12 नवम्बर, 2016
मोदी जी ने अभूतपूर्व निर्णय लिया है। अब अभूतपूर्व प्रधानमंत्री हैं, तो कोई ऐसा-वैसा निर्णय थोड़े न लेंगे। सो ले लिए फैसला और कर दिए 500 रुपए और 1,000 रूपए के नोट रद्द। कह रहे हैं कि इससे काला धन आएगा। ठीक है भाई, हम जैसे लोगों की तो काला धन का नाम सुनकर ही उम्मीद जग जाती है कि अब 15 लाख रुपये बैंक खाते में आ जाएंगे। जन-धन खाता इसी आस में खुलवाए हैं न बहुत से लोग ? अब नया नोट छपेगा तो आएगा बाजार में। तब तक 100, 50, 20, 10, 5 के नोटों से काम चलाइये, सिक्का भी है 10, 5, 2, 1 का चलन में अभी। वैसे अब तो 2,000 का नोट भी आ गया है बाजार में।
लोगों ने सोचा कि कोई बात नहीं बदल लेंगे नोट को, कोई चिंता या झंझट की बात नहीं है। लेकिन ये क्या ? सीधे - सीधे बंद नहीं हुआ ये नोट, बल्कि खूब सारी पाबंदियाँ भी लेकर आया अपने साथ। एक दिन बैंक और दो दिन एटीएम बंद करवा दिया गया। एटीएम से एक दिन में एक कार्ड पर सिर्फ और सिर्फ 2000 रुपये ही निकाले जा सकते हैं। हफ्ते में कुल 20,000 रुपये ही निकाल सकते हैं बैंक से, एक बार में 10,000 रुपये ही निकाल सकते हैं बैंक से। और भी बड़ी सारी पाबंदियाँ लग गयी।
अमीर लोगों के पास तो पर्याप्त धन होता है घर में, लेकिन गरीबों का क्या ? सब लग गए बैंक और एटीएम की लाइन में। दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा वाला, ठेला वाला सब लगे हैं लाइन में अपना काम धंधा छोड़कर। लाइन भी इतनी लंबी कि जैसे मुफ्त में कुछ मिल रहा हो। अपने पैसे निकालने के लिए 2 - 2 घंटे तक भूखे-प्यासे इंतजार करना पड़ रहा है लोगों को। कई जगह लाइन में मार-पीट होने की भी खबर आई है। नोट बंद होने की खबर सुनते ही एक वृद्धा की मौत होने की भी खबर है। कहीं बीमारी के इलाज में पैसे की किल्लत के कारण मौत हो गयी तो कहीं कफ़न के लिए भी पैसे की कमी आड़े आई।
ये कैसी सुविधा दे रहे हैं मोदी जी ? यही हैं जनता के अच्छे दिन ? लोगों को कमाने से ज्यादा खाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। लोगों में गुस्सा दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। शुरू में शांत रहकर लोगों ने इस फैसले का समर्थन किया, लेकिन अब जनता का सब्र टूटता जा रहा है और गुस्से में तब्दील हो रहा है। परेशान और मजबूर आदमी इससे ज्यादा क्या कर सकता है ? वातानुकूलित कमरे में बैठ कर मुस्कुराते हुए तर्क देना बड़ा आसान है, लेकिन धुप में 2 घंटे खड़े रहकर 2000 रुपये निकालने वाला कितना दुखी है उसका अंदाजा उसी को होता है।
काला धन वापसी के हर फैसले का समर्थन, लेकिन जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए। क्या इस तरह के हालात की कल्पना नहीं की थी हमारे दूरदर्शी प्रधान मंत्री जी ने ? हमारे देश में कितने लोग रोज कमाकर खाते हैं इसका इल्म नहीं वकील वित्तमंत्री जी को ? क्यों नहीं बैंको में एक्सचेंज काउन्टर की संख्या बढ़ाई गयी ? क्यों नहीं अतिरिक्त काउन्टर खोले गए ? क्यों नहीं अतिरिक्त बैंकिंग केंद्र बनाये गए ? आज जनता को इतनी परेशानी हो रही है और मंत्री, सांसद, विधायक और नेता आराम से हैं। सिर्फ राहुल गाँधी को छोड़कर कोई और नेता दिखा लाइन में ?
उचित और पर्याप्त व्यवस्था किए बिना ये फैसला आम आदमी के लिए अत्यंत कष्टकारी सिद्ध हो रहा है, जबकि इससे बचा जा सकता है। जरूरत थी तो सिर्फ दूरदर्शिता दिखाने की।
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