16 जनवरी, 2017
आज समाजवादी पार्टी में कई महीने से चल रही राजनीतिक उठापटक या फिर पारिवारिक खींचतान का अंत हो गया। समाजवादी पार्टी एक की तरह नहीं बल्कि एक परिवार के इर्द गिर्द ही घुमती है। मुलायम सिंह द्वारा स्थापित इस पार्टी में उनका परिवार ही सत्ता का केंद्र है। खींचतान हो रही थी कि अखिलेश यादव विकास की राजनीति करना चाहते थे लेकिन उसके चाचा पार्टी के परंपरागत तरीके से पार्टी चलाना चाहते थे। अब मुलायम सिंह लोक लाज को देखते हुए अपने भाई के साथ होते दिखना चाहते थे। क्योंकि भाई ने पार्टी की स्थापना एवं इसके फलने फूलने में बड़ी मेहनत की थी।
वो कहते हैं न कि एक को मनाऊँ तो, दूजा, रूठ जाता थे। जब बेटे को मनाते तो भाई रूठ जाता और जब भाई को मनाते तो बेटा रूठ जाता। अंततः बाप और बेटे में आमने सामने की लड़ाई लड़ने की ठानी और बेटे को पार्टी का नाम और निशान दोनों ही मिल गया। किसी भी पिता या गुरु के लिए वह क्षण बड़े ही गौरव का होता है जब उसका बेटा या शिष्य उससे आगे निकल जाए,उसको हरा दे। यही गौरव का अनुभव कर रहे होंगे माननीय मुलायम सिंह जी। लेकिन मज़बूरी देखिए, बेचारे इस गौरव के क्षण का उत्सव भी नहीं मना सकते,भाई को उनकी नीयत पर शक जो हो जाएगा।
भगवान बुढौती में अइसन दिन किसी को न दिखाए। अपने ही बेटे से हारे बिचारे कहीं के नहीं रहे। लोग मजाक भी उड़ा रहे हैं। तरह तरह के चुटकुले शेयर किये जा रहे हैं सोशल मीडिया में। कह रहे हैं बेटे को साईकिल चलाने को दी तो बेटा साईकिल लेकर ही भाग गया। तो कुछ लोग कह रहे हैं कि हर एक बाप को अपने बेटे को साईकिल दिलानी ही पड़ती है। बहरहाल, मजाक अपनी जगह, लेकिन इस हार में भी मुलायम सिंह जी की जीत ही है। वो समाजवादी पार्टी को अपनी औलाद समझ कर ही पाल पोष रहे थे। हर बाप चाहता है कि उसके औलाद का भविष्य उज्जवल हो।
समाजवादी पार्टी का भविष्य मुलायम और शिवपाल के हाथों कहीं से भी सुरक्षित नहीं था। इसलिए अखिलेश के हाथों मुलायम सिंह की दूसरी औलाद "समाजवादी पार्टी " का भविष्य सजेगा - संवरेगा। इस हार में मुलायम जी की हार नहीं बल्कि जीत ही है।
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