आज कल सोशल मीडिया का युग हो गया है। जिसको देखिये, व्हाट्सप्प, फेसबुक और टविटर पर व्यस्त है। पहले ये अमीरों का ही फैशन हुआ करता था, लेकिन अब गरीब तबका भी इसके गिरफ्त में तेजी से आता जा रहा है। कुछ भी हो लोग झट से फोटो खींच कर फेसबुक पर डाल देते हैं और दोस्तों को व्हाट्सप्प कर देते हैं। इंसान के पास दो वक्त की रोटी हो न हो लेकिन फेसबुक और व्हाट्सप्प से लैस मल्टीमीडिया वाला फोन जरूर होना चाहिए। कई लोग तो ऐसे हैं जो इसका इस्तेमाल भी करना नहीं जानते हैं, लेकिन दूसरों की देखा-देखी फेसबुक और व्हाट्सप्प उनको भी चाहिए। दूसरों से पूछ-पूछ कर स्टेटस अपडेट करते रहते हैं।
कोई गाना सुन रहा है तो उसका भी स्टेटस डाल देता है। फीलिंग हैप्पी, फीलिंग सैड, गेटिंग मैरिड जैसे स्टेटस की भी कमी नहीं है। और हाँ, स्टेटस अपडेट करने के बाद 10 लोगों को टैग करना भी नहीं भूलते कुछ लोग। मेरे एक दोस्त हैं, कुछ साल पहले हर रोज सुबह गुड मॉर्निंग और रात को गुड नाईट का स्टेटस डालते और हम जैसे 50 दोस्तों को टैग कर देते। अब जितनी बार भी उस स्टेटस पर कमेंट आता, हम 50 लोगों के मोबाईल में टिंग-टिंग की घंटी के साथ नोटिफिकेशन आता। परेशान ही हो गए थे हम लोग। बाद में शायद उनको भी हमारी परेशानी समझ आई तो उन्होंने ऐसा करना बंद कर दिया।
कई बार तो स्थिति हास्यास्पद भी हो जाती है टैग की वजह से। किसी ने अपडेट किया "Feeling alone" और टैग कर दिया 50 लोगों को। अब उनके दोस्तों को स्टेटस दिखता है, "Feeling alone with XYZ and 50 more". अब भाई जब 50 लोगों के साथ हो तो अकेला कैसे महसूस कर रहे हो ? Geting married का स्टेटस डाल कर 50 लोगों को टैग कर देते हैं, स्टेटस हो जाता है "Geting married with XYZ and 50 more". लोग पूछते हैं, 50 लोगों के साथ शादी कर रहे हो क्या ?
ये तो हुई हंसी मजाक की बात, लेकिन सोशल मीडिया का अब गलत असर भी दिख रहा है। लोग सोशल मीडिया में फोटो शेयर करने के चक्कर में सेल्फी भी खूब ले रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहिए तो सेल्फी के मरीज बन रहे हैं लोग। घर में ही तरह-तरह के मुंह बना कर, कभी मुंह घुमाकर, कभी जुबान टेढ़ी करके तो कभी गर्दन ही टेढ़ी करके सेल्फी लेते हैं लोग। बात यहीं तक रहे फिर भी गनीमत है। लेकिन अब तो कुछ लोगों को सेल्फी का दौरा सा पड़ने लगा है। कही जा रहे हैं, झट से रुक गए, लेने लगे सेल्फी। कोई मौका या जगह का विचार नहीं करते, बस हो जाते हैं शुरू।
सेल्फी की बीमारी से ग्रस्त लोग आज कल अडवेंचरस भी बहुत हो गए हैं। छत के बिलकुल किनारे जाकर , समंदर या नदी के किनारे जाकर या फिर नदी या समंदर के अंदर दूर जाकर सेल्फी लेने की बीमारी भी ज्यादा ही फ़ैल रही है। सेल्फी लेने के चक्कर में कई दुर्घटना भी हो चुकी है, कई लोगों को अपनी जान या फिर अपने हाथ या पैर भी गंवानी पड़ गयी है। लेकिन इससे सबक नहीं सीख रहे हैं लोग। आधुनिकता के दौर में दिखावा करने के लिए जान की बाजी भी लगा रहे हैं कुछ लोग। मतलब कि तकनीक का पूरा दुरूपयोग होने लगा है।
सोशल मीडिया का बुरा असर लोगो के सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर भी खूब पड़ने लगा है। कई बार घर के लोग या फिर दोस्तों की मण्डली साथ में ही बैठी रहती है, लेकिन कोई भी आपस में बात करता नहीं दीखता। बस सबकी उँगलियाँ मोबाईल पर चलती रहती है। देखने वालो को लगता है जैसे कोई बहुत बड़ी मीटिंग चल रही है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे सुलझाए जा रहे हैं। जो लोग सोशल मीडिया की गिरफ्त में नहीं आये हैं उनको बड़ी कोफ़्त होती है। जिससे वो मिलने आये या फिर जो इनसे मिलने आया वो इनसे तो बात कर नहीं रहा, बस मोबाईल पर उँगलियाँ चला रहा है। अब सामने वाले को ज्यादा बुरा न लग जाए तो बीच बीच में उनका हाल भी पूछते रहते हैं।
पहले घर में कोई उत्सव या समारोह होता था तो लोग घर जाकर निमंत्रण देते थे। इसी बहाने मिलना-जुलना भी हो जाता था, दूसरे का कुशल क्षेम भी पूछ लिया करते थे। इससे लोगों में आत्मीयता बढ़ती थी। लेकिन अब तो व्हाट्सप्प पर मेसेज लिखा और भेज दिया सारे दोस्तों और रिश्तेदारों को। कोई पिता भी बनता है तो मिठाई बाद में बांटता है स्टेटस अपडेट पहले करता है। सेकंडो में ही पूरी दुनिया को पता चल गया कि भाई साहेब अब पिता बन गए हैं। लोगों का आपस में मिलना-जुलना तो कम ही हो गया है इस मुए सोशल मीडिया की वजह से।
सच में इस वर्चुअल दुनिया के चक्कर में असली दुनिया से दूर होते जा रहे हैं हम। अनजानों से दोस्ती निभाने के चक्कर में अपने रिश्तों को ठीक से नहीं निभा पा रहे हैं हम लोग।
I agree with you.
जवाब देंहटाएंThanks a lot
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