11 अप्रैल, 2016
10 अप्रैल, 2016 जनता परिवार के इतिहास में एक और खास दिन। आज बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार जी ने जनता दल (यूनाइटेड) की बागडोर सम्भाल ली। वैसे तो जनता दल के गठन के समय से ही इसके टूटने की परंपरा जारी है। उड़ीसा में बीजू जनता दल, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी एवं जनता दल (यूनाइटेड), उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) एवं राष्ट्रीय लोक दल, कर्नाटक में जनता दल (सेकुलर),, हरियाणा में भारतीय राष्ट्रीय लोक दल आदि के रूप में जनता दल के विभिन्न टुकड़े हुए। इनमें जनता दल (यूनाइटेड) एवं बीजू जनता दल की छवि सर्वाधिक साफ़ मानी जाती है।
जनता दल (यूनाइटेड) के गठन के समय इसके अध्यक्ष जार्ज फर्नांडीज जी बने, उसके बाद शरद यादव जी और अब नीतिश कुमार जी। वैसे राजनीतिक हलकों में शुरू से ही कहा जाता रहा है कि अध्यक्ष कोई भी हो पार्टी के सर्वेसर्वा हमेशा से नीतिश जी ही रहे हैं। उनकी इच्छा के बिना पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता है। पार्टी में वही होता है जो नीतिश जी चाहते हैं। वैसे भी नीतिश जी से बड़ा जनाधार वाला नेता पार्टी में कोई नहीं है। निर्विवाद रूप से नीतिश जी पार्टी के सर्वमान्य एवं सर्वश्रेष्ठ नेता हैं। लेकिन भाजपा के नेता कह रहे हैं कि नीतिश जी ने शरद जी को जार्ज साहब की तरह किनारे लगा दिया है। अब विरोधी पार्टी इसकी तारीफ थोड़े ही न करेगी।
उधर लालू जी कह रहे हैं कि जदयू के पास और कोई विकल्प ही नहीं था। शरद जी को दुबारा अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी के संविधान में संशोधन करना पड़ता । अगर राष्ट्रीय जनता दल के संविधान में ऐसा प्रावधान हो सकता है कि पार्टी बनने के बाद से सिर्फ लालू जी ही इसके अध्यक्ष चुने जाते रहे हैं, समाजवादी पार्टी में ऐसा प्रावधान हो सकता है कि पार्टी बनने के बाद से सिर्फ मुलायम सिंह यादव जी ही इसके अध्यक्ष चुने जाते रहे हैं तो जदयू के संविधान में किसी योग्य नेता के हक़ में परिवर्तन क्यों नहीं किया जा सकता? क्या सिर्फ इसलिए तो नहीं कि इसमें किसी एक परिवार का वर्चस्व नहीं है ?
अगर पार्टी के संविधान की ही मजबूरी थी तो किसी और नेता को भी अध्यक्ष बनाया जा सकता था। नीतिश कुमार जी ही क्यों ? और नेता के बारे में तो पता नहीं लेकिन के. सी. त्यागी जी की योग्यता पर कोई शक नहीं होना चाहिए। उनके खिलाफ तो पार्टी के विरोधियों को भी कहने को कुछ नहीं मिलता है। ठीक है, पार्टी का अंदरूनी मामला है। पार्टी के बाहर के लोग तो सिर्फ निर्णय की अपने अनुसार व्याख्या ही कर सकते हैं लेकिन आलोचना या स्वागत करने का अधिकार तो सिर्फ पार्टी के नेताओं को ही है। पार्टी के इस निर्णय से सभी सहमत ही दिख रहे हैं।
भाजपा के नेताओं की जो भी प्रतिक्रिया रही हो लेकिन इसके एक नेता तो इस फैसले से काफी खुश दिखे। हाँ हाँ हम शत्रु चाचा की ही बात कर रहे हैं। आदरणीय शत्रुघ्न सिन्हा जी वैसे तो भाजपा के सांसद हैं लेकिन बीते कुछ महीनों से नीतिश जी की तारीफ करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते नीतिश जी की प्रशंसा करने का। कह रहे हैं कि नीतिश जी प्रधानमंत्री सामग्री (पीएम मटेरिअल) हैं । अब नीतिश जी की योग्यता पर तो किसी को शक नहीं है। अच्छे नेता हैं, कुशल प्रशासक हैं, राजनीति के साथ-साथ कूटनीति की भी अच्छी समझ रखते हैं वो।
भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन करके 2 बार मुख्यमंत्री और 2 ही क्या 3 बार (एक बार 1995 में भी तो बने थे) मुख्यमंत्री बने , फिर उससे अलग होकर भी अपनी कुर्सी बचाए रखी। उसके बाद ज्योंहि लोकसभा चुनाव 2014 में करारी हार मिली तो उसके बाद झट से जीतन राम माझी जी को मुख्यमंत्री बनाकर सरकार और पार्टी को दिशा निर्देश देते रहे। फिर जब पता लगा कि माझी जी उम्मीद के अनुरुप काम नहीं कर रहे हैं तो उनसे इस्तीफा दिलवा कर खुद मुख्यमंत्री बन गए। फिर 2015 के आखिर में हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में बेशक पहले से कम सीटें आई लेकिन फिर से मुख्यमंत्री बने और कुशलतापूर्वक सरकार चला रहे हैं। इससे उनके राजनीतिक चातुर्य का ही पता चलता है। लोकतंत्र में कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन सकता है, चाहे उसकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी हो या न हो। मधु कोड़ा जी निर्दलीय विधायक होते हुए भी झारखण्ड के मुख्यमंत्री बने थे।
नीतिश कुमार के नेतृत्व में जदयू की निश्चित रूप से प्रगति होगी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। आखिर भारतीय राजनीति में उनका इतने सालों का अनुभव है। समय समय पर केंद्र सरकार में कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी निभाई है उन्होंने। पहली बार मैंने किसी केंद्रीय मंत्री को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देते हुए देखा तो वो नीतिश कुमार जी ही हैं। नीतिश कुमार जी को जनता दल (यूनाइटेड) का नेतृत्व संभालने पर शुभकामनाएँ। उम्मीद करता हूँ कि एक दिन वो भारत के प्रधानमंत्री के पद को भी सुशोभित करेंगे।
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