ज्यादा से ज्यादा एक - डेढ़ महीने पहले की ही बात है, माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय का दिल्ली सरकार की एक याचिका पर फैसला आया था जिसमें यह साफ किया गया था कि संविधान के तहत दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश ही है और उपराज्यपाल इसके प्रशासनिक प्रमुख हैं। मतलब यह साफ़ हो गया कि दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख मुख्यमंत्री नहीं बल्कि उपराज्यपाल हैं। बहुत से समाचार पत्रों की हेडलाइनें कुछ इस तरह से थीं। जैसे, "उपराज्यपाल ही है दिल्ली के BOSS, अधिकारों की 'जंग' हारे केजरीवाल", "HC से केजरीवाल सरकार को झटका, हाईकोर्ट ने कहा - दिल्ली के 'बॉस' LG ही", "अधिकारों की लड़ाई में केंद्र से हारे केजरीवाल, हाई कोर्ट ने कहा LG हैं 'बॉस' ", "दिल्ली के बॉस हैं उपराज्यपाल, मुंह की खाई केजरीवाल ने ", "हाईकोर्ट का फैसला - दिल्ली के 'बॉस' नजीब जंग केजरीवाल नहीं", आदि आदि।
इसके बाद पिछले हफ्ते ही 9 सितंबर, 2016 को माननीय उच्चतम न्यायालय का भी फैसला आ गया और उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। अब अख़बारों की सुर्खियाँ देख लीजिये, "केजरीवाल को SC से भी झटका, LG ही रहेंगे दिल्ली के बॉस ", "केजरीवाल को SC से झटका, दिल्ली के बॉस बने रहेंगे LG", "सुप्रीम कोर्ट ने भी माना एलजी दिल्ली के बॉस", "SC से भी मायूस हुए AK, LG ही रहेंगे दिल्ली के बॉस, केंद्र सरकार को नोटिस" । न्यूज चैनल्स पर भी इस पर खूब चिल्ला-चिल्लाकर चर्चा होती रही। यानि माननीय अदालत के इस फैसले का खूब प्रचार किया गया कि दिल्ली के प्रशासन की बागडोर मुख्यमंत्री नहीं बल्कि उपराज्यपाल के हाथों में है।
अब जबकि यह बात बिल्कुल साफ हो गयी है कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के बॉस हैं, तो दिल्ली के विकास की जिम्मेदारी किसकी है ? जाहिर है, उपराज्यपाल की ही, है न ? अगर दिल्ली में कोई समस्या है तो उसके समाधान की जिम्मेदारी किसकी है ? अगर दिल्ली की जनता की समस्या का समाधान नहीं हो रहा है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? जो मीडिया अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए सम्पूर्ण देश की जनता को बताती है कि दिल्ली का बॉस उपराज्यपाल है, मुख्यमंत्री नहीं, क्या उसको खुद नहीं पता ? विपक्षी दलों के नेता भी उन्ही के सुर में सुर मिलाते हैं । दिल्ली "डेंगू" और "चिकनगुनिया" से बेहाल, किधर है "केजरीवाल" ? दिल्ली की जनता सिर्फ एक मंत्री के भरोसे, बाकि मंत्री दिल्ली के बाहर। दिल्ली में मच्छरों का आतंक, लेकिन केजरीवाल पंजाब में। इस तरह की बातें हो रही है मीडिया में।
मीडिया और भाजपा-कांग्रेस के नेताओं में से किसी ने ये पूछा कि कहाँ हैं दिल्ली के बॉस ? क्या कर रहे हैं दिल्ली के बॉस ? लेकिन नहीं, क्योंकि इनको तो केजरीवाल को बदनाम करना है। "कुछ नहीं कर रही है दिल्ली सरकार" । क्या करे और कैसे करे दिल्ली सरकार ? केजरीवाल और उनके मंत्रियों का काम तो सिर्फ और सिर्फ उपराज्यपाल महोदय को सलाह देना है। इनके सलाहों को मानने की विवशता भी नहीं है उपराज्यपाल महोदय को। उपराज्यपाल महोदय बिना सलाह लिए भी फैसले ले सकते हैं। फिर मीडिया का ये डबल स्टैंडर्ड क्यों ? केजरीवाल दिल्ली में काम ठीक से नहीं कर रहे, पंजाब चुनाव जीतने में लगे हैं ।
केजरीवाल : LG साहेब दिल्ली सरकार के बिल को पास नहीं कर रहे।
मीडिया : ये उनका अधिकार है।
केजरीवाल : LG साहेब मेरे फैसले को रद्द कर देते हैं, Null and Void लिख देते हैं।
मीडिया : वो दिल्ली के बॉस हैं।
केजरीवाल : मुझे ट्रांसफर पोस्टिंग का भी अधिकार नहीं।
मीडिया : दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं, केंद्रशासित प्रदेश है।
मीडिया : दिल्ली में मच्छरों का आतंक है, क्या कर रहे हैं केजरीवाल ?
