26 नवम्बर, 2013
बड़े जोर शोर से स्टिंग ऑपरेशन करवाया आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों का " मीडिया सरकार " ने। ऐसा लगा कि भारत की नहीं तो कम से कम दिल्ली की राजनीति में भूचाल तो आ ही जायेगा। बड़े दम ख़म से अपनी और अपने उम्मीदवारों की ईमानदारी का ढोल पीटते थे आम आदमी पार्टी के लोग, अब आ जायेंगे औकात पर जब चारों ओर इनकी थू थू होगी। जो लोग इनके समर्थन में झाड़ू लहराते हुए चलते थे अब वो ही लोग इनको इस झाड़ू से पीटेंगे। ऐसा हो सोचा होगा इस स्टिंग को करवाने वाले और अपने चैनेल पर दिखाने वालों ने। लेकिन नतीजा क्या निकला ? बाबाजी का ठुल्लू।
स्टिंग
की विडियो को देखने पर पहली ही नजर में ऐसा लगता था जैसे पूरी बात नहीं
दिखायी जा रही है। बीच बीच के संवाद कटे हुए हैं ऐसा लग रहा था। जितने भी
उम्मीदवार कि पास पुरुष रिपोर्टर गया , हर जगह एक ही बात, मामाजी ने पैसे
दे रखे हैं। साफ़ दिख रहा था कि भावना जी उसको भगा सी रही हैं, लेकिन यह तो
पीछा छोड़ने को ही राजी नहीं था। और जैसे छोटी कक्षा के बच्चे को कुछ कहा
जाता है कहने को तो वो आपकी नहीं सुनता, बस 1 से 100 तक की गिनती सुनाता
रहता है। ठीक वैसे ही रटे-रटाये संवाद को बोलने का काम पूरा करना था इस
रिपोर्टर को, बेशक कोई सुने या न सुने। कहीं से भी यह स्टिंग, विश्वसनीय
नहीं लग रहा था।
और
हुआ भी यही , जब असंपादित टेप मांगी गयी तो देने से इंकार। फिर तो पक्का
हो गया कि चोर की दाढ़ी में तिनका है। लेकिन वही जब चुनाव आयोग का डंडा पड़ा
तो देना पड़ा, और असलियत सामने आ ही गयी। बार बार आम आदमीं पार्टी के लोग
इस रिपोर्टर को भगाने में, टरकाने में लगे हैं लेकिन ये अपनी ढिठाई से बाज
नहीं आ रहा है। जी हम आपको सपोर्ट करेंगे, पैसे देंगे और आदमी भी भेजेंगे
चुनाव के लिए। और इन सब बातों का अपनी तरफ से मनमर्जी मतलब निकाल कर स्टिंग
की विडियो लोगों को दिखा दी।
चैनेल
भी टी आर पी के चक्कर में खूब नमक मिर्च लगाकर विश्लेषण करके दिखता रहा।
लेकिन नतीजा, वही बाबा जी का ठुल्लू। जितनी फ़जीहत इस स्टिंग ऑपरेशन से
जुड़े लोगों की हुई है, उतनी हिन्दुस्तान की पत्रकारिता के इतिहास में कभी
किसी कि नहीं हुई। और तो और, मशहूर कवि श्री कुमार विश्वास जी को भी लपेटे
में लेने कि कोशिश की इन लोगों। इनसे बहस करने में राजनीति के बड़े बड़े
योद्धा एवं वक्ता पनाह मांगते हैं , ये आम आदमीं पार्टी के न तो सदस्य हैं
और न ही उम्मीदवार लेकिन, आकाओं का आदेश रहा होगा, पहुँच गए इनको भी
लपेटने। लेकिन ये नहीं सोचा होगा कि इनको फंसाने के चक्कर में खुद ही फँस
जायेंगे।
जब
पूरी विडियो में यह बिलकुल प्रतीत होता है कि जिनको फंसाने की कोशिश कर
रहे हैं वो नहीं फँस पाए हैं , तो जरूरी था इसका प्रसारण करवाना ? बस अपने
काम की चीजें रहने दिया और बाकी कुछ हटा दिया। इसको छोड़ देते , फिर से
दुबारा कोशिश करते। लेकिन, इनको तो जल्दी थी की किसी तरह चुनाव से पहले
दिखा दें। चलो स्टिंग करने वालों या करवाने वालों की रेप्यूटेशन जैसी भी
हो , लेकिन दिखाने वाले चैनेल को तो अभी अपनी रेप्यूटेशन बनानी है। कुछ तो
सोचा होता, कुछ तो दिमाग लगाया होता।
पैसा प्रतिष्ठा से बड़ा होता है क्या ????????
पैसा प्रतिष्ठा से बड़ा होता है क्या ????????
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