6 मार्च 2014
राम विलास पासवान जी आप तो बिहार की राजनीति के पुराने योद्धा हो। हमको याद है 1989 के लोकसभा चुनाव में आप रिकॉर्ड मत से जीते थे। दलित नेता के रूप में आपको पहचाना जाता है। आप तो दलितों के मसीहा हैं, खासकर आपकी जाति के लोगों के। हमको यह भी याद है कि जब आप रेलमंत्री बने तो कैसे रेलवे का उत्थान कर दिया था। खूब मुफ्त पास बांटे थे आपने। और परियोजना भी ऐसी ऐसी शुरू की आपने जो विरोधी दलों की सरकारों ने आज तक पूरी नहीं होने दी।
हमको यह भी याद है कि जब देवेगौड़ा जी और गुजराल जी की सरकार में आप मंत्री बने थे तो कैसे सांप्रदायिक दलों से लोहा लेते थे। किस तरह से आप अटल जी और आडवाणी जी को संसद में बहस के दौरान आड़े हाँथों लेते थे। दिल बड़ा खुश होता था कि कोई तो है हमारे बिहार की धरती पर जो सांप्रदायिक ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। लेकिन पता नहीं काहे जब दूसरी बार अटलजी कि सरकार बनी तो आप इन्हीं लोगों से लोहा लेते लेते इन्हीं लोगों के साथ हो लिए। अरे, 1999 में जो बनी थी उसी सरकार में आप मंत्री नहीं बने थे।
लेकिन एक बात है, फिर भी आप सांप्रदायिक ताकत से विरोध करना नहीं छोड़े और गोधरा काण्ड के बाद इस्तीफा दे दिए, लात मार दिए मंत्री की कुर्सी को। हमलोगों का सीना बहुत चौड़ा हो गया था उस टाइम। अब ई अलग बात है कि नितीश जी कह रहे हैं कि आप गोधरा के कारण नहीं बल्कि विभाग बदले जाने के कारण इस्तीफा दिए थे। कुछ भी हो, आप सांप्रदायिक ताकतों का साथ छोड़ दिए, हम लोग को इसी बात का सकून है।
2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी आपके पास सत्ता चाभी थी। आप मुख्यमंत्री नहीं तो कम से कम उप-मुख्यमंत्री तो बन ही जाते लालू जी के साथ सरकार बना कर के। लेकिन आप धर्मनिरपेक्षता का साथ देना चाहते थे। किसी मुस्लिम को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। मुस्लिम और अकलियत के लोगों के लिए आपके दिल में इतना प्यार देखकर हमको तो बहुत अच्छा लगा। ई अलग बात है कि आपका ई प्रेम शायद आपके वोटर को अच्छा नहीं लगा। उसके बाद से सब चुनाव में आपके पार्टी की हालत ख़राब ही होती गयी।
इतना सब अच्छा अच्छा चल रहा था , आप धर्मनिरपेक्ष हैं और धर्मनिरपेक्ष लोगों के साथ इतने दिनों तक रहे। यूपीए 1 में मंत्री भी बने थे लालू जी के साथ। लेकिन अचानक से क्या हुआ कि धर्मनिरपेक्ष लोगों का साथ छोड़कर सांप्रदायिक ताकतों के साथ गठबंधन कर लिए2014 के लोकसभा चुनाव के लिए ? इतने दिन तक धर्मनिरपेक्ष रहे और आज अचानक से सांप्रदायिक लोगों के साथ हो लिए। क्या समझाइएगा अपने वोटर को ? मुस्लिम मतदाता को क्या समझाइएगा। सब लोगों को आपसे कितना उम्मीद था। अभी पिछले महीने तक आप सांप्रदायिक ताकतों को खूब गरियाते थे। अचानक सब कुछ बदल गया।
धर्मनिरपेक्ष ताकत के साथ रहते तब भी आपको उतना ही वोट मिलता लेकिन अब तो धर्मनिरपेक्षता वाला वोटर भी हाथ से गया। ऐसा थोड़े ही न है की मोदी जी अपनी पार्टी को छोड़कर चले गए हैं। जिस मोदी जी के नाम पर आप सांप्रदायिक लोगों का साथ छोड़कर गए थे उन्ही के पार्टी में रहते हुए ही आप वापस आ गए हैं। ई बात हमारे समझ से बाहर है पासवान जी।
चलिए , ई राजनीति जो न करवाये उ कम है।
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