5 जून, 2016
सुना है कि शुक्रवार को बिहार इंटरमीडिएट परीक्षा में सफल टॉप 5 परीक्षार्थियों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। एक टॉपर तो शायद बीमार थी इसलिए पहुंची ही नहीं। कुल 13 लोग सम्मिलित हुए थे जिसमें से साइंस टॉपर सौरभ और राहुल असफल रहे, उनका परिणाम रद्द कर दिया गया है। जिस स्कूल से ये दोनों पढ़े थे उस स्कूल की भी मान्यता भी रद्द कर दी गयी है। सरकार अपनी तरफ से पूरी तत्परता दिखा कर कदम उठा रही है। शायद जांच समिति भी बना दी गयी है। उसकी रिपोर्ट आने के बाद कुछ और लोगों को सजा मिलेगी ऐसा मुमकिन है।
लेकिन बिहार की छवि पर जो गहरा दाग लगा है उसका क्या होगा ? देश और विदेश में कितनी बदनामी हुई है बिहार की इस बात का जरा सा भी इल्म है हुक्मरानों को ? हम लोग कहते नहीं थकते थे कि बिहार में प्रतिभा की खान है। भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद जी से लेकर प्रशांत किशोर तक के उदहारण देते थे। बहुत गर्व का अनुभव करते थे। अब लोग हमें सौरभ, राहुल, और रूबी का उदाहरण देंगे। किस-किस को समझाते रहेंगे कि भैया जिन लोगों की प्रतिभा संदेह के दायरे में थी उनका पुनर्परीक्षा ले लिया गया है और सरकार किसी भी दोषी को नहीं बख्शेगी।
जैसे पतीले में 2 - 4 चावल पका हुआ निकल जाय तो पूरे पतीले के चावल को पका हुआ मान कर चूल्हा बंद कर देते हैं। ऐसा ही नहीं होगा क्या बिहार के साथ ? लोग तो समझेंगे कि बिहार में ऐसे ही पास एवं टॉप कर जाते हैं लोग। जब टॉपर का ये हाल है तो बाकियों का क्या होगा। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही जा रही है। कुछ को सजा मिल भी गई है। लेकिन नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए किसी का इस्तीफा नहीं आया है। वैसे नैतिक जिम्मेदारी के आधार आज कल इस्तीफा सिर्फ माँगा जाता है, कोई देता नहीं है।
लेकिन जो व्यक्ति अतीत में रेल दुर्घटना होने पर नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे सकता है, आज वो प्रदेश का मुख्यमंत्री है तो ऐसी ही नैतिकता प्रदेश का शिक्षा मंत्री क्यों नहीं दिखा सकता ? ठीक है, शिक्षामंत्री की कोई सीधी गलती नहीं है इसमें, लेकिन नीतीश जी की भी तो कोई गलती नहीं थी रेल दुर्घटना में। लेकिन उन्होंने इस्तीफा देकर मिसाल कायम की थी। शायद आखिरी बार किसी ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था।
जैसी तत्परता सरकार अभी दोषियों को ढूँढ़ने में और उनको सजा देने में दिखा रही है वैसी तत्परता अगर कदाचार रोकने में दिखाई होती तो आज बिहार की इतनी बदनामी नहीं हुई होती। लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है ? सिर्फ चेहरा साफ़ करने की कार्रवाई ही की जा सकती है। जो होना था वो तो हो गया। लेकिन भविष्य में अति-सावधान रहने की जरूरत है परीक्षा समिति एवं शिक्षा मंत्रालय को। ताकि ऐसी घटना की पुनरावृति नहीं हो सके। गलती से सीखा ही जा सकता है उसको बदला तो नहीं जा सकता।
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