25 जून, 2016
दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव बढ़ता ही जा रहा है। सबसे पहले दिल्ली की अपराध निरोधक शाखा पर केंद्र सरकार द्वारा एक उच्च अधिकारी नियुक्त कर कब्ज़ा करने के आरोप लगे। इसके बाद दिल्ली सरकार के अधिकतर फैसले को आए दिन एलजी साहब द्वारा निरस्त कर दिए जाने की बात तो हो ही रही थी। उसके बाद जो 14 बिल दिल्ली विधानसभा द्वारा पास करके केंद्र की मंजूरी के लिए भेजे गए थे वो करीब एक-डेढ़ साल तक केंद्र के पास लटके रहने के बाद अब वापस कर दिए गए हैं।
अब जनता को सिर्फ ये मालूम है कि 14 बिल वापस कर दिए गए हैं। इन बिलों का महत्त्व क्या है ये जानने की ज्यादा जरुरत है। इन बिलों पर गौर किया जाय तो पता चलता है कि एक बिल वो है जिसके तहत नेताजी सुभाष इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया था। इसके माध्यम से इसकी सीटों को 3400 से बढाकर 12000 करने का प्रस्ताव था। इससे दिल्ली के विद्यार्थियों को कितना फायदा होता, आसानी से सोचा जा सकता है।
दूसरा बिल है प्राइवेट स्कूलों से सम्बंधित। इसके माध्यम से निजी विद्यालयों को रेगुलेट करने के साथ-साथ बढ़ी हुई फ़ीस वापस करने का भी प्रावधान है। दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी कितनी बढ़ गयी है, ये बात किसी से छुपी नहीं है। इस बिल के पास हो जाने से दिल्ली में परेशान अभिभावकों को कितनी राहत मिलती इसका अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं है। शिक्षा का व्यवसायीकरण रोकने की दिशा में इस बिल का बहुत महत्त्व है।
तीसरा बिल नर्सरी एडमिशन से सम्बंधित है। इसके तहत एंट्री लेवल के क्लास में इंटरव्यू लेने पर 5 से 10 लाख रूपए की पेनाल्टी का प्रावधान किया गया है। आज एक आम आदमी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की सोच भी नहीं सकता। इंटरव्यू के नाम पर गरीबों के बच्चों को नामांकन देने से मना कर दिया जाता है बहुत से निजी विद्यालयों द्वारा।
चौथे बिल में सरकारी कर्मचारियों को ज्यादा जवाबदेह बनाने की बात है। इसमें जनता के किसी भी काम में बेवजह देर करने पर सम्बंधित सरकारी कर्मचारी के वेतन में कटौती का प्रस्ताव है। इससे सरकारी दफ्तरों के हो रही लेट-लतीफी ख़त्म हो जाती। भ्रष्टाचार भी ख़त्म हो जाता। काम जल्दी करने के एवज में कोई भी कर्मचारी नजराना नहीं माँग पाता।
एक बिल मजदूरों की भलाई के लिए लाया गया है। इसमें लेबर नियमों का उलंघन करने पर कड़ी सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इसके डर से मजदूरों का हक़ कोई नहीं मार पाता। एक बिल में बलात्कार एवं अपहरण के मामलों में मजिस्ट्रेट जांच के दायरे को ज्यादा बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
नो डिटेंशन पॉलिसी के तहत कक्षा आठ तक के विद्यार्थियों को वार्षिक परीक्षा में फेल नहीं किया जाता है। इससे बच्चे पढाई के प्रति गम्भीर ही नहीं हो पाते। पहले माँ-बाप या शिक्षक बच्चों को फेल हो जाने का डर दिखाकर अधिक परिश्रम करने को प्रेरित करते थे। लेकिन यूपीए सरकार द्वारा लायी गयी इस नीति को अपनाने के बाद तो ज्यादा बच्चो की पढाई के प्रति गम्भीरता ही ख़त्म हो गयी। इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर बहुत असर होने लगा है। इसी को ख़त्म करने के लिए एक बिल पास किया गया था लेकिन यह भी केंद्र सरकार द्वारा लौटा दिया गया है।
दिल्ली में वैट संसोधन से सम्बंधित बिल, जिसमे टैक्स चोरो के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है, के अलावा दिल्ली सरकार के मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, विपक्ष के नेता एवं विधायकों के वेतन एवं भत्ते में वृद्धि से सम्बंधित बिल के साथ साथ बहुप्रतीक्षित जनलोकपाल बिल भी इन 14 बिलों में शामिल है।
इन बिलों में से सिर्फ वेतन वृद्धि वाले बिल पर ही भाजपा नेताओं ने खूब हल्ला मचाया था। अगर इस बिल को छोड़कर कर भी सारे बिल केंद्र सरकार द्वारा स्वीकार कर लिए जाते तो देश वासियों के तो नहीं पर दिल्ली वासियों के अच्छे दिन जरूर आ जाते। कहा जा रहा है कि इसमें प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। जब प्रक्रिया का पालन न होने के आधार पर ही बिल को वापस करना था तो केंद्र सरकार ने इसको इतने दिनों तक अपने पास लटका के क्यों रखा ?
