11 जनवरी, 2017
यही कहा भाजपा वालों ने। 10 - 15 दिनों की छुट्टियाँ मनाकर राहुल गाँधी देश वापस लौटे और कल जन-वेदना सम्मेलन में प्रधानमंत्री पर व्यंग्य-बाण छोड़ने की असफल कोशिश की। मोदी जी की मिमिक्री करने की भी कोशिश की। इतने सालों से राजनीति में रहने एवं सांसद होने के साथ-साथ एक बड़ी राजनीतिक पार्टी का कर्ता-धर्ता होने के बावजूद, राहुल गाँधी में राजनीतिक परिपक्वता का नितांत अभाव है। थोड़े दिन सक्रीय रहते हैं फिर छुट्टी मनाने चले जाते हैं।
छुट्टी के बाद वापस आते हैं तो सबकुछ, अपनी चाल-ढाल बोलने का विशेष तरीका, भूल आते हैं। छुट्टी पर जाने से पहले उनके भाषणों में थोड़ा सा निखार आ रहा था। भाजपा भी उनको गंभीरता से लेने लग गई थी। हमेशा उनके बयानों को अनदेखा करने वाले प्रधानमंत्री प्रतिक्रिया भी देने लगे थे। कुल मिलाकर मामला कुछ सुधार की तरफ अग्रसर था। लेकिन ऐसे में अचानक से राहुल गाँधी छुट्टी मनाने चले गए। जब वापस लौटे हैं तो सबकुछ वही का वही।
उनके कल के भाषण को देखकर तो यही लग रहा था कि राहुल गाँधी फिर से नौसिखिये हो गए हैं। स्वच्छता अभियान का माखौल उड़ाने के बाद वो खुद ही श्रोता से पूछ रहे थे की इसके बाद कौन सा अभियान आया। भाषण के बिंदु श्रोता से पूछने पर नेता की कुशलता कम प्रतीत होती है। लेकिन कांग्रेस की मुग्धता कम नहीं हो रही है। राहुल गाँधी जी के मुखार बिंदु से निकले एक एक शब्द पर जम कर तालियाँ बजाते हैं कांग्रेसी। हो भी क्यों नहीं ? राहुल गाँधी के सिवा कांग्रेस की नैया का खिवैया भी कौन है अब ?
0 टिप्पणियाँ:
टिप्पणी पोस्ट करें