2 मई, 2016
कुछ ही दिनों की बात है , मोदी जी को प्रधानमंत्री बने हुए 2 साल पूरे हो जायेंगे। कहा जाता है कि किसी भी नई सरकार के प्रदर्शन को आंकने के लिए जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए। कुछ समय देना चाहिए सरकार को अपने अनुरुप कार्य करने के लिए। वैसे तो आजकल सरकार बनने के दूसरे दिन से ही विपक्षी दल उसकी एक एक गतिविधि पर गहरी नजर रखने लगते हैं और एक एक फैसले की जमकर आलोचना करते हैं। लेकिन एक निष्पक्ष विचार रखने वाले को बहुत संयम से काम लेना चाहिए। 2 साल का समय कम नहीं होता एक सरकार के कुछ कर गुजरने के लिए बल्कि उसके कार्यकाल के आधे से कम का ही समय होता है। इसलिए मोदी सरकार के कामों की समीक्षा करने का समय आ गया है।
इस सरकार के बनने के पहले से ही मोदी जी के प्रति लोगों की उम्मीद बहुत बढ़ गयी थी। मोदी जी के भाषण की आक्रामक शैली, एक एक बात को गम्भीरता से रखने की कला, रक्षा नीति एवं विदेश नीति पर उनकी टिप्पणी सुनकर जनता को महसूस होता था कि वाकई में अगर देशवासियों के अच्छे दिन आएंगे तो मोदी जी ही लाएंगे। मनमोहन सरकार के 10 साल के कुशासन से लोग ऊब गए थे, नित नए घोटालों से परेशान हो गए थे। यूँ तो मनमोहन सिंह जी की सफ़ेद कुर्ते पर कभी भी भ्रष्टाचार का कोई काला छींटा नहीं पड़ा था उनके पूरे 10 साल के शासन के दौरान , लेकिन दूसरे लोगों के नाम घोटाले में आए थे। इससे उनकी छवि बेदाग होकर भी एक तरह से दागदार ही बनती जा रही थी।
जब से मोदी जी भाजपा के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार घोषित हुए तब से वो नए नए अंदाज में जो मनमोहन जी और उनकी सरकार पर शब्द बाण चलाते थे , उससे जनता को मोदी जी पर बहुत भरोसा हो चला था। चाहे अच्छे दिन का नारा हो या फिर काले धन को वापस लाने वाली बात, पाकिस्तान को भरपूर सबक सिखाने वाली बात हो या चीन को औकात में रखने का संकल्प, कुल मिलाकर लोगों को मोदी जी की बातों पर खूब यकीन आने लगा था।
मोदी जी की छवि हिंदुस्तान के तारणहार की बन गयी थी। जनता ने भी 2014 के लोकसभा चुनाव में जमकर समर्थन दिया और मोदी जी प्रधानमंत्री बने। उसके बाद विपक्षी दलों ने तो थोड़े दिन बाद से ही इनकी आलोचना शुरू कर दी। लेकिन भोली भाली जनता सब्र बांधे रही। लेकिन धीरे-धीरे जनता की उम्मीद टूटने लगी और दिल्ली तथा बिहार के विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को करारी हार दी। महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा सरकार बनाने में सफल हुई लेकिन वहां की जनता के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था।
मोदी जी की छवि हिंदुस्तान के तारणहार की बन गयी थी। जनता ने भी 2014 के लोकसभा चुनाव में जमकर समर्थन दिया और मोदी जी प्रधानमंत्री बने। उसके बाद विपक्षी दलों ने तो थोड़े दिन बाद से ही इनकी आलोचना शुरू कर दी। लेकिन भोली भाली जनता सब्र बांधे रही। लेकिन धीरे-धीरे जनता की उम्मीद टूटने लगी और दिल्ली तथा बिहार के विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को करारी हार दी। महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा सरकार बनाने में सफल हुई लेकिन वहां की जनता के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था।
