26 सितम्बर, 2013
आज कल चुनाव का दौर है. जी भर के उपहार बांटे जा रहे हैं। सत्ताधारी दल के पास अभी ही बांटने के लिये बहुत कुछ है, और विपक्षी दल सरकार में आने के बाद बांटने का वादा कर रही है। लेकिन इस तरह के उपहार से जनता की जिंदगी संवर जायेगी क्या? तरह तरह के योजनाओं की घोषणा की जा रही है। किसी को 200, किसी को 400, किसी को 600 तो किसी को 1500 रुपये तक प्रति माह देने की बात की जा रही है। लेकिन क्या इतने पैसे से इस कमर तोड महंगाई में गुजारा संभव है ? आखिर किस भ्रम में हैं, नेता लोग ? इससे जनता खुशहाल हो जायेगी ?
सरकार इतने सारी योजनायें लाती हैं, कुछ बुजुर्गों के लिये, कुछ गरीबी रेखा के नीचे के परिवार के लिये, कुछ महिलाओं के लिये, कुछ लड़कियों के लिये, कुछ छात्रों के लिये, कुछ छात्राओं के लिये, कुछ अल्पसंख्यकों के लिये, कुछ . . . . . . . . कितना लिखूं, शायद ही कोई होगा जिसके लिये सरकार कोई योजना नही लाती। लेकिन उस योजना का लाभ कितने जरूरतमंदों को मिल पता है ? आजादी के बाद से इतने सारी योजनायें चलाई जा रही है कि अगर इसका लाभ ईमानदारी से सच्चे जरूरतमंदों को मिल पाती तो, सारी योजनाओं की जरूरत कब की खत्म हो चुकी होती। लेकिन अगर गरीबी खत्म हो गयी तो गरीबी खत्म करने के नाम पर वोट कौन देगा?
अभी खाद्य सुरक्षा योजना आई है, दिल्ली और कुछ कांग्रेस शासित प्रदेश जहां चुनाव होने वाले वहां लागू भी हो गयी है. इसमें 2 रुपये प्रति किलो गेंहू और 3 रुपये प्रति किलो चावल दिये जा रहे हैं लेकिन 25 किलो ही मिलेगा। सरकार को लगता है कि जनता खुश हो गयी, अब उनके ही गुण गायेगी, और फिर से सत्ता में वापस लायेगी। अब लाभ प्राप्त करने वालों को क्या लगता है ये तो वो ही जाने।
इतनी सारी योजनाओं पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च किये जा रहे हैं। इन पैसे से सरकार कितने सारे कल कारखाने खोल सकती है जिससे चँहुमुखी विकास हो सकता है। सरकार को राजस्व की भी प्राप्ति होगी, लोगों को नौकरी मिलेगी और सम्मानजनक मेहनताना मिलेगा और सरकार को मुफ्त पैसे बांटने भी नहीं पड़ेंगे। लेकिन भ्रष्टाचारिओं को कुछ नही मिल पायेगा। फिर भ्रष्टाचार हटाने, गरीबी मिटाने, हक दिलाने के नाम पर वोट कैसे मांगे जा सकेंगे?
पिछली बार नरेगा (रोजगार गारंटी योजना ) लाई थी केन्द्र सरकार, आम चुनाव से ठीक पहले। लोगों को लगा था कि उसमें अच्छा मेहनताना मिलेगा और सम्मानजनक ज़िदगी गुजर हो सकेगी। उसी की आशातीत सफलता से उत्साहित होकर सरकार खाद्य सुरक्षा योजना के जरिये चार विधानसभा एवं आम चुनाव की वैतरणी पार करना चाहती है। लेकिन नरेगा में कार्यरत मजदूरों को जो मजदूरी मिल रही है, उसको ध्यान में रखकर कोई कभी ये सोचेगा कि इस योजना से देश से भूखमरी दूर हो जायेगी ?
लेकिन, वोटों की राजनीति जो ना करवाये वो कम है..................
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