5 जून, 2016
आखिर सरकारी कंपनियों की दुर्दशा क्यों हो रही है दिन-प्रतिदिन ? अब सरकार के पास पैसे की कमी तो है नहीं । कोई भी प्राइवेट कंपनी को ले लीजिए, उनके पास सरकारी कंपनी से ज्यादा पैसा तो नहीं हो सकता न निवेश करने के लिए ? फिर भी उनकी सेवा बहुत उत्तम होती है। दूसरी तरफ खूब पैसे लगाने के बावजूद भी सरकारी कम्पनी वैसी सेवा नहीं दे पाती। ऐसा क्यों ? सीधा सा कारण है, भ्रष्टाचार। सरकार के पास पैसे की कमी नहीं है, लेकिन पैसे भ्रष्टाचार के कारण पैसे का सदुपयोग नहीं हो पता है ?
जितना पैसा निवेश करती है सरकार अपनी कंपनियों पर क्या सच में उतना पैसा निवेश हो पाता है ? दूर-संचार विभाग हो ही ले लीजिए। भारत संचार निगम लिमिटेड और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड नामक दो कम्पनियाँ है भारत सरकार की। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए इन्होने मोबाईल कॉल की दरें सबसे कम रखी हैं। लेकिन सेवा की गुणवत्ता मत पूछिए। जब भी डायल करो, ज्यादातर सिग्नल व्यस्त ही मिलेगा। बड़ी मुश्किल से नंबर लगता भी है तो कभी उधर की आवाज नहीं आ रही तो कभी इधर से नहीं जा रही। कभी-कभी आवाज सुनने के लिए कानों को बहुत परिश्रम करनी पड़ती है। चिल्ला-चिल्ला कर बोलना पड़ता है।
इन दोनों कंपनियों की सेवा की गुणवत्ता में कमी के कारण ही तो निजी कंपनियों के मजे हैं। उनके पास सरकार के जितना पैसा नहीं है निवेश करने के लिए, लेकिन उनकी सेवाओं की गुणवत्ता देख लीजिए, एक दम टनाटन। तभी तो लोग इसके दीवाने हुए पड़े हैं। अब सस्ती काल दरों से आकर्षित हो कर लोग सरकारी कंपनियों का कनेक्शन ले तो लेते हैं, लेकिन ज्योहीं परेशानियों से दो-चार होते हैं तो भाग कर निजी कंपनियों की महँगी सेवा ही लेनी पड़ती है।
पहले तो पुराना नंबर होने के कारण लोग झेलते रहते थे कि नंबर बदल जाएगा। लेकिन, जब से मोबाईल नंबर पोर्टिबिलिटी सेवा शुरू हुई है, लोग झट से कंपनी को बदलने लगे हैं। मोदी जी जब प्रचण्ड बहुमत से प्रधानमंत्री बने थे, तब बहुत उम्मीद थी कि सरकारी कंपनियों के भाग्य जगेंगे। इनकी स्थिति सुधरेगी। लेकिन 2 साल होने को आए। ऐसी कोई क्रांति नहीं हुई है और न ही सरकार की कोई ऐसी नीति भी आई है जिससे निकट भविष्य में उम्मीद जगे। तब तक तो निजी कंपनियों की बल्ले बल्ले है।
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