4 फ़रवरी 2014
पिछले कुछ सालों से गानों के बोल में लड़के लड़कियों के नाम को शामिल करने की प्रथा सी चल पड़ी है। जैसे मुन्नी बदनाम हुई, शीला की जवानी, चिकनी चमेली पौआ चढ़ा के आई, पप्पू कान्ट डांस साला इत्यादि। लोग तो इन गानों पर ठुमके लगा लेते हैं, गुनगुना लेते हैं। गाना हिट हुआ तो गाने एवं फ़िल्म से जुड़े लोगों कि चाँदी हो जाती है।
लेकिन इन गानों में प्रयुक्त नाम वाले इंसान पर क्या बीतती है ये किसी ने सोचा है ? कुछ शरारती लोग उनको यही गाना गा गाकर छेड़ते हैं। या फिर उनको चिढ़ाने के लिए यही गाना बजा देते हैं । अगर यह नाम लड़की का हो तो और भी मुश्किल है। उसका तो जीना हराम कर देते हैं लोग।
कई बार ग़लतफ़हमी भी हो जाती है। गाना गाने वाले या फिर बजाने वाले को उसका नाम बेशक नहीं पता हो लेकिन सुनने वाले को यही लगता है कि यह गाना उसी तो टारगेट करके सुनाया जा रहा है। अगर वह व्यक्ति इस तरह की हरकतों से बहुत परेशान है तो बात मार पीट और गाली गलौज तक भी पहुँच जाती है।
हरकतें बढ़ने लगे तो इंसान अवसाद में भी चला जाता है। आखिर इस तरह के गाने बनाये ही क्यों जाते हैं जिससे किसी को इस तरह की मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़े ? ऐसे में हताश होकर अगर कोई आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठा लेता है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी ? आखिर अपने मनोरंजन के लिए या फिर पैसा कमाने के लिए दूसरे को परेशान करना कितना जायज है ?
मुझे भी यह बात तभी महसूस हुई जबसे यह नया नवेला गाना आया है। ..........
" आज तो बबलू हैप्पी है "
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