केजरीवाल : जी, दिल्ली में साफ सफाई का काम तो नगर निगम का है।
मीडिया : जनता ने आपको चुना है, आपको वोट दिया है।
मीडिया : दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया से परेशान हैं लोग, किधर है केजरीवाल ?
केजरीवाल : जी, दिल्ली के बॉस तो उपराज्यपाल हैं।
मीडिया : ऐसा कह कर आप अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते, दिल्ली की जनता ने आप पर भरोसा किया है।
अजीब हाल है मीडिया का। एक तरफ तो कहती भी है, मानती भी है और प्रचारित भी करती है कि दिल्ली के बॉस नजीब जंग, फिर सारे सवाल केजरीवाल से क्यों ? लेकिन मीडिया को इससे क्या मतलब ? उसको तो किसी भी तरह से केजरीवाल को बदनाम करना है। लेकिन जनता सब समझ रही है। जनता सब देख रही है कि कौन कितना काम कर रहा है। और विपक्षी दल, उनसे तो सिद्धान्तों की उम्मीद करना ही बेकार है। वो तो सत्ता से बाहर होते ही बेचैन हो जाते हैं और जैसे-तैसे सत्ता पाना चाहते हैं।
अब जबकि यह बात बिल्कुल साफ हो गयी है कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के बॉस हैं, तो दिल्ली के विकास की जिम्मेदारी किसकी है ? जाहिर है, उपराज्यपाल की ही, है न ? अगर दिल्ली में कोई समस्या है तो उसके समाधान की जिम्मेदारी किसकी है ? अगर दिल्ली की जनता की समस्या का समाधान नहीं हो रहा है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? जो मीडिया अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए सम्पूर्ण देश की जनता को बताती है कि दिल्ली का बॉस उपराज्यपाल है, मुख्यमंत्री नहीं, क्या उसको खुद नहीं पता ? विपक्षी दलों के नेता भी उन्ही के सुर में सुर मिलाते हैं । दिल्ली "डेंगू" और "चिकनगुनिया" से बेहाल, किधर है "केजरीवाल" ? दिल्ली की जनता सिर्फ एक मंत्री के भरोसे, बाकि मंत्री दिल्ली के बाहर। दिल्ली में मच्छरों का आतंक, लेकिन केजरीवाल पंजाब में। इस तरह की बातें हो रही है मीडिया में।
मीडिया और भाजपा-कांग्रेस के नेताओं में से किसी ने ये पूछा कि कहाँ हैं दिल्ली के बॉस ? क्या कर रहे हैं दिल्ली के बॉस ? लेकिन नहीं, क्योंकि इनको तो केजरीवाल को बदनाम करना है। "कुछ नहीं कर रही है दिल्ली सरकार" । क्या करे और कैसे करे दिल्ली सरकार ? केजरीवाल और उनके मंत्रियों का काम तो सिर्फ और सिर्फ उपराज्यपाल महोदय को सलाह देना है। इनके सलाहों को मानने की विवशता भी नहीं है उपराज्यपाल महोदय को। उपराज्यपाल महोदय बिना सलाह लिए भी फैसले ले सकते हैं। फिर मीडिया का ये डबल स्टैंडर्ड क्यों ? केजरीवाल दिल्ली में काम ठीक से नहीं कर रहे, पंजाब चुनाव जीतने में लगे हैं ।
केजरीवाल : LG साहेब दिल्ली सरकार के बिल को पास नहीं कर रहे।
मीडिया : ये उनका अधिकार है।
केजरीवाल : LG साहेब मेरे फैसले को रद्द कर देते हैं, Null and Void लिख देते हैं।
मीडिया : वो दिल्ली के बॉस हैं।
केजरीवाल : मुझे ट्रांसफर पोस्टिंग का भी अधिकार नहीं।
मीडिया : दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं, केंद्रशासित प्रदेश है।
मीडिया : दिल्ली में मच्छरों का आतंक है, क्या कर रहे हैं केजरीवाल ?
