बिहार प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण राज्य है। जल, जंगल, जमीन में से किसी की भी कमी नहीं है। उपजाऊ खेत हैं, बहुत सी नदियाँ इस राज्य से बहती हैं। लोगों में मेहनत की भी कमी नहीं है। जब और जहाँ बिहारियों को मौका मिला, उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। और क्या चाहिए एक राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए ? लेकिन अभी भी बिहार में गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसको दो जून की रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब होती है। बहुत से लोग कुपोषण के शिकार हैं। स्वास्थ्य सेवा का बुरा हाल है। गरीब जनता का निजी क्लिनिकों और अस्पतालों में जमकर शोषण हो रहा है।
बिहार में शायद ही कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो कभी सत्ता में हिस्सेदार नहीं रही हो। कांग्रेस का तो कई दशकों तक अकंटक राज रहा है। उसके बाद जनता दल की सरकार बनी तो लालू जी मुख्यमंत्री बने, राबड़ी जी मुख्यमंत्री बनी, उसके बाद नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी, और फिर से नीतीश कुमार। भाजपा भी 2005 से 2013 तक सत्ता में भागीदार रही। प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलते गए, सरकारें बदलती गयी लेकिन बिहार और बिहारियों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। जब भी चुनाव होता है, जो पार्टी सत्ता में रहती है वो बड़े सारे कामों की लिस्ट तैयार कर लेती है और दुबारा सत्ता में आने पर इनको करने का वादा करती है।
जो पार्टी विपक्ष में रहती है वो सत्ता पक्ष को निकम्मा साबित करने में लगी रहती है और सत्ता में आने पर खूब विकास करने का वादा करती है। सरकार द्वारा समय-समय पर विकास कार्य के दावे भी किये जाते रहते हैं। लेकिन अभी तक हुआ क्या है ? नीतीश कुमार जब 2005 में मुख्यमंत्री बने तब जनता को बहुत से सपने दिखाकर सत्ता में आए थे। सड़कों का खूब निर्माण हुआ भी। नियोजित शिक्षकों की भी नियुक्ति हुई। और क्या हुआ ? आज मुख्यमंत्री जी अपने 7 निश्चय को पूरा करने की बात करते हैं। इन सात निश्चयों में से एक है "हर घर बिजली लगातार", दूसरा है "हर घर नल का जल", तीसरा है "घर तक पक्की गली नालियाँ", चौथा है "शौचालय निर्माण घर का सम्मान" ।
मतलब कि इन 4 निश्चयों में से कुछ भी विलासिता संबंधी निश्चय नहीं है। मूलभूत सुविधा वाली बात कही गयी है निश्चयों में। खूब तारीफ हो रही है सत्ता पक्ष द्वारा कि नीतीश जी जनता को मूलभूत सुविधा देने के लिए कृत- संकल्प हैं। महागठबंधन के वोटर और सपोर्टर भी खूब खुश होंगे अपने नेताजी के कदम से। लेकिन कोई ये पूछे कि 1990 से ही दोनों भाइयों में से ही किसी एक की पार्टी सरकार रही है बिहार में, तो अभी तक जनता को ये मूलभूत सुविधा क्यों नहीं मिली ? बुराई नहीं है इसमें कि जनता को ये सुविधा मिलने वाली है। लेकिन नीतीश जी को 10 साल लग गए ये सोचने में कि जनता को ये सब सुविधा मिलनी चाहिए। ये 7 निश्चय पहले कार्यकाल में ही पूरे क्यों नहीं हुए ?
भाजपा भी शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरने देती है, जिस दिन सरकार की आलोचना नहीं की हो। उनके लिए तो सरकार बनने के दिन से ही गलत काम कर रही है। एक भी काम की तारीफ नहीं करती कभी भाजपा, शायद शराबबंदी की की हो (मजबूरी में)। भाजपा के शीर्ष से लेकर निचली पदों के नेता और समर्थक, राज्य सरकार को कोसने में लगे रहते हैं। सरकार ये नहीं कर रही, सरकार वो नहीं कर रही। सरकार को ऐसे करना चाहिए सरकार को वैसा करना चाहिए। भाजपा वालों को ये सब बात अब क्यों याद आ रही है ? जब सत्ता में भागीदार थे तब क्यों याद नहीं आई ? अरे, जब आप इतने ही कार्यकुशल हो तो ये सब 2005-2013 के दौरान क्यों नहीं करवा पाए ? 8 साल का समय कम नहीं होता। अगर भाजपा वालों में इच्छा शक्ति होती तो बहुत कुछ विकास हो सकता था एनडीए के शासन काल के दौरान।
आज भी अच्छे स्वास्थ्य के लिए समर्थ लोग बिहार से बाहर, दिल्ली, मुम्बई आदि का ही रुख करते हैं। उच्च शिक्षा के लिए भी लोग अपने बच्चों को कोटा, दिल्ली, बंगलोर आदि ही भेजना पसंद करते हैं। नौकरी के लिए तो पलायन जारी ही है। अच्छी तकनीकी शिक्षा प्राप्त लोगों को बिहार में अच्छी नौकरी भी नहीं मिलती। कौन जिम्मेदार है इस बदहाली के लिए ? क्यों नहीं हो रहा बिहार का विकास ? कब तक चलेगा ऐसा ? कब होगी इस बदहाली का अंत। जाहिर है बिहार की दुर्दशा के लिए बिहार के नेता ही जिम्मेदार हैं। अगर इनमें प्रदेश के विकास की ललक होती तो बिहार और बिहारियों की स्थिति ऐसी नहीं होती।
लेकिन नेता तो चुनाव जीतते ही अपनी प्रगति में लग जाते हैं। जनता की प्रगति का ध्यान नहीं रहता उनको। बस नित-नयी बयानबाजी में लगे रहते हैं। पांचवी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार भी इस बार अपनी प्रगति करने के प्रयास में ही लगे हैं। भिन्न-भिन्न राज्यों में दौरा कर रहे हैं। अपने को अगला प्रधानमंत्री बनाने के लिए विभिन्न दलों के बीच सहमति बनाने में लगे हुए हैं और राज्य को अपने दो नौसिखिये भतीजो के हवाले कर दिया है। न प्रदेश में प्राकृतिक संसाधन की कमी है और न ही सरकार के पास पैसे की कमी है। सिर्फ अभाव है, तो बस इच्छा शक्ति की।
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