26 जनवरी, 2017
अभी तक परंपरा रही है कि फरवरी महीने के आखिरी दिनो में पहले रेल बजट और फिर आम बजट प्रस्तुत किये जाते हैं. इस बार फ़ैसला किया गया कि रेल बजट अलग से न बनाके, आम बजट में ही इसको सम्मिलित कर लिया जाये. अच्छी बात है, सरकार नीतिगत फैसलो में बदलाव करती रहती है, इसमें कुछ नया नहीं. लेकिन इस बार नया इस मामले में हो रहा है कि बजट प्रस्ताव की तिथि भी बदली जा रही है. कहा जा रहा है कि बजट को लागू करने की तैयारी में समय कम पड़ जाता है जब फरवरी के अंत में बजट पेश होता है तो.
विश्व के महान अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह जी पूरे 5 साल तक वित्तमंत्री और 10 साल तक प्रधानमंत्री रहे थे. लेकिन उनको कभी इस तरह के बदलाव की जरुरत महसूस नहीं हुई. विश्व के महान राजनेताओ में शुमार अटल बिहारी वाजपेई जी 6 साल तक प्रधानमंत्री रहे, उनको भी ऐसी समस्या नहीं आयी. लेकिन वकील वित्तमंत्री जी को यह समस्या आने लगी है.
4 फरवरी को गोआ और पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिये वोट डाले जाने हैं. अमृतसर लोक सभा सीट के लिये भी उपचुनाव 4 फरवरी को ही है. उसके बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में विधानसभा चुनाव के लिये मतदान होना है. पूरी चुनाव प्रक्रीया 11 मारच 2017 को संपूर्ण होगी.
लेकिन मुद्दा ये है कि मतदान से ठीक पहले बजट क्यों ? यूं तो सम्वैधानिक और वैधानिक दृष्टि से इसमें कोई दोष नहीं है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. परंतु क्या ये नैतिक रूप से ठीक है ? हमारे देश में जहां झूठे और कई बार अव्यवहारिक वादे करके नेता और राजनीतिक दल जनता का मत प्राप्त करने में कामयाब हो जाते हैं, ऐसे में सत्तारूढ दल की यह कोशिश संदेह से परे कैसे हो सकती है ? क्या बजट में लोक लुभावन फ़ैसले करके जनता का मत सत्तारूढ दल के पक्ष में करने की कोशिश नहीं की जा सकती है ?
जब कांग्रेस के शासन काल में बजट में जनता को कोई रियायत या सुविधा दी जाती थी, तो यही भारतीय जनता पार्टी इसकी आलोचना करती थी कि यह चुनावी बजट है, बेशक चुनाव 2, 4, 6, 8 या 10 महीने बाद हो. मुझे याद है 2012 में आम बजट के समय भी ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई थी. तब भाजपा समेत तमाम विपक्ष ने ऐसी ही आशंका जताइ थी. तब केंद्र सरकार ने नैतिकता की बहुत बडी मिसाल पेश करते हुए बजट पेश करने की तिथि को आगे बढा दिया था. उस साल चुनावी प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ही 16 मारच 2012 को बजट पेश किया गया था. भाजपा-शासित केंद्र सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही है ? क्यों नहीं इस साल भी 16 मारच को केंद्रीय बजट पेश किया जाता है जब चुनावी प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी होगी ?
सच तो यह है कि भाजपा विपक्ष में रहते हुए जिन कामो को अनुचित और अनैतिक बताती है, सत्ता में आने पर वही या फिर उससे भी ज्यादा गलत करती है.