केजरीवाल : जी, दिल्ली में साफ सफाई का काम तो नगर निगम का है।
मीडिया : जनता ने आपको चुना है, आपको वोट दिया है।
मीडिया : दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया से परेशान हैं लोग, किधर है केजरीवाल ?
केजरीवाल : जी, दिल्ली के बॉस तो उपराज्यपाल हैं।
मीडिया : ऐसा कह कर आप अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते, दिल्ली की जनता ने आप पर भरोसा किया है।
अजीब हाल है मीडिया का। एक तरफ तो कहती भी है, मानती भी है और प्रचारित भी करती है कि दिल्ली के बॉस नजीब जंग, फिर सारे सवाल केजरीवाल से क्यों ? लेकिन मीडिया को इससे क्या मतलब ? उसको तो किसी भी तरह से केजरीवाल को बदनाम करना है। लेकिन जनता सब समझ रही है। जनता सब देख रही है कि कौन कितना काम कर रहा है। और विपक्षी दल, उनसे तो सिद्धान्तों की उम्मीद करना ही बेकार है। वो तो सत्ता से बाहर होते ही बेचैन हो जाते हैं और जैसे-तैसे सत्ता पाना चाहते हैं।
Kamal Pant
जवाब देंहटाएं9 hrs ·
9 साल लंबे कार्यकाल में सिर्फ़ 1 केस सुलझाने वाली बरखा शुक्ला थी तो सब ठीक था.. स्वाति मालीवाल ने आ कर सिर्फ़ 1 साल में महिला अपराधों के विभिन्न मामलों में पुलिस को कुल 3,500 नोटिस क्या भेज दिए, यहाँ से वहाँ तक बवाल मच गया.. सारा का सारा सिस्टम स्वाति मालीवाल को कुचल डालने के लिए एकजुट हो गया.. धन्य हो "बेटी बचाओ" और "बहुत हुआ नारी पर वार" का पाखंड करने वाले..
Kamal Pant
जवाब देंहटाएं10 hrs ·
पाकिस्तान ने हमारे सैनिकों के कटे फटे मुर्दा शरीर भेजे थे, जिन्होंने देश भर में उबाल ला दिया था (जिसे चुनाव में जम कर भुनाया गया).. आज हमने अपने ही देश में एक सरकार देखी, जो "राजकीय सम्मान" के नाम पर लकड़ियाँ कम होने की बात कह शहीद के शरीर को टुकड़ों में काट कर जलाती हो.. पर देश में उबाल नहीं आता.. ख़ैर जंतर मंतर पर बुज़ुर्ग सैनिकों को घसीटे जाते उनके सीनों से तमाम वीरता मेडल नोच लिए जाते देख कर भी जिन लोगों के ख़ून में कोई उबाल नहीं आता, राजस्थान की ये घटना तो उनकी नज़र में शायद बहुत ही मामूली हो.. ("मामूली" की परिभाषा चाहो तो जेटली से पूछ लो)
Deepak Saxena
जवाब देंहटाएंOctober 6 at 10:40pm
माफ़ कीजियेगा "मनोहर पर्रीकर जी" हमारे देश की सेना" पाकिस्तान " का मनोबल तब से तोड़ते आई है, जब आप की उम्र लाली -पाप चूसने की रही होगी ! जब पहली बार हमारे देश की सेना ने " पाकिस्तान " को युद्ध में हराया था ,शायद आप पैदा भी नही हुवे थे ,अगर पैदा हुवे भी होंगे तो अपना पिछवाडा साफ़ कराने के लिए दुसरो पर आश्रित रहना पड़ता होगा !सेना को आप क्या "पराक्रम" याद दिलाओगे सर , सिर्फ लड़ने के लिए ही नही ,सीमा पर पहरा देने के लिए भी "पराक्रम"की आवश्यकता पड़ती है ,और सेना ६९ सालो से ,देश की सीमा पर डटी हवी है !इसलिए आप से हाथ जोड़ कर विनती है "पर्रीकर " साहब ,अपनी संगत अच्छे लोगो से रखिये ,संगत का असर आप पर भी होने लगा है ! इतना फेकना अच्छी बात नही है ! देश पहले ही एक" फेकू "से परेशान है ,दूसरे "फेकू" को झेलना बर्दाश्त के बाहर हो जायेगा ! आप का अपना,,,,,,,,,,,, "भूपेंद्र शर्मा"