3 अप्रैल, 2017
थप्पड़ मार दिया ! हो गया ! सारी समस्या सुलझ गई ? सारे विवादों का निपटारा हो गया ? एक थप्पड़ मारने से सिर्फ थोड़े दिनों का हँगामा होता है और कुछ नहीं। विपक्षी पार्टियाँ 2 - 3 चैनलों पर थप्पड़ खाने वाले की बुराई कर लेती है बस। और कुछ नहीं होता। कोई आमूल चूल परिवर्तन नहीं आ जाता किसी नेता को थप्पड़ मार देने से। लेकिन इतना सोचता कौन है थप्पड़ मारने से पहले ? आजकल आम आदमी पार्टी के नेताओं को थप्पड़ मारने का चलन हो चला है। या यूँ कहिये की फैशन हो गया है। तनिक सी बात नहीं हुई कि मार दिया थप्पड़। वैसे आम आदमी पार्टी के नेताओं को थप्पड़ मारना उनके साथ बदतमीजी करना कोई मुश्किल काम नहीं है। ये लोग दूसरे दलों के नेताओं की तरह गहन सुरक्षा में नहीं रहते हैं। आसानी से कोई भी इनके करीब पहुँच सकते हैं।
इसी का फायदा उठाते हैं कुछ लोग और इनके साथ बदतमीजी कर जाते हैं। लेकिन किसी दूसरे दलों के नेताओं के साथ ऐसा नहीं होता है। किसी की हिम्मत नहीं की भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ बदतमीजी करे। कुछ साल पहले की ही बात है, किसी ने राहुल गाँधी को काला झंडा दिखाने की हिमाकत की थी। उसके बाद कांग्रेसियों ने पहले तो उसको जम के पीटा था और फिर पुलिस में देना भी नहीं भूले थे। उसके बाद से किसी कांग्रेसी के साथ ऐसी बदतमीजी होने की खबर नहीं आई है। लेकिन आम आदमी पार्टी के नेताओं के आड़े आ जाती हैं उनकी प्रचंड सहिष्णुता। तभी कोई उनको थप्पड़ मार देता है तो कोई मुँह पर स्याही फेंक कर चला जाता है। मानना पड़ेगा कि "आप" नेताओं की सहनशक्ति गजब की है। इतना होने के बावजूद अभी तक किसी थाने में रिपोर्ट नहीं लिखवाई गई है।
चुनाव के दिनों में टिकट को लेकर असंतोष हर दल में देखने को मिलता है। लगभग हर कार्यकर्त्ता को टिकट चाहिए होता है। हर कार्यकर्त्ता को लगता है कि पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ने के लिए वही सर्वोत्तम है। लेकिन टिकट किसी एक को ही मिलता है। टिकट किसको दिया जाए वह किसी भी राजनीतिक दल का विशेषाधिकार होता है। सिर्फ समर्पित कार्यकर्त्ता होना ही किसी पार्टी से टिकट पाने की गारंटी नहीं है। फिर तो एक चुनाव क्षेत्र में किसी भी पार्टी के सैकड़ों समर्पित कार्यकर्त्ता होते हैं। सबको टिकट कैसे दे सकती है पार्टी ? वाजिब है कि जिसको टिकट न मिले वो थोड़ा नाराज हो, लेकिन ऐसी क्या नाराजगी कि जिसको कल तक अपना आदर्श मानते रहे आज उसकी को थप्पड़ लगा दिया। वो भी सिर्फ इसलिए की हमें लगता है कि हमें टिकट न देने में इसका हाथ है ?
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