28 अक्टूबर, 2016
त्यौहारो का मौसम है। अपने घर से दूर - दराज क्षेत्र में रहने वालों के लिए एक मौका होता है, अपने परिवार से मिलने का, साथ में खुशियाँ मनाने का। ऐसे में लंबी दूरी के यात्रियों के लिए एक मात्र साधन होता है, भारतीय रेल।लेकिन रेलवे विभाग की सुस्ती के कारण इस ख़ुशी पर भी ग्रहण लग रहा है, बहुत से लोगों के लिए। चार महीने पहले आरक्षित टिकट की बुकिंग खुलती है लेकिन 1 से 2 मिनट के अंदर ही सारी सीटें भर जाती हैं। उसके बाद वेटिंग टिकट मिलती है, जो शायद ही कन्फर्म होती है। जरूरतमंद से ज्यादा तो दलाल तत्पर रहते हैं, बुकिंग खुलते ही आरक्षित टिकट लेने के लिए, बाद में उनको मोटी कमाई जो करनी होती है। वास्तविक यात्री भले ही यात्रा से 120 अग्रिम दिनों की गिनती करने में चूक कर जाए, एक दो दिन आगे-पीछे हो जाए, लेकिन दलालों की गिनती पक्की होती है।
इसके बाद सरकार सुविधा ट्रेन चलाती है, जिसमें गरीबों के लिए बिलकुल ही राहत नहीं होती। इसका आरक्षित टिकट हवाई जहाज के टिकट की तर्ज पर समय और माँग के साथ-साथ महँगा होता जाता है। इस मौसम में यात्रा के दिन तक तो इसकी कीमत 6,000 रुपये तक पहुँच रही है, दिल्ली से बिहार के रूट पर। मतलब सारा इंतजाम रेलवे की कमाई के हो रहे हैं। गरीबों और जरूरतमंदो के लिए कोई राहत नहीं। हर तरफ से थक हारकर गरीब आदमी तत्काल टिकट की आस लगाता है। लेकिन उधर से भी निराशा ही हाथ लगती है, बुकिंग खुलते ही सीटें भर जाती हैं। अब सीट कम और माँग ज्यादा, तो ऐसे में टिकट दलालों की भी चाँदी रहती है। यूँ तो रेलवे दलालों पर शिकंजा कसने के लिए खूब कोशिश करती है।
टिकट वापसी के नियम खूब सख्त किए जाते हैं और समय-समय पर टिकट वापसी शुल्क भी बढ़ाया जाता है। लेकिन शिकंजे में मासूम यात्री ही फँसता है, दलालों की मौज ही रहती है। जबसे सुरेश प्रभु रेलमंत्री बने हैं, बड़े बड़े दावे कर रही है सरकार, बड़े ही सुखद और आकर्षक आँकड़ों के साथ। जब यात्री को आराम नहीं है, त्योहारों के मौकों पर भी आरक्षित टिकट नहीं मिलता तो इस आँकड़ों का क्या करें ? जब यात्रियों को मन मसोसकर रह जाना पड़ता है, तो क्या करें हम आधुनिक सुविधायुक्त ट्रेन का ? 24 घंटे की यात्रा में ज्यादा सुख-सुविधा की जरुरत नहीं है, सिर्फ इंसान आराम से चला जाए यही काफी है। क्यों नहीं चलाई जाती व्यस्ततम रूटों पर ज्यादा ट्रेने ? क्यों नहीं व्यस्त रुट पर तीसरी लाइन बिछाई जाती ताकि ज्यादा ट्रेनें चलाई जा सके ?
रेलवे को घाटा लग रहा है, रेलवे की कमाई बढे, इसके नाम पर जब देखो कभी यात्री किराया तो कभी माल भाड़ा बढ़ा दिया जाता है। लेकिन फिर भी आरक्षित टिकट के लिए निराश होना पड़ता है। इतनी बार किराया बढ़ाने के बावजूद रेलवे की कमाई में 4000 करोड़ रुपए की कमी ही आई है। अब इस तरह की कार्य-कुशलता का क्या फायदा ?
ये ही हैं रेल यात्रियों के अच्छे दिन ?
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