दिल्ली नगर निगम की 13 सीट पर कल ही उप-चुनाव हुए हैं। शायद ऐसा पहली बार ही हो रहा है कि तीनों ही मुख्य पार्टियों आम आदमी पार्टी, भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव अहम है। जब बात करते हैं देश की सबसे पुरानी पार्टी की तो इसकी साख को तो लोकसभा चुनाव में ही बहुत बड़ा धक्का लगा था जब दिल्ली की 7 सात लोकसभा सीट में से इसको एक भी सीट नहीं मिली थी। पूरे देश में भी इसको सिर्फ 44 सीटों पर ही संतोष करके रह जाना पड़ा था। लेकिन दिल्ली के विधानसभा चुनाव 2015 ने तो इसकी बची-खुची साख भी मिटटी में मिला दी। देश की सबसे पुरानी पार्टी होने और सत्ता की सबसे अनुभवी खिलाडी होने का दम भरने वाली कांग्रेस 70 में से एक भी सीट नहीं ला पाई।
अब इस चुनाव में कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीट लाने की कोशिश करेगी ताकि विधानसभा चुनाव के बाद जो प्रतिष्ठा में हानि हुई है उसकी थोड़ी तो भरपाई की जा सके। इसके लिए पार्टी ने यथासंभव कोशिश तो की ही होगी। लेकिन इसके चुनाव प्रचार के दौरान उस तरह की आक्रामकता कहीं से भी देखने को नहीं मिली जैसी की जीत के लिए प्रतिबद्ध पार्टी की होती है। सम्पूर्ण प्रचार प्रक्रिया के दौरान बस यही लगा कि पार्टी चुनाव लड़ने की रस्म ही निभा रही है। कहीं कहीं तो ऐसा लगता है कि पार्टी ने जान बूझ कर कमजोर उम्मीदवार उतार दिए हों। हार-जीत तो लगी रहती है लेकिन योद्धा पूरी ताकत से लड़े इसी में उसकी शान है। लगता है जैसे विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बुरी तरह से निराश कार्यकर्त्ता में कांग्रेस पार्टी नई स्फूर्ति लाने में बिलकुल असफल रही है।
जहाँ तक भाजपा का सवाल है, विधानसभा के 2013 वाले चुनाव में तो पार्टी पूरे दम ख़म और जोश के साथ उतरी थी लेकिन सत्ता की चौखट से बैरंग लौट आई थी। लेकिन 2015 के चुनाव में पार्टी की हालत ये हो गई थी कि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए पार्टी को सर्वमान्य नेता नहीं मिल पाया था। आनन-फानन में किरण बेदी जी को पार्टी में शामिल कराया गया और उम्मीदवार घोषित किया गया पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का। जिसका कोई फायदा क्या मिलना उलटे पार्टी को नुकसान ही हो गया। कुल 70 सीट में से सिर्फ 3 सीट ही मिली। अब इस करारी हार को पार्टी पचा नहीं पा रही है और जब देखो तब केजरीवाल सरकार का विरोध करती रहती है। इस हार के सदमे से उबरने के लिए पार्टी को ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने की जरूरत है। अपना पूरा जोर तो पार्टी लगा ही रही है। इसी चक्कर में वजीरपुर सीट पर पार्टी ने एक नई मिसाल भी कायम कर दी है।
मामला ये है कि वर्तमान प्रत्याशी पहले निगम पार्षद ही थे , फिर 2013 के विधानसभा चुनाव में इनको टिकट मिल गयी और संयोग से जीत भी गए। अब जीत गए तो पार्षद के पद से इस्तीफा दे दिए। फिर विधानसभा भंग हो गई तो पूर्व विधायक हो गए। उसके बाद पार्टी ने 2015 के चुनाव में इनको ही आजमाया लेकिन ये बुरी तरह हार गए। अब तो न विधायक रहे न ही पार्षद। इलाके में अभी इनको कोई पूर्व विधायक तो कोई पूर्व पार्षद कह कर सम्बोधित करता है। अब इस बार पार्टी को इनसे ज्यादा योग्य कोई और नेता नहीं मिला तो इनको ही उतार दिया मैदान में। कुछ लोग तो हंसी ठिठोली भी करने लगे हैं कि साहब अगला चुनाव मोहल्ला सभा का लड़ेंगे क्या ?
