5 फ़रवरी 2014
जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, पुराने राजनितिक दलों की नींद उड़ गयी है। हो भी क्यों नहीं 15 साल से सत्ता से दूर भाजपा हर विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार बनने से सपने देखती थी। उसको अपनी कार्यक्षमता पर हो न हो लेकिन कांग्रेस के निकम्मापन पर पूरा भरोसा था। इन 15 सालों के दौरान हमेशा ही कांग्रेस की कमियां ही जनता को बताते रहे ये लोग। कभी जनता के दुःख दर्द को दूर करने की कोशिश नहीं की।
पूरे 15 साल तक ये जनता के दिलों में कांग्रेस के प्रति गुस्सा पैदा करते रहे और हर चुनाव में इस गुस्से को अपने पक्ष में मतदान के रूप में परिवर्तित करने की कोशिश करते रहे। हर चुनाव में इनको अपनी सरकार बनती दिखती थी। इस बार दिसंबर 2013 के चुनाव में लोगों का गुस्सा कांग्रेस के प्रति चरम पर था , इनको 32 सीटें भी मिली लेकिन सरकार बन गयी "आम आदमी पार्टी " की। अब तो इनका रहा सहा सब्र भी समाप्त हो गया।
दूसरी ओर कांग्रेस को तो शासन करने कि लत सी लग गई थी, चुनाव परिणाम आते ही इनको जोर का झटका लगा। "आम आदमी पार्टी " की सरकार को समर्थन देने के अलावा इनके पास कोई चारा नहीं था। दुबारा चुनाव में जाने का मतलब था कि जो 8 सीटें मिली है, वो भी चली जाती।
लेकिन इन दोनों ही पार्टियों की बेचैनी सरकार के शपथ ग्रहण के दिन से ही साफ़ देखी जा सकती है। पहले ही दिन से सरकार हर मोर्चे पर विफल हो गयी है इन दोनों के लिए। नित नयी विफलता दिखती है इनको सरकार की। अपने किसी भी वादे को सरकार पूरा नहीं कर पाई है इनकी नजर में। भाजपा वाले तो किसी भी तरह से सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं। उनको लगता है कि जल्दी से चुनाव करवा लिए जायेंगे तो 70 की 70 सीटें इनकी झोली में आ जाएंगी।
अरे, कोई भी सरकार 5 साल के लिए बनती हैं और उन्हीं 5 सालों में उसको अपने वादे पूरे करने होते हैं। लेकिन कौन समझाए इस खुद को सबसे समझदार समझने वाली पार्टी के समझदार नेताओं को ?
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