अभी थोड़े ही दिनों पहले की बात है, दो स्कूली छात्रों ने अपने शिक्षक की हत्या कर दी। सुनने में कितना अचम्भा लगता है ! दो शिष्यों ने गुरुजी की हत्या कर दी। एक शिक्षक का जीवन में कितना महत्त्व होता है, ये किसी से छिपा नहीं है। आज जो कोई भी सफलता के जिस मुकाम पर पहुँचा है, उसमें उसके गुरुओं का बहुत बड़ा योगदान है। बिना गुरु के ज्ञान प्राप्ति होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
हमारे पिताजी और उनके पिताजी भी गुरु को सरस्वती का स्वरुप कहा करते थे। हमें गुरुओं की इज्जत करने को कहते थे। हम सबने अपने गुरुओं से बहुत कुछ सीखा है। गुरुओं का हमारे जीवन में इतना अहसान है कि हम कभी इस ऋण को चूका नहीं सकते। गुरु हमारे चरित्र का निर्माण करते हैं।
लेकिन इन दोनों ने तो हद ही पार कर दी। ऐसा क्या कर दिया गुरूजी ने ? गुरुजी पर इतना आग बबूला होने की नौबत कैसे आ गयी ? गुरुजी जो भी करते हैं, हमारी भलाई के लिए ही करते और कहते हैं। गुरु के निर्देशों और आदेशों में उनका अपना कोई निजी स्वार्थ नहीं होता। इस बात की समझ क्यों नहीं हुई उन दोनों लड़कों में ?
बहुत ही चिंता की बात है। गुरुओं में आज डर समा गया है। पहले गुरु जी के क्रोध के डर से हम लोग सही समय पर विद्यालय पहुँचते थे। उनका दिया हुआ सबक याद रखते थे। वो जो भी समझाते थे उसको दिल से समझते थे। कभी भी गुरुजी के प्रति हमारे दिल में घृणा नहीं उपजी।
लेकिन आज इस तरह से शिष्य को लेकर गुरुओं के मन में खौफ है। इस तरह का खौफ सभ्य समाज के लिए किसी भी तरह से सही नहीं है। गुरुओं के मन के खौफ को आज दूर करने की जरुरत है। हम सब का कर्तव्य है कि नजदीक के विद्यालयों का भ्रमण करें और गुरूजी के मन की चिंता को दूर करने का प्रयास करें।
आज जरुरत इस बात की है कि बच्चों को यह अच्छे से समझाया जाए कि गुरुजी जो भी हमें कहते हैं, हमें जो भी आदेश देते हैं, जो भी निर्णय लेते हैं वो बच्चों के भले के लिए ही होता है। गुरूजी हमारा अहित सोच ही नहीं सकते। हमें गुरूजी की मंशा पर शक नहीं करना चाहिए।
हमारे पिताजी और उनके पिताजी भी गुरु को सरस्वती का स्वरुप कहा करते थे। हमें गुरुओं की इज्जत करने को कहते थे। हम सबने अपने गुरुओं से बहुत कुछ सीखा है। गुरुओं का हमारे जीवन में इतना अहसान है कि हम कभी इस ऋण को चूका नहीं सकते। गुरु हमारे चरित्र का निर्माण करते हैं।
लेकिन इन दोनों ने तो हद ही पार कर दी। ऐसा क्या कर दिया गुरूजी ने ? गुरुजी पर इतना आग बबूला होने की नौबत कैसे आ गयी ? गुरुजी जो भी करते हैं, हमारी भलाई के लिए ही करते और कहते हैं। गुरु के निर्देशों और आदेशों में उनका अपना कोई निजी स्वार्थ नहीं होता। इस बात की समझ क्यों नहीं हुई उन दोनों लड़कों में ?
बहुत ही चिंता की बात है। गुरुओं में आज डर समा गया है। पहले गुरु जी के क्रोध के डर से हम लोग सही समय पर विद्यालय पहुँचते थे। उनका दिया हुआ सबक याद रखते थे। वो जो भी समझाते थे उसको दिल से समझते थे। कभी भी गुरुजी के प्रति हमारे दिल में घृणा नहीं उपजी।
लेकिन आज इस तरह से शिष्य को लेकर गुरुओं के मन में खौफ है। इस तरह का खौफ सभ्य समाज के लिए किसी भी तरह से सही नहीं है। गुरुओं के मन के खौफ को आज दूर करने की जरुरत है। हम सब का कर्तव्य है कि नजदीक के विद्यालयों का भ्रमण करें और गुरूजी के मन की चिंता को दूर करने का प्रयास करें।
आज जरुरत इस बात की है कि बच्चों को यह अच्छे से समझाया जाए कि गुरुजी जो भी हमें कहते हैं, हमें जो भी आदेश देते हैं, जो भी निर्णय लेते हैं वो बच्चों के भले के लिए ही होता है। गुरूजी हमारा अहित सोच ही नहीं सकते। हमें गुरूजी की मंशा पर शक नहीं करना चाहिए।
Deepak Saxena
ReplyDeleteOctober 6 at 10:40pm
माफ़ कीजियेगा "मनोहर पर्रीकर जी" हमारे देश की सेना" पाकिस्तान " का मनोबल तब से तोड़ते आई है, जब आप की उम्र लाली -पाप चूसने की रही होगी ! जब पहली बार हमारे देश की सेना ने " पाकिस्तान " को युद्ध में हराया था ,शायद आप पैदा भी नही हुवे थे ,अगर पैदा हुवे भी होंगे तो अपना पिछवाडा साफ़ कराने के लिए दुसरो पर आश्रित रहना पड़ता होगा !सेना को आप क्या "पराक्रम" याद दिलाओगे सर , सिर्फ लड़ने के लिए ही नही ,सीमा पर पहरा देने के लिए भी "पराक्रम"की आवश्यकता पड़ती है ,और सेना ६९ सालो से ,देश की सीमा पर डटी हवी है !इसलिए आप से हाथ जोड़ कर विनती है "पर्रीकर " साहब ,अपनी संगत अच्छे लोगो से रखिये ,संगत का असर आप पर भी होने लगा है ! इतना फेकना अच्छी बात नही है ! देश पहले ही एक" फेकू "से परेशान है ,दूसरे "फेकू" को झेलना बर्दाश्त के बाहर हो जायेगा ! आप का अपना,,,,,,,,,,,, "भूपेंद्र शर्मा"
सही कहा आपने कि आज इस तरह से शिष्य को लेकर गुरुओं के मन में खौफ है। इस तरह का खौफ सभ्य समाज के लिए किसी भी तरह से सही नहीं है। गुरुओं के मन के खौफ को आज दूर करने की जरुरत है। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया टिप्पणी करने के लिए। मेरे तुच्छ प्रयास की सराहना करके आपने मेरा मनोबल बढ़ाया है। आपका आभारी हूँ।
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