30 मई, 2016
बिहार में 10वीं कक्षा का रिजल्ट कल ही आया है। एक दैनिक समाचार पत्र के मुताबिक आधा से ज्यादा छात्र असफल रहे। बड़े ही दुःख की बात है। ऐसा प्रदेश जहाँ विश्व का प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा में रहा हो। जहाँ बड़े -बड़े लोगों को ज्ञान की प्राप्ति हुई हो, उस प्रदेश के लिए निश्चित तौर पर ये चिंता की बात है। राज्य के शिक्षा मंत्री जी कहते हैं कि इस रिजल्ट से छात्रों की असली प्रतिभा सामने आई है। तो इतने प्रतिशत छात्र ही प्रतिभाशाली क्यों हैं, मंत्री जी ? पहले तो परीक्षा परिणाम बहुत अच्छे होते थे। राज्य में शिक्षा का स्तर अचानक से कम क्यों हो गया ? क्या राज्य सरकार के स्कूलों में शिक्षण कार्य ठीक से नहीं हो रहा है ? या फिर बच्चे मन लगाकर नहीं पढ़ रहे हैं ?
इस विषय में क्या सरकार का या फिर स्कूलों का कोई दायित्व नहीं है ? बिहार में भी मशरूम की तरह कोचिंग इंस्टिट्यूट खुल गए हैं। ये फीस भी अच्छी-खासी लेते हैं। जिस कोचिंग का जितना नाम उतनी ही ज्यादा फीस। रिजल्ट के 2 - 4 दिन के अंदर ही कोचिंग इंस्टिट्यूट वाले अपने सफल छात्रों की सूची उनके फोटो या बिना फोटो के बड़े ही गर्व के साथ अंक एवं डिवीजन सहित शहर की दीवारों पर चिपकवा देते हैं। ताकि लोगों को लगे कि यहाँ बहुत अच्छी पढाई होती है। अब, इन छात्रों की सफलता में कोचिंग इंस्टिट्यूट का कितना योगदान होता है, ये भी चर्चा का ही विषय है।
जब ये कोचिंग इंस्टिट्यूट वाले सफल छात्रों की सफलता का श्रेय लेते हुए अपना प्रचार करते हैं, तो इस बार जिन छात्रों को असफलता मिली है, उसकी जिम्मेदारी लेंगे ? शायद ही कोई छात्र होगा जो कोचिंग या ट्यूशन नहीं पढता होगा। वर्ना लगभग सभी अभिभावक अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार अपने बच्चों को ट्यूशन दिलवाते हैं। उनके उज्जवल भविष्य की चिंता जो होती है उनको। तो क्या इन ट्यूशन देने वालों और कोचिंग इंस्टिट्यूट वालों की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? क्या सिर्फ पैसे कमाने से मतलब है इनको ?
इस विषय में क्या सरकार का या फिर स्कूलों का कोई दायित्व नहीं है ? बिहार में भी मशरूम की तरह कोचिंग इंस्टिट्यूट खुल गए हैं। ये फीस भी अच्छी-खासी लेते हैं। जिस कोचिंग का जितना नाम उतनी ही ज्यादा फीस। रिजल्ट के 2 - 4 दिन के अंदर ही कोचिंग इंस्टिट्यूट वाले अपने सफल छात्रों की सूची उनके फोटो या बिना फोटो के बड़े ही गर्व के साथ अंक एवं डिवीजन सहित शहर की दीवारों पर चिपकवा देते हैं। ताकि लोगों को लगे कि यहाँ बहुत अच्छी पढाई होती है। अब, इन छात्रों की सफलता में कोचिंग इंस्टिट्यूट का कितना योगदान होता है, ये भी चर्चा का ही विषय है।
जब ये कोचिंग इंस्टिट्यूट वाले सफल छात्रों की सफलता का श्रेय लेते हुए अपना प्रचार करते हैं, तो इस बार जिन छात्रों को असफलता मिली है, उसकी जिम्मेदारी लेंगे ? शायद ही कोई छात्र होगा जो कोचिंग या ट्यूशन नहीं पढता होगा। वर्ना लगभग सभी अभिभावक अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार अपने बच्चों को ट्यूशन दिलवाते हैं। उनके उज्जवल भविष्य की चिंता जो होती है उनको। तो क्या इन ट्यूशन देने वालों और कोचिंग इंस्टिट्यूट वालों की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? क्या सिर्फ पैसे कमाने से मतलब है इनको ?
मुझे याद है जब मैं 10वीं कक्षा में था तो हमारे स्कूल के एक शिक्षक कहा करते थे कि उनके छात्र जीवन के काल में शायद ही कोई छात्र ट्यूशन पढता था। कोचिंग का तो नामो- निशान ही नहीं था। सभी छात्र खुद से ही परिश्रम किया करते थे। मास्टर जी ने स्कूल में जो पढ़ा दिया उसी को अच्छे से समझ लेते थे, न समझ आये तो फिर से पूछ लेते थे। आजकल ट्यूशन या कोचिंग पढ़ने वालों को ऊँची नजर से देखा जाता है, उन दिनों जो अपने से पढता था उसको अच्छा समझा जाता था। खैर, अब तो वैसे गुरु और शिष्य बिरले ही मिलते हैं।
जीवन में सफलता और असफलता तो लगी रहती है। लेकिन जरूरत इस बात की है कि इसके कारणों को चिन्हित किया जाए और दूर किया जाए। ताकि अगली बार से इसकी पुनरावृति नहीं हो सके। यह बात छात्र के लिए भी लागू होती है, अभिभावकों के लिए भी, शिक्षकों के लिए भी और सरकार के लिए भी।
जीवन में सफलता और असफलता तो लगी रहती है। लेकिन जरूरत इस बात की है कि इसके कारणों को चिन्हित किया जाए और दूर किया जाए। ताकि अगली बार से इसकी पुनरावृति नहीं हो सके। यह बात छात्र के लिए भी लागू होती है, अभिभावकों के लिए भी, शिक्षकों के लिए भी और सरकार के लिए भी।
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