5 नवम्बर, 2016
NDTV इंडिया पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है 24 घंटे के लिए। 9 नवम्बर, 2016 को रात 12:01 बजे से 10 नवम्बर, 2016 को रात 12:01 बजे तक प्रभावी रहेगा, यह प्रतिबन्ध। इस दौरान इस चैनेल पर कोई भी प्रसारण नहीं होगा। सरकार के अनुसार, चैनेल ने पठानकोट हमले के बाद सैनिक कार्रवाई के दौरान कुछ अति महत्वपूर्ण एवं रणनीतिक रूप से अति गोपनीय जानकारी का प्रसारण कर दिया था, इसलिए चैनेल पर ऐसा प्रतिबन्ध लगाया गया है।
वहीँ चैनेल का कहना है कि हमने जो भी जानकारी प्रसारित की है वह पहले से ही प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से जनता को उपलब्ध थी। सम्पूर्ण विपक्ष ने इस प्रतिबन्ध की एक सुर से निंदा की है। इसको तानाशाही का रवैया कहा है। भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों, नेताओं और समर्थकों को छोड़ कर किसी ने भी इस प्रतिबन्ध का समर्थन नहीं किया है। बहुत से लोगों का कहना है कि दूसरे चैनेल्स ने भी कमोबेश NDTV इंडिया जैसी ही कवरेज की थी, लेकिन प्रतिबन्ध सिर्फ इसी चैनेल पर लगाया गया।
पठानकोट हमले को लेकर जो भी गलती चैनल की तरफ से हुई है, उसके लिए भारतीय दंड संहिता में जरूर कोई न कोई सजा निर्धारित होगी। लेकिन किसी चैनेल पर प्रतिबन्ध लगाकर उसका प्रसारण रोक देना कहाँ तक उचित है ? क्या यह लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर कुठाराघात नहीं है ? क्या यह पत्रकारिता की जुबान बंद करने के बराबर नहीं है ? NDTV इंडिया का दर्शकों की नजर में एक अलग स्थान है, इसकी अपनी विश्वसनीयता है, लोकप्रियता है।
क्या सिर्फ किसी चैनल के साथ इसलिए सख्ती की जा सकती है कि उसके कार्यक्रमों में सरकार की चरण वंदना नहीं होती ?
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "मीठा मीठा गप्प गप्प और खारा खारा थू थू“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ।
Deleteसामयिक प्रस्तुति ,,,,
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ।
Deleteबहुत बड़ा बहस का विषय है ... अच्छा तो यही है की चेनल वाले बैठ कर तय कर लें क्या ठीक है क्या नहीं ... खुद ही रेगुलेट हो जाएँ ...
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Deleteबिलकुल सही कहा आपने, दिगंबर जी। लेकिन क्या आपको लगता है कि मीडिया खुद को रेगुलेट कर पाएगी ? आजकल मीडिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा, खुद को ही गवाह, वकील और न्यायधीश समझने लगा है। अदालत का फैसला आने से पहले ही अपना फैसला सुनाने लगे हैं, कुछ मीडिया वाले। टीआरपी की अंधाधुंध होड़ में कुछ भी दिखाने लगे हैं मीडिया वाले। लेकिन सरकार को भी एक निष्पक्ष एवं स्वतंत्र संस्था द्वारा ही इन पर नियंत्रण रखने की कोशिश करनी चाहिए।