24 जून, 2016
डाक्टर को हमारे समाज में भगवान के बाद दूसरा स्थान दिया गया है। ऐसा इसलिए कि वही शख्स बीमार व्यक्ति को राहत देता है, उसको मौत के मुंह से बचाकर लाने की क्षमता रखता है। समाज में डाक्टरों की खास इज्जत होती है। जब इंसान का शारीरिक कष्ट एक हद से आगे बढ़ जाता है तो ऐसे में उसको एक डाक्टर से ही उम्मीद होती है कि उससे इलाज करवाकर उसे कष्ट से आराम मिलेगा। ऐसे में इंसान अपनी क्षमता अनुसार बढ़िया से बढ़िया डाक्टर से इलाज करवाना चाहता है।
पैसे खर्च होने की परवाह न करके बीमार बस ऐसी जगह इलाज करवाना चाहता है जहाँ उसका इलाज कुशल डाक्टर से हो। जो लोग ज्यादा पैसा खर्च कर सकते हैं वो शहर के नामी हॉस्पिटल में इलाज करवाना चाहते हैं ताकि वहाँ अधिक कुशल डाक्टर मिलेंगे, अच्छी सुविधा मिलेगी। कहने का मतलब कि अपने स्वास्थय के प्रति कोई भी इंसान जरा सी भी लापरवाही नहीं होने देना चाहता है। लेकिन अगर इंसान अपनी तरफ से कोई लापरवाही न करे और डाक्टर ही लापरवाही कर के गलत इलाज कर दे, तो क्या बीतेगी बीमार व्यक्ति और उसके परिवार वालों पर, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
पैसे खर्च होने की परवाह न करके बीमार बस ऐसी जगह इलाज करवाना चाहता है जहाँ उसका इलाज कुशल डाक्टर से हो। जो लोग ज्यादा पैसा खर्च कर सकते हैं वो शहर के नामी हॉस्पिटल में इलाज करवाना चाहते हैं ताकि वहाँ अधिक कुशल डाक्टर मिलेंगे, अच्छी सुविधा मिलेगी। कहने का मतलब कि अपने स्वास्थय के प्रति कोई भी इंसान जरा सी भी लापरवाही नहीं होने देना चाहता है। लेकिन अगर इंसान अपनी तरफ से कोई लापरवाही न करे और डाक्टर ही लापरवाही कर के गलत इलाज कर दे, तो क्या बीतेगी बीमार व्यक्ति और उसके परिवार वालों पर, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
अभी 2-3 दिन पहले ही खबर आई कि दिल्ली में एक नामी निजी अस्पताल में डाक्टर साहेब ने मरीज की बाईं टांग के बदले दाईं टांग का आपरेशन कर दिया। डाक्टर एवं अस्पताल के अपने-अपने दलील हो सकते हैं लेकिन गलती किसी की भी हो, मरीज का नुकसान तो हो गया। नामी एवं महंगे अस्पताल या डाक्टर के पास लोग यही सोच कर जाते हैं कि वहाँ पक्का इलाज होगा, लेकिन अगर ऐसी जगहों पर भी इस तरह की लापरवाही हो तो इंसान किधर जाए, किस पर भरोसा करे ?
ऐसा नहीं है कि इस तरह का मामला पहली बार आया है। इससे पहले भी देश के अलग अलग हिस्से में डाक्टरों की लापरवाही के किस्से सुनने को मिलते रहते हैं। हर बार अलग अलग दलीलें दी जाती है। डाक्टर एवं अस्पताल अपने को पाक साफ़ बताते हैं और मरीज के परिजन डाक्टर एवं अस्पताल को दोषी ठहराते हैं। कई बार मरीज के परिजनों द्वारा गुस्से में मार-पीट की जाने की भी खबर आती रहती है, जो कि कहीं से भी जायज नहीं ठहराया सकता। किसी की जिम्मेदारी तय कर देने से जो नुकसान हो गया उसकी भरपाई नहीं हो जाती।
समझ में नहीं आता कि डाक्टरी जैसे महत्वपूर्ण एवं गम्भीर पेशे को कुछ लोग गम्भीरता से क्यों नहीं लेते ? कुछ बुरे लोगों की वजह से पूरी बिरादरी बदनाम होती है। बेजान चीजों के साथ काम करने वाले भी बड़ी गम्भीरता से काम करते हैं। एक दरजी भी कपडे सिलते समय सभी प्रक्रिया का ध्यान रखता है। लेकिन जिस पेशे में किसी की जान का मामला हो उसमें लापरवाही करना कहीं से भी क्षम्य नहीं है। ये बहुत बड़ा अपराध होने के साथ साथ पाप भी है।
ऐसा नहीं है कि इस तरह का मामला पहली बार आया है। इससे पहले भी देश के अलग अलग हिस्से में डाक्टरों की लापरवाही के किस्से सुनने को मिलते रहते हैं। हर बार अलग अलग दलीलें दी जाती है। डाक्टर एवं अस्पताल अपने को पाक साफ़ बताते हैं और मरीज के परिजन डाक्टर एवं अस्पताल को दोषी ठहराते हैं। कई बार मरीज के परिजनों द्वारा गुस्से में मार-पीट की जाने की भी खबर आती रहती है, जो कि कहीं से भी जायज नहीं ठहराया सकता। किसी की जिम्मेदारी तय कर देने से जो नुकसान हो गया उसकी भरपाई नहीं हो जाती।
समझ में नहीं आता कि डाक्टरी जैसे महत्वपूर्ण एवं गम्भीर पेशे को कुछ लोग गम्भीरता से क्यों नहीं लेते ? कुछ बुरे लोगों की वजह से पूरी बिरादरी बदनाम होती है। बेजान चीजों के साथ काम करने वाले भी बड़ी गम्भीरता से काम करते हैं। एक दरजी भी कपडे सिलते समय सभी प्रक्रिया का ध्यान रखता है। लेकिन जिस पेशे में किसी की जान का मामला हो उसमें लापरवाही करना कहीं से भी क्षम्य नहीं है। ये बहुत बड़ा अपराध होने के साथ साथ पाप भी है।
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