13 फ़रवरी 2014
यही कह रहे हैं दिल्ली के कुछ लोग अपने नए मुख्यमंत्री जी से। दिल्ली में आज कोई पहली सरकार नहीं बनी है या फिर पहला मुख्यमंत्री नहीं हुआ है केजरीवाल। महँगाई बढ़ती गयी, भरष्टाचार बढ़ता गया, किसी की हिम्मत नहीं हुई कि इसका मुखर विरोध कर सके। लोग आज तक फूल और हाथ वाले द्वारा शासित होने के साथ शोषित भी हो रहे थे। लेकिन किसी की हिम्मत उनका विरोध करने की नहीं हुई। आज झाड़ू वाले ने अन्याय का विरोध करने की अलख क्या जगा दी, लगे इसी का विरोध करने।
जब दिल्ली की जनता बिजली के अनाप शनाप बिलिंग से परेशान थी, तब किसी में हिम्मत नहीं थी इसका विरोध करने की। लोग अपनी किस्मत के साथ साथ सरकार एवं बिजली कम्पनियों को कोसते लेकिन साथ ही साथ भारी भड़कम बिल को चुकाते भी थे। कोई दूसरा चारा जो न था। इसी बीच केजरीवाल जी ने बिजली कम्पनियों की मनमानी के खिलाफ आंदोलन चलाया और जनता को लगा कि कोई है जो उनके दर्द को समझता है।
उन्होंने कहा कि बिजली बिल देना बंद कर दो या फिर आधे ही भरो। उन्होंने जनता से वादा भी किया कि जब उनकी सरकार आएगी तो जो लोग बिल नहीं भरेंगे उनका बिल माफ़ कर दिया जाएगा। तब किसी को एतराज नहीं था। यह वादा संवैधानिक है या नहीं इसकी भी किसी को फ़िक्र नहीं थी। जब सरकार बनी तो विपक्षी दलों के साथ साथ जनता के दबाव भी बढ़ते गए की जिन लोगों ने तुम्हारे पर भरोसा करके अपना बिजली बिल नहीं भरा उसके बिल माफ़ करो। इसमें देरी के लिए विपक्षी दल सरकार की बुराई जम के कर रहे थे।
अब जबकि वादा निभा दिया गया है तो फिर भी कुछ लोगों के साथ साथ विपक्षी दलों को बुरा लग रहा है। कह रहे हैं ऐसे अराजकता आ जायेगी। तुम सरकारी खजाना और देश की जनता की खून पसीने की कमाई को बर्बाद कर रहे हो।मतलब कि चित भी मेरी पट भी मेरी। कह रहे हैं कि ऐसी राहत देनी है तो अपने पार्टी फंड के पैसे से दो। अरे भैया, पार्टी फंड से राहत देने का वादा थोड़े ही न किया गया है। पैसे तो सरकारी ही खर्च होंगे।
मान लो अगर पार्टी फंड से खर्च कर दिया तो तुम्हीं लोग कहोगे कि चंदा चुनाव लड़ने के लिए दिया था इस तरह लुटाने के लिए नहीं। तुमको तो तभी सुकून मिलेगा जब केजरीवाल अपनी जायदाद बेचकर चुनावी वादे पूरे करे। अरे, तब भी सुकून नहीं मिलेगा कुछ लोगों को, कहेंगे कि केजरीवाल अपने मासूम बच्चों का हक़ मार रहा है।
एक पिता - पुत्र और उसके गधे की कहानी आप लोगों ने सुनी होगी, बिलकुल सटीक बैठती है इस अवसर पर।
उन्होंने कहा कि बिजली बिल देना बंद कर दो या फिर आधे ही भरो। उन्होंने जनता से वादा भी किया कि जब उनकी सरकार आएगी तो जो लोग बिल नहीं भरेंगे उनका बिल माफ़ कर दिया जाएगा। तब किसी को एतराज नहीं था। यह वादा संवैधानिक है या नहीं इसकी भी किसी को फ़िक्र नहीं थी। जब सरकार बनी तो विपक्षी दलों के साथ साथ जनता के दबाव भी बढ़ते गए की जिन लोगों ने तुम्हारे पर भरोसा करके अपना बिजली बिल नहीं भरा उसके बिल माफ़ करो। इसमें देरी के लिए विपक्षी दल सरकार की बुराई जम के कर रहे थे।
अब जबकि वादा निभा दिया गया है तो फिर भी कुछ लोगों के साथ साथ विपक्षी दलों को बुरा लग रहा है। कह रहे हैं ऐसे अराजकता आ जायेगी। तुम सरकारी खजाना और देश की जनता की खून पसीने की कमाई को बर्बाद कर रहे हो।मतलब कि चित भी मेरी पट भी मेरी। कह रहे हैं कि ऐसी राहत देनी है तो अपने पार्टी फंड के पैसे से दो। अरे भैया, पार्टी फंड से राहत देने का वादा थोड़े ही न किया गया है। पैसे तो सरकारी ही खर्च होंगे।
मान लो अगर पार्टी फंड से खर्च कर दिया तो तुम्हीं लोग कहोगे कि चंदा चुनाव लड़ने के लिए दिया था इस तरह लुटाने के लिए नहीं। तुमको तो तभी सुकून मिलेगा जब केजरीवाल अपनी जायदाद बेचकर चुनावी वादे पूरे करे। अरे, तब भी सुकून नहीं मिलेगा कुछ लोगों को, कहेंगे कि केजरीवाल अपने मासूम बच्चों का हक़ मार रहा है।
एक पिता - पुत्र और उसके गधे की कहानी आप लोगों ने सुनी होगी, बिलकुल सटीक बैठती है इस अवसर पर।
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