दी, देशभक्ति के गीत गाए और फ़ोटो खिंचवाए। आज से फिर वही पुराना रूटीन।
कल के दिन दिल्ली एवं देश के कुछ अन्य शहरों में पतंगबाजी की कला का भी जबरदस्त प्रदर्शन करते हैं कुछ लोग।करीब एक हफ्ते पहले ही नई पुरानी दुकाने पतंगों और चरखरियो से भर जाती हैं। भले ही पतंगबाजी स्वतंत्रता दिवस के दिन चरम पर हो, लेकिन शुरुआत 1 हफ्ते पहले से ही होने लगती है। पहले लोग साधारण धागों से , या फिर अपेक्षाकृत अधिक मजबूत धागों से पतंगबाजी करते थे। इसमे पतंगे ज्यादा कटती थी। बेशक पतंगबाजी, पतंग उड़ाने का नाम हो, लेकिन मजा तो पतंग काटने, कटाने में ही आता है। कटी पतंग लूटने का भी आनन्द लेते हैं कुछ लोग,जिसमे ज्यादातर बच्चे ही होते हैं।
पतंग लूटने का जुनून इस कदर सवार होता है कि गिरने पड़ने, टांग हाथ टूटने की परवाह भी नही करते ये पतंग के लूटेरे। कई बार तो पतंग लूटने के लिए आसमान की तरफ देखते हुए ऐसा दौड़ते हैं कि गाड़ी के नीचे आते आते बचते हैं। कई बार नही भी बच पाते हैं।पतंग लुटेरे का छज्जे, छत से गिरने की खबर भी आती रहती है, इन दिनों।कई बार जान तक चली जाती है। लेकिन जुनून में कमी नहीं आ रही है।
आजकल देश में सुना है विदेशी मांझे मिलने लगे हैं। इतने मजबूत कि हाथ से खींचो तो हाथ कट जाए लेकिन मांझा न टूटे। फिर भी पता नहीं कैसे ये टूट कर गिर जाते हैं, कभी जमीन पर तो कभी पेड़ो, छज्जो से अटक जाते हैं ऐसे मांझे। किसी का पैर इसमे उलझ जाए तो उसको निकालने के क्रम में पैर हाथ भी कट जाते हैं। कई बार उड़ती चिड़िया इन माँझो मे फंस पर अपना गला कटवा बैठती हैं। कई बार इंसानों के भी गले कटने की खबर आती है। सड़क पर साइकिल, मोटरसाइकिल पर जा रहे हो, अचानक से कटी पतंग गिरने लगती है, जब तक कुछ समझ पाओ, गाड़ी रोको, मांझा गले मे लिपट सकती है और गला लहूलुहान। या फिर इन सब से अनजान पीछे से आती गाड़ी ठोक देती है।
ये है पतंगबाजी की महिमा। नए मांझे ज्यादा मजबूत हैं, तो ज्यादा जख्म देने में सक्षम हैं। लेकिन पतंगबाजी करने वालो को तो लुत्फ लेना है, मजबूत मांझे लगाने हैं। उनको क्या फिक्र किसी के जान की। हर साल दिल्ली पुलिस की तरफ से निर्देश जारी किए जाते हैं पतंगबाजी को लेकर। लेकिन कितने लोग उस पर अमल करते हैं ? लोगों की जान को खतरे में डाल कर पतंगबाजी करना जरुरी है ? क्या इतने असंवेदनशील हो गए हैं हम, और हमारे समाज के लोग ? ऐसे में सरकार का कोई फर्ज नहीं बनता ? अगर लोग सलाह पर अमल नहीं कर रहे हैं, तो क्यों नहीं प्रतिबंध लगा देती है ऐसे विदेश मांझे की बिक्री पर ? अगर ऐसे मांझे बिकेंगे ही नहीं तो ऐसे हादसे भी नहीं होंगे।
क्या सबकुछ माननीय अदालत के भरोसे ही रहेगा, कि वह स्वतः संज्ञान लेंगे और आवश्यक दिशा निर्देश देंगे। सरकार चुपचाप देखती रहेगी ? अदालत के निर्देश का पालन जब सख्ती से हो सकता है, तो सरकारी निर्देश का क्यों नहीं ?
क्या सबकुछ माननीय अदालत के भरोसे ही रहेगा, कि वह स्वतः संज्ञान लेंगे और आवश्यक दिशा निर्देश देंगे। सरकार चुपचाप देखती रहेगी ? अदालत के निर्देश का पालन जब सख्ती से हो सकता है, तो सरकारी निर्देश का क्यों नहीं ?