7 जून, 2016
कहने में तो अटपटा लगता है और सुनने में और भी ज्यादा। लेकिन क्या करें ? जो हकीकत है, सो है। काफी सालों से बिहार में लालू जी एवं राबड़ी जी के मुख्यमंत्रित्व काल को जंगलराज की संज्ञा देते रहे हैं कुछ लोग। नीतीश जी तो इस जंगलराज के खौफ की बदौलत लगातार 10 साल तक शासन भी करते रहे बिहार में। अब ये अलग बात है कि जिनके कार्यकाल को जंगलराज कह कर और जंगलराज का खौफ दिखाकर 2 चुनाव लड़े बिहार विधानसभा के, 2015 का विधानसभा चुनाव उन्ही लोगों के साथ मिलकर लड़े और उन्ही की पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री भी बने हैं। और तो और, उन्ही लोगों के समर्थन की बदौलत प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पूरी होने की आस लगाए बैठे हैं।
बिहार, वहां के पिछड़ेपन, बढ़ते अपराध और जंगलराज की चर्चा तो बहुतों बार की जा चुकी है। जब भी इस मुद्दे पर चैनलों पर चर्चा होती है , अचानक से उनकी टीआरपी की वृद्धि हो जाती है। लेकिन इस बार तो मामला अलग है। इस बार तो दिल्ली में जंगलराज होने की बात कही जा रही है। कहने वाले भी कोई विरोधी या विपक्षी दल के नेता नहीं, बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री केजरीवाल जी हैं। अब भाजपा और कांग्रेस के नेता भी कन्फ्यूजन में हैं कि इस बयान की निंदा करें या प्रशंसा करें। अगर प्रशंसा करते हैं तो इसका सीधा सीधा समर्थन केजरीवाल जी को जाता है। अगर निंदा करते हैं तो जनता की नज़रों में गिरने का खतरा है।
अब दूसरा प्रदेश होता तो विपक्षी दल खूब चुटकी लेते, कहते कि देख लो प्रदेश का मुख्यमंत्री ही स्वीकार कर रहा है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। लगे हाथ मुख्यमंत्री का इस्तीफा भी मांग लेते विपक्षी दलों के नेता। क्या पता सम्बद्ध प्रदेश के राज्यपाल मुख्यमंत्री की इस स्वीकारोक्ति पर राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा भी कर देते। लेकिन चूँकि दिल्ली आधा राज्य है इसलिए ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। यहाँ कानून व्यवस्था सहित कई मामले उप-राज्यपल महोदय के माध्यम से सीधे-सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में है।
अब चूँकि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है तो यहाँ होने वाले अपराधों के नियंत्रण में असफल रहने पर खिंचाई किसकी होगी ? एक बात तो बिलकुल सत्य है कि दिल्ली में अपराध दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे अपराधियों के मन में बिलकुल ही खौफ नहीं रह गया हो कानून का। छोटी-छोटी बच्चियों से बलात्कार के मामले सुनने को मिलते रहते हैं। दिन-दहाड़े लूटमार, हत्या की वारदात होती रहती है। महिलाओं के प्रति अपराध भी बढ़ते ही जा रहे हैं। जब कोई वारदात हो जाती है तब अपराधियों की धर-पकड़ में पुलिस की चुस्ती दिखती है।
लेकिन जरूरत इस बात की है कि अपराधियों के मन में पुलिस, कानून और सजा का इतना खौफ हो कि वो कोई भी अपराध करने की सोचे ही न। बिहार, उत्तरप्रदेश जैसे राज्य वहां होने वाले अपराध के लिए बदनाम तो हैं, लेकिन दिल्ली में भी अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहा। जब राज्य सरकार द्वारा दिल्ली पुलिस को प्रदेश सरकार के अंतर्गत लाने की मांग की जाती है तो तर्क दिया जाता है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र है, यहाँ की कानून-व्यवस्था सर्वोत्कृष्ट एवं चाक-चौबंद होनी चाहिए। इसलिए दिल्ली पुलिस को केंद्र सरकार के अधीन ही होना चाहिए। क्या यही सर्वोत्कृष्ट कानून- व्यवस्था है ? कहीं से नहीं लगता कि हम देश के सबसे सुरक्षित हिस्से में रह रहे हैं।
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