22 मई, 2016
यही कह रहे हैं राष्ट्रीय जनता दल के सांसद और वरिष्ठ नेता तस्लीमुद्दीन जी। जबसे सरकार बनी है, उसके थोड़े ही दिनों बाद से नीतीश कुमार जी की कार्य कुशलता, क्षमता पर प्रश्नचिन्ह उठाने लगे हैं राजद के नेता। राज्य में कानून-व्यस्था की स्थिति ख़राब हो रही है। इसकी भी जिम्मेदारी, राजद के नेता नीतीश जी को ही दे रहे हैं। बात सही भी है, अगर ताली कैप्टन को तो गाली किसको ? जाहिर सी बात है कैप्टन को ही न ? लेकिन ये कहना कि नीतीश जी मुखिया के पद के लायक भी नहीं हैं, अतिशयोक्ति ही होगी। कुछ तो बात है कि नीतीश जी 10 साल से ज्यादा से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
अगर इतने ही निकम्मा और नकारा थे तो राष्ट्रीय जनता दल और लालूजी ने इनकी पार्टी के साथ गठबंधन क्यों किया ? पिछले 3 विधानसभा चुनाव नीतीश जी को ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार प्रोजेक्ट करके लड़ा जाता रहा है, बिहार में। इस बात को भी इतनी जल्दी राजद नेताओं को भूलना नहीं चाहिए कि बिहार विधानसभा चुनाव 2015 भी महागठबंधन ने नीतीश जी को ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बना कर लड़ा था। बेशक राजद को विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीट मिली हो लेकिन क्या इसमें नीतीश जी का रत्ती भर योगदान नहीं ?
अगर इतने ही निकम्मा और नकारा थे तो राष्ट्रीय जनता दल और लालूजी ने इनकी पार्टी के साथ गठबंधन क्यों किया ? पिछले 3 विधानसभा चुनाव नीतीश जी को ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार प्रोजेक्ट करके लड़ा जाता रहा है, बिहार में। इस बात को भी इतनी जल्दी राजद नेताओं को भूलना नहीं चाहिए कि बिहार विधानसभा चुनाव 2015 भी महागठबंधन ने नीतीश जी को ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बना कर लड़ा था। बेशक राजद को विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीट मिली हो लेकिन क्या इसमें नीतीश जी का रत्ती भर योगदान नहीं ?
राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश सिंह जी तो लगता है कि जैसे नीतीश जी का विरोध करने के लिए ही मंत्रीमंडल में शामिल नहीं हुए हों। जब बिहार में मंत्रीमंडल का गठन किया जा रहा था तो उस सूची में रघुवंश जी जैसे वरिष्ठ नेता का नाम न पाकर बहुत से लोग चौंक गए थे। लालू जी की तो संवैधानिक मजबूरी थी लेकिन रघुवंश जी की क्या समस्या थी जो उनको मंत्रीमंडल में शामिल नहीं किया गया , यह सवाल बहुतों के मन में था। लेकिन राजनीति के बुझक्कड़ इस बात तो समझने में तनिक भी देर नहीं लगाए थे कि दाल में बहुत काला है। ये सरकार ज्यादा दिनों तक साथ-साथ नहीं चल सकेगी। बगावत का झंडा माननीय रघुवंश जी ही बुलंद करेंगे। और जब तक समय पुरी तरह अनुकूल न हो जाय लालू जी उनके विरोध को नजरअंदाज करते रहेंगे। यही हो रहा है। नीतीश जी के खिलाफ राजद में विरोध के स्वर तेज होने शुरू हो गए हैं।
एक बात देखी जाए तो भाई, उनका विरोध ठीक भी है। अब सबसे बड़ी पार्टी हुई राजद और मुख्यमंत्री बने नीतीश जी , ये कैसे मंजूर होगा राजद और उसके नेता को ? अब गठबंधन के समय उनको गठबंधन का नेता और मुख्यमंत्री का उम्मीदवार तो मान लिया गया। उस समय राजद और कांग्रेस के पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था। लेकिन चुनाव के बाद जब राजद को सर्वाधिक सीट मिल गयी तो कायदे से नीतीश जी को ही इस पद से दावा छोड़कर बड़प्पन का परिचय देना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, बड़ी पार्टी का उप-मुख्यमंत्री और छोटी पार्टी का मुख्यमंत्री, ऐसा कब तक मंजूर होगा राजद को ?
एक बात देखी जाए तो भाई, उनका विरोध ठीक भी है। अब सबसे बड़ी पार्टी हुई राजद और मुख्यमंत्री बने नीतीश जी , ये कैसे मंजूर होगा राजद और उसके नेता को ? अब गठबंधन के समय उनको गठबंधन का नेता और मुख्यमंत्री का उम्मीदवार तो मान लिया गया। उस समय राजद और कांग्रेस के पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था। लेकिन चुनाव के बाद जब राजद को सर्वाधिक सीट मिल गयी तो कायदे से नीतीश जी को ही इस पद से दावा छोड़कर बड़प्पन का परिचय देना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, बड़ी पार्टी का उप-मुख्यमंत्री और छोटी पार्टी का मुख्यमंत्री, ऐसा कब तक मंजूर होगा राजद को ?
अब विरोध के स्वर उठ रहे हैं, लेकिन लालू जी कुछ बोल नहीं रहे हैं। लालू जी इसको कब तक नजर अंदाज करते हैं, ये देखने की बात होगी।
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