जबकि जानकारों का मानना है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि बिना पूर्व अनुमति के विधानसभा द्वारा बिल को पास करके केंद्र की स्वीकृति के लिए भेज गया है। लेकिन केन्द्र सरकार की दलील है कि ऐसा सिर्फ इमरजेंसी की हालत में ही हो सकता है। अब देखते हैं इस पर दिल्ली सरकार क्या रुख अख्तियार करती है।
दूसरा बिल है प्राइवेट स्कूलों से सम्बंधित। इसके माध्यम से निजी विद्यालयों को रेगुलेट करने के साथ-साथ बढ़ी हुई फ़ीस वापस करने का भी प्रावधान है। दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी कितनी बढ़ गयी है, ये बात किसी से छुपी नहीं है। इस बिल के पास हो जाने से दिल्ली में परेशान अभिभावकों को कितनी राहत मिलती इसका अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं है। शिक्षा का व्यवसायीकरण रोकने की दिशा में इस बिल का बहुत महत्त्व है।
तीसरा बिल नर्सरी एडमिशन से सम्बंधित है। इसके तहत एंट्री लेवल के क्लास में इंटरव्यू लेने पर 5 से 10 लाख रूपए की पेनाल्टी का प्रावधान किया गया है। आज एक आम आदमी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की सोच भी नहीं सकता। इंटरव्यू के नाम पर गरीबों के बच्चों को नामांकन देने से मना कर दिया जाता है बहुत से निजी विद्यालयों द्वारा।
चौथे बिल में सरकारी कर्मचारियों को ज्यादा जवाबदेह बनाने की बात है। इसमें जनता के किसी भी काम में बेवजह देर करने पर सम्बंधित सरकारी कर्मचारी के वेतन में कटौती का प्रस्ताव है। इससे सरकारी दफ्तरों के हो रही लेट-लतीफी ख़त्म हो जाती। भ्रष्टाचार भी ख़त्म हो जाता। काम जल्दी करने के एवज में कोई भी कर्मचारी नजराना नहीं माँग पाता।
एक बिल मजदूरों की भलाई के लिए लाया गया है। इसमें लेबर नियमों का उलंघन करने पर कड़ी सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इसके डर से मजदूरों का हक़ कोई नहीं मार पाता। एक बिल में बलात्कार एवं अपहरण के मामलों में मजिस्ट्रेट जांच के दायरे को ज्यादा बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
नो डिटेंशन पॉलिसी के तहत कक्षा आठ तक के विद्यार्थियों को वार्षिक परीक्षा में फेल नहीं किया जाता है। इससे बच्चे पढाई के प्रति गम्भीर ही नहीं हो पाते। पहले माँ-बाप या शिक्षक बच्चों को फेल हो जाने का डर दिखाकर अधिक परिश्रम करने को प्रेरित करते थे। लेकिन यूपीए सरकार द्वारा लायी गयी इस नीति को अपनाने के बाद तो ज्यादा बच्चो की पढाई के प्रति गम्भीरता ही ख़त्म हो गयी। इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर बहुत असर होने लगा है। इसी को ख़त्म करने के लिए एक बिल पास किया गया था लेकिन यह भी केंद्र सरकार द्वारा लौटा दिया गया है।
दिल्ली में वैट संसोधन से सम्बंधित बिल, जिसमे टैक्स चोरो के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है, के अलावा दिल्ली सरकार के मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, विपक्ष के नेता एवं विधायकों के वेतन एवं भत्ते में वृद्धि से सम्बंधित बिल के साथ साथ बहुप्रतीक्षित जनलोकपाल बिल भी इन 14 बिलों में शामिल है।
इन बिलों में से सिर्फ वेतन वृद्धि वाले बिल पर ही भाजपा नेताओं ने खूब हल्ला मचाया था। अगर इस बिल को छोड़कर कर भी सारे बिल केंद्र सरकार द्वारा स्वीकार कर लिए जाते तो देश वासियों के तो नहीं पर दिल्ली वासियों के अच्छे दिन जरूर आ जाते। कहा जा रहा है कि इसमें प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। जब प्रक्रिया का पालन न होने के आधार पर ही बिल को वापस करना था तो केंद्र सरकार ने इसको इतने दिनों तक अपने पास लटका के क्यों रखा ?
जबकि जानकारों का मानना है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि बिना पूर्व अनुमति के विधानसभा द्वारा बिल को पास करके केंद्र की स्वीकृति के लिए भेज गया है। लेकिन केन्द्र सरकार की दलील है कि ऐसा सिर्फ इमरजेंसी की हालत में ही हो सकता है। अब देखते हैं इस पर दिल्ली सरकार क्या रुख अख्तियार करती है।
nice
जवाब देंहटाएंथैंक्स
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