28 मई , 2016
यूँ तो आरक्षण को लेकर हमेशा थोड़े-थोड़े दिनों पर चर्चा चलती रहती है, लेकिन इस बार अंकित श्रीवास्तव का मामला सोशल मीडिया में आने के बाद इस पर फिर से चर्चा छिड़ गयी है। क्या आरक्षण जाति-आधारित होना चाहिए ? क्या इसको आर्थिक-स्तर आधारित कर देना चाहिए ? या फिर इसको पूरी तरह ख़त्म कर देना चाहिए ? सिर्फ योग्यता को ही आधार माना जाये, जो जिस योग्य हो वैसी नौकरी करे, वैसी शिक्षा प्राप्त करे। एक बात मैं पहले ही सार्वजनिक कर दूँ कि मैं अंकित श्रीवास्तव को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता हूँ, सिर्फ सोशल मीडिया के माध्यम से ही जानता हूँ। ताकि मुझ पर पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने का आरोप न लगे। हमारी और उनकी जाति या सरनेम का समान होना, मात्र एक संयोग से ज्यादा कुछ नहीं है।
अब आते हैं वापस मुद्दे पर। कहा जाता है कि संविधान में आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ 10 साल के लिए ही थी । लेकिन उसके बाद जितनी भी सरकारें आई, इस को आगे बढाती चली गयी। वर्तमान समय में केंद्रीय सरकार की नौकरी के लिए जाति-आधारित आरक्षण कुछ इस प्रकार से है। अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5%, अनुसूचित जातियों के लिए 15% एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27%, मतलब कुल 49.5% सीटें आरक्षित हैं । जो लोग इनमें से किसी वर्ग में नहीं आते उनकी प्रतिस्पर्धा बाकि बचे 50.5% सीटों में होगी, जो लोग इस वर्ग में आते हैं उनकी प्रतिस्पर्धा उनके वर्ग के लिए आरक्षित सीटों के साथ साथ 50.5% सीटों में भी होगी। राज्यों में अलग तरह की व्यवस्था हो सकती है। कुछ अलग तरह के आरक्षण भी हैं , जैसे विकलांग कोटा, भूतपूर्व सैनिक कोटा, कुछ राज्य में शायद सिंगल गर्ल चाइल्ड कोटा भी है।
समय-समय पर इन आरक्षित वर्गों में नयी-नयी जातियों को शामिल करने की मांग भी की जाती रहती है। पिछले दिनों हरियाणा में जाटों को आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन भी हुआ था। जिसमें बड़े पैमाने पर हिंसा, लूटपाट और आगजनी की खबर भी आई थी। यहाँ तक कि दिल्ली में पानी भेजने वाली नहर को भी बंद कर दिया था आंदोलनकारियों ने। इसके परिणामस्वरूप दिल्ली में गम्भीर पानी संकट हो गया था।
समय-समय पर इन आरक्षित वर्गों में नयी-नयी जातियों को शामिल करने की मांग भी की जाती रहती है। पिछले दिनों हरियाणा में जाटों को आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन भी हुआ था। जिसमें बड़े पैमाने पर हिंसा, लूटपाट और आगजनी की खबर भी आई थी। यहाँ तक कि दिल्ली में पानी भेजने वाली नहर को भी बंद कर दिया था आंदोलनकारियों ने। इसके परिणामस्वरूप दिल्ली में गम्भीर पानी संकट हो गया था।
यह सत्य है कि आरक्षित जातियों का बहुत बड़ा वोट बैंक है। समय-समय पर यह आरोप लगता रहता है कि इस वोट बैंक को नाराज न करने के लिए ही कोई भी सरकार जाति-आधारित आरक्षण को ख़त्म करने की पहल नहीं करती। जहाँ तक मैं समझता हूँ, नौकरी में आरक्षण, समाज में आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए दी जाती है। लेकिन गरीबी तो जाति देखकर नहीं आती। किसी भी जाति का व्यक्ति गरीब हो सकता है या अमीर हो सकता है। आरक्षित जाति के अंतर्गत भी कुछ लोग बहुत अमीर हैं , लेकिन वो भी आरक्षण का लाभ लेने से नहीं चूकते। ये कहाँ का न्याय है कि अनारक्षित वर्ग का गरीब 50.5% सीट के अंतर्गत संघर्ष करता रहता है , और कई बार आरक्षित वर्ग के अमीर आरक्षण का फायदा उठाकर बाजी मार लेते हैं।
जाति-आधारित आरक्षण के समर्थकों के भी अपने तर्क हैं। नेता लोग कहते हैं कि भाई इन जातियो के लोगों की गरीबी अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है। इनकी जाति में अभी भी बहुत से लोगों का जीवन स्तर दयनीय हालत में है। इसलिए इनको आरक्षण दिया जाए। कुछ लोग कहते हैं कि भाई आरक्षण दो , लेकिन उनको दो जिनको इसकी जरूरत है। मतलब कि जो गरीब हैं उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी करने के लिए दो, चाहे वो किसी भी जाति या वर्ग के हों। जिन लोगों को आरक्षण नहीं मिल रहा उनमें से कुछ लोग इसको पूरी तरह से ख़त्म करने की बात करते हैं। उनका कहना है कि सबको समान अवसर प्रदान करो। सबके लिए स्कूल, कालेज खोल दो, मुफ्त शिक्षा दो। लेकिन सिर्फ और सिर्फ योग्यता को ही महत्त्व दो। इससे सेवा-कार्य में योग्य लोग ही आ पाएंगे और सेवा की गुणवत्ता भी अच्छी बनी रहेगी।
अब सरकार क्या करे ? उसको तो सभी वर्गों का ख्याल रख के चलना है। राजनीतिक पार्टियों को तो अपने वोट बैंक का ख्याल रख के चलना है। और जनता, जनता का हाल न पूछिए, उ त जो है उ हइए है। निकट भविष्य में तो ऐसी सम्भावना तो दूर दूर तक नहीं दिखती कि आरक्षण ख़त्म होगा या फिर इसकी संरचना में कोई बदलाव आएगा।
अब सरकार क्या करे ? उसको तो सभी वर्गों का ख्याल रख के चलना है। राजनीतिक पार्टियों को तो अपने वोट बैंक का ख्याल रख के चलना है। और जनता, जनता का हाल न पूछिए, उ त जो है उ हइए है। निकट भविष्य में तो ऐसी सम्भावना तो दूर दूर तक नहीं दिखती कि आरक्षण ख़त्म होगा या फिर इसकी संरचना में कोई बदलाव आएगा।
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