आज माननीय उच्च्तम न्यायालय द्वारा उत्तराखण्ड विधानसभा में हुए फ्लोर टेस्ट के नतीजों के एलान के साथ ही इस छोटे से प्रदेश में इसी साल होली के आस पास से चली आ रही राजनीतिक उथल - पुथल पर विराम लग गया है। लेकिन इस दौरान उत्तराखण्ड में जो राजनीतिक गतिविधियाँ हुई उससे मोदी सरकार की मंशा और भाजपा की सत्तालोलुपता का ही पता चलता है। आखिर गैर - भाजपा शासित प्रदेशों में सरकार को क्यों अव्यवस्थित कर रही है केंद्र की मोदी सरकार ? जब भाजपा विपक्ष में थी तो धारा 356 की मर्यादा बताती रहती थी। इनके नेताओं के बड़े - बड़े बयान आते थे कि इसका प्रयोग असाधारण स्थिति में ही होना चाहिए। लेकिन सत्ता में आते ही अपने ही प्रवचन भूल गए। ढूँढ़ने लगे राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने का मौका।
साल की शुरुआत में ही अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा। उसके बाद अब उत्तराखण्ड में। कहते हैं कि कुछ विधायक बागी हो गए थे। भाई , अगर बागी हो गए थे तो सरकार बहुमत में है कि नहीं इसके लिए सदन में बहुमत परीक्षण के लिए कहा जायेगा कि सीधे राष्ट्रपति शासन लगा दी जायेगी ? आखिर कौन सा संवैधानिक संकट हो गया था प्रदेश में ? दरअसल जबसे मोदी जी की सरकार केंद्र में बनी है, भाजपाई येन केन प्रकारेण सभी राज्यों में सत्ता में आना चाहती है। केंद्र में सरकार बनते ही राज्यों के राज्यपाल बदले गए, सिर्फ दिल्ली को छोड़कर। दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार के काम काज में केंद्र की तरफ से किस तरह से हस्तक्षेप होते रहते हैं, ये किसी से छिपी हुई बात नहीं है। कितने सारे जनहित के बिल केंद्र से स्वीकृति के लिए रुके हुए हैं।
उत्तराखण्ड का मामला तो इतना बिगड़ चूका था कि माननीय उच्च न्यायालय की तरफ से केंद्र सरकार को डाँट भी पड़ी थी। न्यायालय के कारण ही भारत का लोकतंत्र सुरक्षित रह सका, वर्ना केंद्र की मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी अपनी तरफ से लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार करने में। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि हर काम के लिए न्यायालय की तरफ ही जाना होगा क्या ? इन राजनेताओं का कोई कर्तव्य नहीं है कि लोकतंत्र की मर्यादा बचाए रखे ? कांग्रेस इस बार भुक्तभोगी है तो मोदी सरकार की जम के आलोचना कर रही है। लेकिन जब केंद्र में इनकी सरकार थी तब इन्होने भी खूब 356 धारा लगाए थे गैर - कांग्रेस शासित प्रदेशों में।
दरअसल, भाजपा और कांग्रेस दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। नैतिकता से इनका दूर दूर तक अब नाता नहीं रहा। मामला चाहे धारा 356 के दुरूपयोग का हो या फिर सीबीआई के दुरूपयोग का। इन दोनों में से जो भी केंद्र की सत्ता में रहता है, जम के दुरूपयोग करता है इनका। तभी तो जनता बड़ी बेसब्री से किसी तीसरे विकल्प का इंतजार कर रही है। बिहार और दिल्ली के विधानसभा चुनाव के नतीजों से तो यही पता चलता है।
साल की शुरुआत में ही अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा। उसके बाद अब उत्तराखण्ड में। कहते हैं कि कुछ विधायक बागी हो गए थे। भाई , अगर बागी हो गए थे तो सरकार बहुमत में है कि नहीं इसके लिए सदन में बहुमत परीक्षण के लिए कहा जायेगा कि सीधे राष्ट्रपति शासन लगा दी जायेगी ? आखिर कौन सा संवैधानिक संकट हो गया था प्रदेश में ? दरअसल जबसे मोदी जी की सरकार केंद्र में बनी है, भाजपाई येन केन प्रकारेण सभी राज्यों में सत्ता में आना चाहती है। केंद्र में सरकार बनते ही राज्यों के राज्यपाल बदले गए, सिर्फ दिल्ली को छोड़कर। दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार के काम काज में केंद्र की तरफ से किस तरह से हस्तक्षेप होते रहते हैं, ये किसी से छिपी हुई बात नहीं है। कितने सारे जनहित के बिल केंद्र से स्वीकृति के लिए रुके हुए हैं।
उत्तराखण्ड का मामला तो इतना बिगड़ चूका था कि माननीय उच्च न्यायालय की तरफ से केंद्र सरकार को डाँट भी पड़ी थी। न्यायालय के कारण ही भारत का लोकतंत्र सुरक्षित रह सका, वर्ना केंद्र की मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी अपनी तरफ से लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार करने में। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि हर काम के लिए न्यायालय की तरफ ही जाना होगा क्या ? इन राजनेताओं का कोई कर्तव्य नहीं है कि लोकतंत्र की मर्यादा बचाए रखे ? कांग्रेस इस बार भुक्तभोगी है तो मोदी सरकार की जम के आलोचना कर रही है। लेकिन जब केंद्र में इनकी सरकार थी तब इन्होने भी खूब 356 धारा लगाए थे गैर - कांग्रेस शासित प्रदेशों में।
दरअसल, भाजपा और कांग्रेस दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। नैतिकता से इनका दूर दूर तक अब नाता नहीं रहा। मामला चाहे धारा 356 के दुरूपयोग का हो या फिर सीबीआई के दुरूपयोग का। इन दोनों में से जो भी केंद्र की सत्ता में रहता है, जम के दुरूपयोग करता है इनका। तभी तो जनता बड़ी बेसब्री से किसी तीसरे विकल्प का इंतजार कर रही है। बिहार और दिल्ली के विधानसभा चुनाव के नतीजों से तो यही पता चलता है।
मृत्युंजय जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार !!!
आपका ब्लॉग (निष्पक्ष विचार) देखा । आपको हिंदी के एक सशक्त मंच के सृजन एवं कुशल संचालन हेतु बहुत-बहुत बधाई !!!
इन्टरनेट पर अभी भी कृषि से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ अंग्रेज़ी भाषा में ही हैं । जिसके कारण आम हिंदीभाषी लोग इनसे जुड़े संदेशों या बातों जिनसे उनके जीवन में वास्तव में बदलाव हो सकता है, से वंचित रह जाते हैं । ऐसे हिन्दीभाषी यूजर्स के लिए ही हम आपके अमूल्य सहयोग की अपेक्षा रखते हैं ।
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साथ ही हमारा यह भी प्रयास होगा की शब्दनगरी द्वारा सभी यूज़र्स को भेजी जानी वाली साप्ताहिक ईमेल में हम आपके लेखों का लिंक दे कर, आपकी रचनाओं को अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचाएँ ।
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धन्यवाद,
संजना पाण्डेय
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ईमेल-info@shabdanagari.in
संजना जी, नमस्कार।
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद। मुझसे जितना भी संभव हो सकेगा, "शब्दनगरी" के लिए योगदान अवश्य करूँगा। विस्तृत उत्तर मैं ई-मेल के द्वारा भेज चूका हूँ। आशा है मिल गया होगा।
मृत्युंजय