27 जुलाई 2014
मध्याह्न भोजन यानि मिड डे मिल कार्यक्रम को यह सोचकर शुरू किया गया था कि जब बच्चों को पढाई करने के साथ खाना मिलेगा तो इसको वो पढ़ाई का इनाम समझेंगे और स्कूल जाकर पढ़ने को प्रेरित होंगे। माता पिता भी बच्चे को दिन में खाना खिलाने के दायित्व से मुक्त रहेंगे। लेकिन इसका कुछ भी सकारात्मक परिणाम नहीं निकल रहा है। हाँ, भ्रष्टाचार की खबरें जरूर आ रही है। मेनू के हिसाब से खाना नहीं दिया जाता है। खाना मात्रा में भी कम होता है। खाना घटिया क्वालिटी का होता है, ऐसी भी खबरें आती रहती हैं।
कई जगहों पर तो इस योजना का अनाज बाजार में बिकते हुए पकड़ा गया है। कुल मिलकर सरकारी धन का नाजायज फ़ायदा उठाया जा रहा है। जब सभी सरकारी कर्मिओं को सम्मानजनक वेतन मिल रहा है तो इस तरह से चोरी करने की क्या जरूरत है? इतने पर भी सभी नाराज ही रहते हैं। कोई भी खुश नहीं है इस योजना से। रसोइए को लगता है कि उसको कम मानदेय मिल रहा है। हेड मास्टर साहब को लगता है कि उनका काम बढ़ा दिया गया है। बच्चे कम भोजन मिलने के कारण नाराज हैं।
बात इतनी भर ही नहीं है। ऐसे भी मामले सामने आये हैं जहाँ रजिस्टर पर तो बच्चों की संख्या ज्यादा है और उनकी उपस्थिति भी दिखाई गयी है लेकिन वास्तविक उपस्थिति बहुत कम है। जाहिर सी बात है कि अनुपस्थित बच्चों के हिस्से का भोजन भ्रष्टाचार में जा रहा है। अभी थोड़े ही दिनों पहले समाचार पत्र में खबर आई थी कि बिहार प्रदेश के कुछ जिलों में मिड डे मिल कार्यक्रम के लाभुक बच्चों की संख्या जिले में कुल बच्चों की संख्या से ज्यादा है। ये भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है ?
कई जगहों पर तो बच्चे भोजन के समय से थोड़ी देर पहले आते हैं और भोजन करने के उपरांत विद्यालय से भाग जाते हैं। इस प्रकार तो इस कार्यक्रम का उद्देश्य ही पूरा नहीं हो पायेगा। इस योजना के बिना भी पहले जागरूक माता पिता अपने बच्चों को शिक्षा ग्रहण हेतु विद्यालय भेजते ही थे। और जागरूक बच्चे भी समय पर ही विद्यालय से निकलते थे। फिर ऐसे में इस योजना का क्या औचित्य है ? इस पर क्यों करोड़ो रुपये खर्च किये जा रहे हैं ? इससे तो अच्छा होता की ये पैसे विकास के किसी और कार्य पर खर्च किये जाते।
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