इन 2 सालों में मोदी सरकार की उपलब्धि के नाम पर गिनाने को कुछ भी नहीं रहा। कालाधन के मामले में बेशक ये लोग विपक्ष में रहते हुए सख्त कदम उठाने की बात करते रहे लेकिन सत्ता में आने के बाद ये भी पुरानी सरकार की भाषा ही बोलने लगे। डॉलर की कीमत में भी कोई कमी आती नहीं दिखी। वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत में अभूतपूर्व कमी आने के बावजूद डीजल पेट्रोल की कीमत में उस अनुपात में कमी नहीं हुई। महंगाई पर भी लगाम लगाने में पूरी तरह असफल रही है यह सरकार। बुलेट ट्रेन की बात ही की जाती रही है अभी तक। वैसे मेरी समझ यह है कि बुलेट ट्रेन पर इतना पैसा खर्च करने के बजाय वर्तमान ट्रेनों की ही स्पीड थोड़ी बढ़ा दी जाये और ट्रेनों के लेट होने की परम्परा सी जो बन गई है उसको ख़त्म करने पर जोर दिया जाए।
श्री मनोहर पर्रिकर और श्री सुरेश प्रभु सरीखे ईमानदार एवं कर्मठ मंत्री के होते हुए भी सम्बंधित मंत्रालय में कुछ खास उल्लेखनीय कार्य नहीं हो पाया है इन 2 सालों में। हाँ, कुछ मंत्रियों की बेतुकी बयानबाजी ने सरकार की छवि को बिगाड़ने का काम जरूर किया है। प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने भी इन 2 सालों में विदेश की यात्राएं खूब की हैं। लेकिन इसके सकारात्मक परिणाम दिखने अभी तक शुरू नहीं हुए है।
जब विपक्ष में थे तो पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करते थे, लेकिन जब से सत्ता में आये हैं, पाकिस्तान को करारा जवाब तो दूर, मनमोहन सरकार की तरह कड़ी चेतावनी भी नहीं दे पाए हैं। चीन के मामले में भी वही हाल है। जब विपक्ष में थे तो किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने पर धारा 356 के दुरूपयोग की दुहाई देते थे। लेकिन सत्ता में आने पर राष्ट्रपति शासन लगाने में नहीं चूकते हैं। उत्तराखंड का मामला अभी ताजा ताजा है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार से केंद्र सरकार की तनातनी जगजाहिर है। दिल्ली सरकार के कई बिल केंद्र से स्वीकृति मिलने की प्रतीक्षा में है।
कुल मिलाकर सरकार के इस 2 साल के कार्यकाल को उतना सफल तो नहीं ही कहा जा सकता है जितना चुनाव के दौरान दावे और वादे किए जा रहे थे। जनता का भी मोह भंग होना शुरू हो गया है। वैसे तो लोकसभा चुनाव में तो अभी 3 साल बाकी है लेकिन जिस तरह से सरकार काम कर रही है उसको देखकर लगता नहीं है कि मोदी जी अपने सारे वादे को पूरा करने में सफल होंगे और बहुत मुमकिन है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों से निराश जनता को 2019 में फिर से किसी तीसरे विकल्प को मौका देना पड़ेगा।
जब विपक्ष में थे तो पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करते थे, लेकिन जब से सत्ता में आये हैं, पाकिस्तान को करारा जवाब तो दूर, मनमोहन सरकार की तरह कड़ी चेतावनी भी नहीं दे पाए हैं। चीन के मामले में भी वही हाल है। जब विपक्ष में थे तो किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने पर धारा 356 के दुरूपयोग की दुहाई देते थे। लेकिन सत्ता में आने पर राष्ट्रपति शासन लगाने में नहीं चूकते हैं। उत्तराखंड का मामला अभी ताजा ताजा है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार से केंद्र सरकार की तनातनी जगजाहिर है। दिल्ली सरकार के कई बिल केंद्र से स्वीकृति मिलने की प्रतीक्षा में है।
कुल मिलाकर सरकार के इस 2 साल के कार्यकाल को उतना सफल तो नहीं ही कहा जा सकता है जितना चुनाव के दौरान दावे और वादे किए जा रहे थे। जनता का भी मोह भंग होना शुरू हो गया है। वैसे तो लोकसभा चुनाव में तो अभी 3 साल बाकी है लेकिन जिस तरह से सरकार काम कर रही है उसको देखकर लगता नहीं है कि मोदी जी अपने सारे वादे को पूरा करने में सफल होंगे और बहुत मुमकिन है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों से निराश जनता को 2019 में फिर से किसी तीसरे विकल्प को मौका देना पड़ेगा।
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