5 जनवरी, 2018
आम आदमी पार्टी में राज्यसभा टिकट के एलान होते ही पार्टी की गुटबाजी का पूरी तरह से पर्दाफाश हो गया। अभी तक तो ये सब कुछ परदे के पीछे ही चल रहा है, शीत युद्ध की तरह था। कभी कुमार विश्वास कोई कटाक्ष करते तो कभी दूसरी तरफ से इसका जवाब दिया जाता। लेकिन सब यही कहते रहे कि पार्टी में सबकुछ ठीक है। बहुतो बार अख़बार में लिखा गया कि कुमार विश्वास का मोह भंग हो रहा है आम आदमी पार्टी से, लेकिन कवि की तरफ से झट से इसका खंडन भी आ जाता था। कपिल मिश्रा प्रकरण में भी कुमार विश्वास मुखर रूप से केजरीवाल के खिलाफ नजर आये। लेकिन वक्त रहते उनको मना लिया गया, वरना पार्टी का दो फाड़ होना तय था। उनको भाजपा का एजेंट कहने वाले विधायक अमानतुल्लाह को भी पार्टी से सस्पेंड किया गया लेकिन थोड़े ही महीने पहले उनका सस्पेंसन रद्द हो गया।
परसो राजयसभा का टिकट घोषित होते ही, कुमार विश्वास का शहादत वाला बयान आया। कह रहे हैं कि मैं अपनी शहादत स्वीकार करता हूँ। मतलब कुमार विश्वास का व्यक्तित्व बस इतना ही है कि राज्यसभा नहीं भेजने से उनकी राजनीतिक शहादत हो गयी ? करोडो युवाओं के दिल पर राज करने वाला कविराज, आज एक पद का मोहताज हो गया ? उन्होंने ऐसी बात करके उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा को ही आंच लगाई है। उनको राज्यसभा भेजने के लिए दबाव बनाने की कोशिश भी की गयी। पार्टी मुख्यालय पर भीड़ जुटा कर उनके पक्ष में नारे लगवाए गए। लेकिन होना वही था जो हुआ। दबाव का कोई असर नहीं हुआ, उनको टिकट नहीं मिला। उनका बयान भी ऐसे ही झट से आया जैसे पहले से ही मन बनाकर बैठे हो कि टिकट न मिला तो ये बोलूंगा।
वैसे तो कुमार विश्वास की पार्टी के प्रति नाराजगी तो तभी प्रकट हो गयी थी जब उन्होंने पंजाब चुनाव परिणाम आने के बाद उन्होंने जम के हमला बोला था और परोक्ष रूप से संजय सिंह और दुर्गेश पाठक को इस परिणाम के लिए जिम्मेदार ठहराया था। उस समय संजय सिंह और दुर्गेश पाठक के पंख थोड़े कम जरूर किये गए थे लेकिन दिल्ली नगर निगम चुनाव में संजय सिंह को जिस तरह से जिम्मेदारी मिली उससे पता चल गया था कि पार्टी कविराज की बातो का ज्यादा गंभीरता से संज्ञान नहीं ले रही है और उनको ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं है। पहली पंक्ति के नेताओं में सिर्फ संजय सिंह ही हैं जिनके पास पार्टी के लिए फूल टाइम है, बाकी अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया तो सरकारी कामो में लगे हुए हैं और कविराज को कविता पाठ से फुर्सत नहीं। ऐसे में अगर पार्टी ने संजय सिंह को टिकट मिला है तो ये कहीं से भी गलत नहीं है।
संजय सिंह कुशल प्रबंधक होने के साथ कुशल वक्ता भी हैं। लेकिन कुमार विश्वास की अपनी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय छवि है। ऐसे व्यक्तित्व वाला व्यक्ति जब एक ऐसे पद को, जिसको उससे कम ख्याति प्राप्त लोग ठुकरा चुके हैं, न पाने पर खुद को शहीद मान लेता है तो उसकी सारी प्रसिद्धि धरी की धरी रह जाती है और प्रतिष्ठा की अपूरणीय क्षति होती है। कितना नाम होता, कितनी वाह वाही होती, कितनी प्रतिष्ठा होती अगर कुमार विश्वास थोड़ा दिल बड़ा करके तीनो उम्मीदवारों को खुले दिल से बधाई देते। यह सर्वविदित है कि कुमार विश्वास को न तो राजनीति से पैसे कमाने की जरुरत है और न ही नाम कमाने की। उनके पास प्रभु कृपा से दोनों ही पहले से ही हासिल है। फिर इतना छोटा दिल क्यों कविराज ???
कुमार को ना बनाया ना सही, किसी पार्टी कार्यकर्ता पर तो विश्वास जताते,वो भी नही किया केजरी ने
जवाब देंहटाएंइलेक्शन के टाइम तो बड़े उछल रहे थे ,हमारे पास IITian, mbbs, MBA उम्मीदवार कार्यकर्त्ता है,कहा गए सब??
क्या उनमे से एक भी राज्यसभा भेजने के लायक नही जो बाहरी पार्टी से इस्तीफा दिलवा कर उसे भेजा गया
विश्वास में क्या कमी है जो उसे नही भेजा गया, एक ऐसे राज्य का प्रभारी बना दिया जिसके इलेक्शन 3 साल दूर थे, अब एक साल रह गया है,उस पद से हटा दिया जायेगा जो की planned था
केजरीवाल पार्टी में अपने समकक्ष किसी को खड़ा नही देखना चाहता है