6 सितंबर, 2016
अन्ना हजारे जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अन्ना जी के जन-लोकपाल आंदोलन में हम सबने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। नौकरी से छुट्टी ले-लेकर जंतर-मंतर और रामलीला मैदान में अन्ना जी को अपना समर्थन देने जाया करते थे हम जैसे लोग। भ्रष्टाचार के खिलाफ एक अलख जगाई थी अन्ना जी ने भारतीयों के बीच। इसका व्यापक असर भी हुआ था। अन्ना जी को इतना जन समर्थन मिलता देखकर तत्कालीन केंद्र सरकार बुरी तरह से घबरा गयी थी। किसी भी तरह से अन्ना जी के आंदोलन को ख़त्म करना चाहती थी। जब आंदोलन जोर पकड़ता था तो सरकार सारी बात मानने की बात कहती थी और ज्योंहि आंदोलन समाप्त तो फिर वही हाल।
आंदोलन कर-कर के परेशान हो गए थे सारे समर्थक लेकिन बात कुछ बनती नहीं दिख रही थी। तभी कांग्रेस के किसी नेता ने इन लोगों को चुनौती दी कि आप राजनीतिक पार्टी बनाइये, चुनाव लड़िये और सरकार बनाकर मनचाहा लोकपाल बिल पास करवा लीजिये। तब अन्ना आंदोलन में शामिल कुछ लोगों ने निश्चय किया कि अब तो राजनीतिक दल बनाकर ही जनता के हित के कानून बनायेंगे। सत्तानशीनों के सामने गिड़-गिड़ाने से कुछ नहीं होगा। लेकिन अन्ना जी राजनीतिक दल बनाने के खिलाफ थे। वह राजनीति को बुरा मानते थे। इस प्रकार अन्ना आंदोलन के अग्रणी नेता दो भागों में बँट गए।
अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास, संजय सिंह, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे लोग राजनीतिक दल बनाने के पक्षधर थे। उनलोगों ने मिलकर आम आदमी पार्टी की स्थापना की। किरण बेदी, जनरल वी. के. सिंह आदि नेता राजनीतिक दल बनाने के पक्ष में नहीं थे। वो लोग अन्ना जी के साथ रह गए। ये बात और है कि दोनों ही बाद में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। आज की तारीख में किरण बेदी पुडुचेरी की उप-राज्यपाल और जनरल वी. के. सिंह केंद्र सरकार में मंत्री हैं। जब आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था तब अन्ना जी ने साफ-साफ कहा था कि कभी भी मेरे नाम और मेरी फोटो का इस्तेमाल मत करना।
अन्ना जी ने कभी भी आम आदमी पार्टी के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया। कभी भी उन्होंने किसी भी चुनाव में, चाहे दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 या 2015 हो, लोकसभा चुनाव 2014 हो या फिर दिल्ली नगर निगम उपचुनाव 2016 हो, आम आदमी पार्टी के पक्ष में न तो प्रचार किया और न ही किसी उम्मीदवार के लिए वोट माँगे। राजनीतिक रूप से एकदम तटस्थ ही रहे। गाहे-बगाहे कभी राहुल गाँधी तो कभी नरेन्द्र मोदी जी की तारीफ जरूर करते रहे। कभी-कभी केजरीवाल जी की भी प्रशंसा कर देते हैं। आज अन्ना जी ने कहा कि उनको आम आदमी पार्टी पर भरोसा नहीं रहा। आम आदमी पार्टी और केजरीवाल जी की खूब आलोचना की उन्होंने।
अब तो मीडिया और भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस को भी मौका मिल गया। लगे आलोचना करने आम आदमी पार्टी की। लगे मीडिया वाले न्यूज चैनेल पर जोर शोर से दिखाने, "अन्ना का भरोसा तोडा केजरीवाल ने" । "अन्ना हुए आम आदमी पार्टी से निराश"। अरे, अन्ना जी आम आदमी पार्टी के साथ थे कब ? उनको तो अपनी तरफ से आम आदमी पार्टी और उसके नेता अपना अभिभावक मानते हैं और उनके बताए हुए रास्ते पर चलते हैं । उन्होंने तो कभी कहा ही नहीं कि मैं आम आदमी पार्टी के साथ हूँ। जब वो कभी साथ थे ही नहीं तो उनके अलग होने का सवाल ही कहाँ उठता है ?
लेकिन विरोधियों को तो मौका चाहिए केजरीवाल जी और आम आदमी पार्टी की बुराई करने का। मीडिया को भी टीआरपी के लिए केजरीवाल जी की खबर चाहिए। लगे हैं दोनों ही अन्ना जी के बहाने आम आदमी पार्टी और केजरीवाल जी की लानत-मलामत करने में और दे रहे हैं अपने दिल को तसल्ली। बाकि जो सच है उ त हइए है।
0 टिप्पणियाँ:
टिप्पणी पोस्ट करें