1 जुलाई, 2016
जब 2015 में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तो एक गाना खूब बज रहा था महागठबंधन की तरफ से "बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो"। शायद चुनाव प्रबंधक श्री प्रशांत किशोर जी का आईडिया था ये। जनता को भी ये पसंद आया और ले आये नीतीश कुमार को फिर से बिहार की गद्दी पर। भारतीय जनता पार्टी से लड़ने के लिए दोनों भाई करीब 20 साल का वैमनष्य भुला कर एक हुए थे। कैसे लालू-राबड़ी के शासनकाल को नीतीश जी जंगलराज कहते थे और कैसे नीतीश जी के बारे में लालूजी कहते थे कि नीतीशवा के पेट में दांत है।
सब भूल गए दोनों भाई, गिले-शिकवे दूर हो गए सारे, गले मिल लिए, कांग्रेस को भी साथ मिला लिया, सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ने की वचनबद्धता दुहराई और बन गया महागठबंधन। खूब सफलता मिली इस महागठबंधन को और सत्ता पर भी काबिज हो गए। वायदे के मुताबिक नीतीश जी मुख्यमंत्री बने और लालूजी के दोनों लाल बने मंत्री। छोटा लड़का तो उप-मुख्य मंत्री भी बन गया है। बिटिया भी राज्यसभा की सदस्य बन गयी है।
नीतीश कुमार तो फिर से सत्ता में आ गए हैं लेकिन बिहार वालों को बहार ढूंढे से नहीं मिल रहा है। पिछले 10 सालों से मद्धम पड़ा हत्या, लूट-पाट एवं अपहरण उद्योग फिर से अपनी पुरानी स्थिति में आता दिख रहा है। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। पहले तो सिर्फ डाक्टरों, इंजीनियरों और पूंजीपतियों से ही रंगदारी मांगी एवं वसूली जाती थी, लेकिन अब तो पुलिस वालों पर भी नजर-ए-इनायत हो गयी है अपराधियों की। पिछले दिनों ही सहरसा के डीआईजी साहब से 20 लाख की रंगदारी माँगी गयी। मतलब जंगलराज का एडवांस वर्जन आ गया है अब तो।
मैं तो कहता हूँ कि जिस तरह से बिहार में अपहरण, फिरौती, रंगदारी उद्योग फलने फूलने लगा है, सरकार को चाहिए कि बैंकों को व्यक्तिगत ऋण, आवास ऋण, वाहन ऋण की तरह से अपहरण ऋण, फिरौती ऋण, रंगदारी ऋण देने की व्यवस्था करने का निर्देश दें। वर्ना गरीब आदमी फिरौती और रंगदारी की भारी भरकम रकम कैसे दे पाएगा ? और न देगा तो बेमौत नहीं मारा जाएगा ?
अब अपराधियों को भी थोड़ा प्रोफेशनल होना पड़ेगा। लाखों रुपये कैश में जुगाड़ करना जरा मुश्किल-सा होता है। आजकल वैसे भी सरकार के टैक्स नियम ज्यादा ही कड़ाई से पालन किये जाने लगे हैं। इसलिए अपराधियों को चाहिए कि कैश के अलावा चेक, ड्राफ्ट, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और ऑनलाइन पेमेंट का भी विकल्प दे पीड़ितों और उसके परिजनों को। गरीब पीड़ितों के लिए आसान किस्तों का भी विकल्प देना चाहिए अपराधियों द्वारा।
कैसी परिभाषा गढ़ दी है नीतीश बाबू ने "बहार" की ? जनता परेशान हो रही है अमीर-गरीब, व्यवसायी-नौकरीहारा, किसान-मजदूर, सभी परेशान हैं इस बहार में। लेकिन इस सबसे सुशासन बाबू को कोई मतलब नहीं है। वो तो अपने दोनों भतीजो को खड़ाऊं सौंप कर निकल पड़े हैं प्रधानमंत्री बनने का जुगाड़ करने। चाचा जी के खड़ाऊ के माध्यम से दोनों भतीजे बिहार की सत्ता सम्भाल रहे हैं। न जाने कैसा आत्मविश्वास भर दिया है लालू जी ने अपने छोटे भाई दे दिमाग में, बिहार की जनता को छोड़कर पूरे देश का दौरा करने, जनमत जुटाने निकल पड़े हैं।
