जब भी आम आदमी पार्टी के किसी भी नेता पर कोई मामला बनता है, मीडिया उस नेता को कम, केजरीवाल जी को ज्यादा हाइलाइट करती है।
चाहे वो मामला किसी मंत्री से जुड़ा हो, किसी विधायक से जुड़ा हो, किसी सामान्य नेता से जुड़ा हो या कार्यकर्त्ता से जुड़ा हो। फंसता तो केजरीवाल ही है।
मीडिया जोर-शोर से प्रचारित करने में लग जाती है कि जैसे अब तो केजरीवाल जी पर मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा।
"बुरे फंसे केजरीवाल", "केजरीवाल की मुश्किलें और बढ़ी", "इस बार क्या बच पाएंगे केजरीवाल" ऐसी - ऐसी हेडलाइन्स बनाई जाती है ।
जब कोई मामले से बरी हो जाता है, तब ये कोई चर्चा नहीं करते। कोई हेडलाइन ऐसी नहीं जिसमें लिखा हो, "बच गए केजरीवाल" या "बरी हो गए केजरीवाल" ।
अच्छा, हर बार पुलिस के पास हो न हो, मीडिया के पास जरूर पुख्ता सबूत होते हैं। जिस किसी भी विधायक और नेता के खिलाफ मामला बनता है, मीडिया ऐसे प्रचारित करती है कि जैसे अब तो भगवान ही बचा सकते हैं इनको।
किसी भी मामले में मीडिया ने ये नहीं कहा कि केस कमजोर है, आसानी से जमानत मिल जायेगी या फिर बरी हो जाएंगे।
मीडिया के लिए तो हर मामला पहले वाले मामले से ज्यादा संगीन होता है। ये बात और है कि जब मामला माननीय अदालत के पास जाता है तब जमानत मिलने में ज्यादा देर नहीं लगती है। क्योंकि मामला उतना संगीन नहीं होता जितना प्रचारित किया जाता है।
अभी कल वाला मामला ही ले लीजिये। सत्येंद्र जैन बार-बार कह रहे हैं कि उनको नोटिस मिला है समन नहीं मिला। लेकिन मीडिया के लिए तो ये समन ही है।
सत्येंद्र जैन कह रहे हैं कि उन कंपनियों में उनका निवेश था लेकिन 2013 के बाद से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है उन कंपनियों से।
ये भी कह रहे हैं कि ये सिर्फ री-अससेमेंट है, कोई जाँच का मामला नहीं है। उनको सिर्फ गवाह के रूप में बुलाया गया है।
आयकर विभाग का भी यही कहना है कि उनसे व्यक्तिगत वित्तीय विवरण और आय कर रिटर्न की ही जानकारी माँगी गयी है।
लेकिन मीडिया के लिए तो बुरे फंसे केजरीवाल ! अब क्या होगा केजरीवाल का !
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