यूँ तो लोकतंत्र के मंदिर में माननीयों के असंयमित और असभ्य आचरण, व्यवहार की घटनाएं पहले भी होती रही हैं। लेकिन इस हफ्ते तो हद ही हो गई। प्रधानमंत्री जी राष्ट्रपति जी के अभिभाषण का जवाब दे रहे थे, अचानक भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल, आजादी के बाद से सबसे ज्यादा समय तक हिंदुस्तान पर शासन करने वाले राजनीतिक दल, पूर्व मंत्री, वरिष्ठ नेत्री, रेणुका चौधरी, जोर जोर से हँसने लगी। संसद और सदन की गरिमा के लिए आवश्यक होता है कि प्रधानमंत्री जी अगर कुछ बोल रहे हों तो समूचा सदन चुपचाप उसको ध्यान से सुनता है। अतीत में देखा गया है कि बेशक सदन में हंगामा मच रहा हो, लेकिन ज्योंही प्रधानमंत्री जी बोलने के लिए उठते हैं, समूचा सदन शांत हो जाता था। प्रधानमंत्री के पद को पूरी इज्जत की जाती थी, आखिर वो राष्ट्र के प्रधान होते हैं। प्रधानमंत्री जी भी विपक्ष को पूरी इज्जत और तवज्जो देते थे। अगर विपक्ष कोई मुद्दा उठा रहा हो, या फिर बहस के दौरान विपक्ष की तरफ से हिस्सा ले रहे माननीयो ने जो भी प्रश्न किये हों, प्रधानमंत्री जी उन सबका जवाब देते थे। यही कारण था कि विपक्ष प्रधानमंत्री जी के भाषण को बहुत गौर से शांति पूर्वक सुनता था।
मुझे आज भी याद है, शायद 1998 में, अभूतपूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी जी सदन में विश्वास मत प्रस्ताव रख रहे थे। उन दिनों जब भी संसद की कार्यवाही का प्रसारण होता था, मैं सिर्फ अटल जी का भाषण सुनने के लिए स्कूल / कालेज से छुट्टी करता था। बड़ी उम्मीद से 11 बजे ही टीवी ऑन करके बैठ गया, ज्योंही कार्यवाही शुरू हुई, अटल जी खड़े हुए प्रस्ताव रखने के लिए। बहुत ख़ुशी हुई कि अब करीब आधे घंटे तक अपने प्रिय नेता का भाषण सुनने को मिलेगा। लेकिन ये क्या ? परम आदरणीय वाजपेयी जी ने सिर्फ इतना कहा कि मैं इस सदन का विश्वास हासिल करने के लिए प्रस्ताव रखता हूँ। मुझे बहुत कुछ कहना है लेकिन मैं उससे पहले सुनना चाहता हूँ। इतना कहकर वो बैठ गए। मेरा सारा उत्साह धरा का धरा रह गया। फिर शायद अगले दिन या उसी दिन शाम को वाजपेयी जी ने जम के जवाब दिया।
जब वाजपेयी जी के भाषण के समय विपक्ष द्वारा हंगामा होता था तो वो चुपचाप बैठ जाते थे और फिर जब सदन शांत होता था तब जोरदार तरीके से अपनी बात रखते थे। सदन भी उनको पूरा मान देता था, फिर दुबारा हंगामा नहीं करता था। लेकिन अब क्या हो गया ? रेणुका चौधरी जी कोई पहली बार चुनकर नहीं आई हैं सदन में। वरिष्ठ और अनुभवी नेत्री हैं और उनका इस तरह का आचरण कहीं से उचित नहीं ठहराया जा सकता।राजनीतिक विरोध और मतो में भिन्नता अपनी जगह है लेकिन इस तरह से राष्ट्राध्यक्ष जब सदन को सम्बोधित कर रहा हो तब एक वरिष्ठ नेत्री का जोर जोर से लगातार हँसना बिलकुल गलत है। लेकिन इस बार अपने पूर्ववर्तियो की तरह से राज्यसभा अध्यक्ष वेंकैया नायडू जी ने उदारता नहीं बरती। बिलकुल भी नजरअंदाज नहीं किया और इसका संज्ञान अच्छे से लिया।
अपनी वाकपटुता के लिए प्रसिद्ध प्रधानमंत्री जी ने भी झट से कह दिया कि रामायण सीरियल के बाद ऐसी हंसी सुनने का सौभाग्य आज जाके मिला है । बस, इतना बोलना था कि अब प्रधानमंत्री जी का अपमान पीछे रह गया और नारी अपमान की चर्चा शुरू गई। रेणुका चौधरी ने इसको नारी का अपमान बताया तो कुछ लोग इसको भिन्न भिन्न प्रकार की हँसी से जोड़ने लगे। अब प्रधानमंत्री जी से माफ़ी की माँग की जा रही है। रामायण में तो बहुत से पात्र थे। चूँकि प्रधानमंत्री जी ने किसी खास पात्र का नाम नहीं लिया तो सब अपने अपने मन से अपने पसंद के पात्र से इस हँसी को जोड़ रहे है। कहा भी गया है ,
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिहि तैसी।
कुछ भी हो, सदन की मर्यादा की एक बार फिर क्षति हुई है, इसमें कोई दो राय नहीं है।
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिहि तैसी।
कुछ भी हो, सदन की मर्यादा की एक बार फिर क्षति हुई है, इसमें कोई दो राय नहीं है।