नीतीश जी को लगता है कि अगर मोदी जी एक राज्य के मुख्यमंत्री हो कर प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो वो क्यों नहीं ? और जब आत्म विश्वास भरने वाले अपने बड़े भैया हो तो, इंसान ज्यादा ही आशान्वित हो जाता है। उनको लगता है कि देश कि जनता तो जैसे उनको ही वोट देने के लिए तैयार बैठी है। सिर्फ 2019 आने की देर है, इनके प्रधान मंत्री बनने में कोई देर नहीं है। अब ये जरूरी जादुई अंक कैसे प्राप्त करेंगे इसका दोनों भाइयों ने कोई हिसाब लगाया है कि नहीं ये भी नहीं पता। बिहार की जनता का चाहे कुछ भी हो, नीतीश जी के प्रधान मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के चलते लालू जी के दोनों लालों का बिहार में राज करने का रास्ता जरूर साफ़ हो गया है।
नीतीश कुमार तो फिर से सत्ता में आ गए हैं लेकिन बिहार वालों को बहार ढूंढे से नहीं मिल रहा है। पिछले 10 सालों से मद्धम पड़ा हत्या, लूट-पाट एवं अपहरण उद्योग फिर से अपनी पुरानी स्थिति में आता दिख रहा है। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। पहले तो सिर्फ डाक्टरों, इंजीनियरों और पूंजीपतियों से ही रंगदारी मांगी एवं वसूली जाती थी, लेकिन अब तो पुलिस वालों पर भी नजर-ए-इनायत हो गयी है अपराधियों की। पिछले दिनों ही सहरसा के डीआईजी साहब से 20 लाख की रंगदारी माँगी गयी। मतलब जंगलराज का एडवांस वर्जन आ गया है अब तो।
मैं तो कहता हूँ कि जिस तरह से बिहार में अपहरण, फिरौती, रंगदारी उद्योग फलने फूलने लगा है, सरकार को चाहिए कि बैंकों को व्यक्तिगत ऋण, आवास ऋण, वाहन ऋण की तरह से अपहरण ऋण, फिरौती ऋण, रंगदारी ऋण देने की व्यवस्था करने का निर्देश दें। वर्ना गरीब आदमी फिरौती और रंगदारी की भारी भरकम रकम कैसे दे पाएगा ? और न देगा तो बेमौत नहीं मारा जाएगा ?
अब अपराधियों को भी थोड़ा प्रोफेशनल होना पड़ेगा। लाखों रुपये कैश में जुगाड़ करना जरा मुश्किल-सा होता है। आजकल वैसे भी सरकार के टैक्स नियम ज्यादा ही कड़ाई से पालन किये जाने लगे हैं। इसलिए अपराधियों को चाहिए कि कैश के अलावा चेक, ड्राफ्ट, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और ऑनलाइन पेमेंट का भी विकल्प दे पीड़ितों और उसके परिजनों को। गरीब पीड़ितों के लिए आसान किस्तों का भी विकल्प देना चाहिए अपराधियों द्वारा।
कैसी परिभाषा गढ़ दी है नीतीश बाबू ने "बहार" की ? जनता परेशान हो रही है अमीर-गरीब, व्यवसायी-नौकरीहारा, किसान-मजदूर, सभी परेशान हैं इस बहार में। लेकिन इस सबसे सुशासन बाबू को कोई मतलब नहीं है। वो तो अपने दोनों भतीजो को खड़ाऊं सौंप कर निकल पड़े हैं प्रधानमंत्री बनने का जुगाड़ करने। चाचा जी के खड़ाऊ के माध्यम से दोनों भतीजे बिहार की सत्ता सम्भाल रहे हैं। न जाने कैसा आत्मविश्वास भर दिया है लालू जी ने अपने छोटे भाई दे दिमाग में, बिहार की जनता को छोड़कर पूरे देश का दौरा करने, जनमत जुटाने निकल पड़े हैं।
नीतीश जी को लगता है कि अगर मोदी जी एक राज्य के मुख्यमंत्री हो कर प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो वो क्यों नहीं ? और जब आत्म विश्वास भरने वाले अपने बड़े भैया हो तो, इंसान ज्यादा ही आशान्वित हो जाता है। उनको लगता है कि देश कि जनता तो जैसे उनको ही वोट देने के लिए तैयार बैठी है। सिर्फ 2019 आने की देर है, इनके प्रधान मंत्री बनने में कोई देर नहीं है। अब ये जरूरी जादुई अंक कैसे प्राप्त करेंगे इसका दोनों भाइयों ने कोई हिसाब लगाया है कि नहीं ये भी नहीं पता। बिहार की जनता का चाहे कुछ भी हो, नीतीश जी के प्रधान मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के चलते लालू जी के दोनों लालों का बिहार में राज करने का रास्ता जरूर साफ़ हो गया है।
0 टिप्पणियाँ:
टिप्पणी पोस्ट करें