आम आदमी पार्टी के लिए भी ये चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है। दरअसल, विधानसभा चुनाव 2015 में 70 में से 67 सीटें जीत कर पार्टी ने खुद ही अपने लिए सफलता का नया पैमाना बना लिया है। अब पार्टी के लिए 13 में से 13 सीट जीतने का मनोवैज्ञानिक दबाव है। लेकिन कहीं से भी यह दबाव नेता, उम्मीदवार या फिर कार्यकर्ताओं के चेहरे पर नहीं दीखता। पार्टी को अपने मंत्री, विधायक एवं मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए विकास कार्य पर विश्वास है। इनका मानना है कि हमने थोड़े से ही समय में खूब काम किया है और जनता हमें सच्चा सेवक मानकर निगम में भी सेवा करने का मौका देगी।
अब जनता का क्या फैसला आता है यह तो कल सुबह जब नतीजे आएंगे तभी पता चलेगा। लेकिन इतना तो तय है कि कल की सुबह सबके लिए एक अप्रत्याशित नतीजा ही लेकर आएगी।
अब इस चुनाव में कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीट लाने की कोशिश करेगी ताकि विधानसभा चुनाव के बाद जो प्रतिष्ठा में हानि हुई है उसकी थोड़ी तो भरपाई की जा सके। इसके लिए पार्टी ने यथासंभव कोशिश तो की ही होगी। लेकिन इसके चुनाव प्रचार के दौरान उस तरह की आक्रामकता कहीं से भी देखने को नहीं मिली जैसी की जीत के लिए प्रतिबद्ध पार्टी की होती है। सम्पूर्ण प्रचार प्रक्रिया के दौरान बस यही लगा कि पार्टी चुनाव लड़ने की रस्म ही निभा रही है। कहीं कहीं तो ऐसा लगता है कि पार्टी ने जान बूझ कर कमजोर उम्मीदवार उतार दिए हों। हार-जीत तो लगी रहती है लेकिन योद्धा पूरी ताकत से लड़े इसी में उसकी शान है। लगता है जैसे विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बुरी तरह से निराश कार्यकर्त्ता में कांग्रेस पार्टी नई स्फूर्ति लाने में बिलकुल असफल रही है।
जहाँ तक भाजपा का सवाल है, विधानसभा के 2013 वाले चुनाव में तो पार्टी पूरे दम ख़म और जोश के साथ उतरी थी लेकिन सत्ता की चौखट से बैरंग लौट आई थी। लेकिन 2015 के चुनाव में पार्टी की हालत ये हो गई थी कि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए पार्टी को सर्वमान्य नेता नहीं मिल पाया था। आनन-फानन में किरण बेदी जी को पार्टी में शामिल कराया गया और उम्मीदवार घोषित किया गया पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का। जिसका कोई फायदा क्या मिलना उलटे पार्टी को नुकसान ही हो गया। कुल 70 सीट में से सिर्फ 3 सीट ही मिली। अब इस करारी हार को पार्टी पचा नहीं पा रही है और जब देखो तब केजरीवाल सरकार का विरोध करती रहती है। इस हार के सदमे से उबरने के लिए पार्टी को ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने की जरूरत है। अपना पूरा जोर तो पार्टी लगा ही रही है। इसी चक्कर में वजीरपुर सीट पर पार्टी ने एक नई मिसाल भी कायम कर दी है।
मामला ये है कि वर्तमान प्रत्याशी पहले निगम पार्षद ही थे , फिर 2013 के विधानसभा चुनाव में इनको टिकट मिल गयी और संयोग से जीत भी गए। अब जीत गए तो पार्षद के पद से इस्तीफा दे दिए। फिर विधानसभा भंग हो गई तो पूर्व विधायक हो गए। उसके बाद पार्टी ने 2015 के चुनाव में इनको ही आजमाया लेकिन ये बुरी तरह हार गए। अब तो न विधायक रहे न ही पार्षद। इलाके में अभी इनको कोई पूर्व विधायक तो कोई पूर्व पार्षद कह कर सम्बोधित करता है। अब इस बार पार्टी को इनसे ज्यादा योग्य कोई और नेता नहीं मिला तो इनको ही उतार दिया मैदान में। कुछ लोग तो हंसी ठिठोली भी करने लगे हैं कि साहब अगला चुनाव मोहल्ला सभा का लड़ेंगे क्या ?
आम आदमी पार्टी के लिए भी ये चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है। दरअसल, विधानसभा चुनाव 2015 में 70 में से 67 सीटें जीत कर पार्टी ने खुद ही अपने लिए सफलता का नया पैमाना बना लिया है। अब पार्टी के लिए 13 में से 13 सीट जीतने का मनोवैज्ञानिक दबाव है। लेकिन कहीं से भी यह दबाव नेता, उम्मीदवार या फिर कार्यकर्ताओं के चेहरे पर नहीं दीखता। पार्टी को अपने मंत्री, विधायक एवं मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए विकास कार्य पर विश्वास है। इनका मानना है कि हमने थोड़े से ही समय में खूब काम किया है और जनता हमें सच्चा सेवक मानकर निगम में भी सेवा करने का मौका देगी।
अब जनता का क्या फैसला आता है यह तो कल सुबह जब नतीजे आएंगे तभी पता चलेगा। लेकिन इतना तो तय है कि कल की सुबह सबके लिए एक अप्रत्याशित नतीजा ही लेकर आएगी।
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