26 जुलाई, 2016
यूपीए सरकार के दौरान जब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी तो आए दिन केंद्र सरकार द्वारा सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को केंद्र सरकार द्वारा अनुचित तरीके से लाभ पहुँचाने का आरोप लगाया करती थी। उनको कौड़ी के भाव जमीन आवंटित किए जाने का आरोप लगाती थी। आए दिन कहानी सुनाती थी कि कैसे थोड़े सी ही पूँजी लगाकर, रॉबर्ट वाड्रा कितनी महँगी-महँगी जमीनों के मालिक बन बैठे। यह बात भी चर्चा में आयी कि जिस इलाके में कांग्रेस सरकार कोई बड़ी परियोजना लगाने की योजना बनाती थी उसकी जानकारी पहले ही वाड्रा तक पहुँच जाती थी और वो वहाँ के किसान से सस्ते दामों में खूब सारी जमीन खरीद लेते थे। फिर जब सरकार को जमीन की जरूरत पड़ती थी तो वो वाड्रा से महंगे दामों में खरीदती थी।
ऐसा लगता था कि भारतीय जनता पार्टी के पास राबर्ट वाड्रा के खिलाफ खूब सारे सबूत हैं, सिर्फ इसको सत्ता में आने की देर है। इसके बाद तो राबर्ट वाड्रा को जेल में भिजवा के ही छोड़ेगी भारतीय जनता पार्टी। लेकिन केंद्र में भी एनडीए की सरकार बन गयी और राजस्थान में भी जहाँ राबर्ट वाड्रा की जमीन है, उधर भी भाजपा की ही मुख्यमंत्री है। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। राबर्ट वाड्रा की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। या तो भारतीय जनता पार्टी जान-बूझ कर राबर्ट वाड्रा को बचा रही है या फिर झूठ-मूठ के ही चिल्ला रही थी कि राबर्ट वाड्रा भ्रष्टाचारी है।
अभी-अभी एक और नेताजी के दामाद पर केंद्रीय सरकार की खास मेहरबानी होने की खबर चल रही है। मीडिया की खबर को माने तो उत्तर प्रदेश के मंत्री शिवपाल यादव के दामाद को फायदा पहुँचाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नियम एवं आपत्तियों को भी दरकिनार कर दिया गया। उत्तर प्रदेश में बाराबंकी के जिलाधिकारी अजय यादव तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में पोस्टिंग के लिए अर्जी दी जिसको कार्मिक मंत्रालय तीन बार ख़ारिज कर चूका था क्योंकि 9 साल तक मूल काडर में सेवा देने के बाद ही कहीं और डेपुटेशन हो सकती है। अजय यादव को सेवा में आए अभी 5 साल ही हुए थे।
लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय की एक चिट्ठी ने सब कुछ ठीक कर दिया। कार्मिक मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद भी शिवपाल यादव के दामाद अजय यादव के मामले को विशेष मामला माना गया और उसकी 3 साल की उत्तर प्रदेश में डेपुटेशन की अर्जी को मंजूरी दी गयी। ऐसे तो नेता एक-दूसरे के भ्रष्टाचार की खूब बात करते हैं। मामला खूब उछालते हैं। लेकिन ज्योंहि मामला किसी नेता के रिश्तेदार का होता है, न जाने किधर से दरियादिली आ जाती है।
हकीकत शायद यही है कि बेशक नेता एक-दूसरे की बुराइ करे लेकिन एक-दूसरे की मदद करने में नियम कानून की भी परवाह नहीं करते। सब मिले हुए हैं, है न ?
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