15 जून, 2013
आज भाजपा और उसके समर्थक नीतीश जी को यही सलाह दे रहे हैं। कह रहे हैं कि बिहार में एनडीए की सरकार सिर्फ भाजपा की बदौलत ही है। अगर नीतीश जी एनडीए से बाहर गये तो 2014 के आम चुनाव में और 2015 के विधान सभा चुनाव में औकात पर आ जायेंगे। अरे भैया, इतने ही शक्तिशाली हो और जनता की नब्ज पहचानते हो तो तुम्हारी पार्टी तो जेडीयू से काफी पुरानी है। तुम क्यों नहीं आ गये अपने दम पर सत्ता में? अभी भी तुम्हारे विधायकों की संख्या उनसे कम ही है।
मोदी जी विकास पुरुष हैं इसमे कोई शक नही है। लेकिन क्या बिहार में वोटिंग सिर्फ विकास के आधार पर होती है? ऐसा होता तो क्या लालूजी 15 साल तक शासन कर पाते ? या फिर कर पाये इसका मतलब कि उन्होने बिहार मे ज्यादा विकास किया था? अगर हमारे देश में सिर्फ विकास के आधार पर वोटिंग होती तो 2004 के आम चुनाव में एनडीए की सत्ता में जोरदार वापसी होती और आज भारत का स्वरूप कुछ और ही होता। लेकिन 2004 तो छोड़िये, 2009 में भी भारत की जनता ने कांग्रेस को ही शासन करने का अधिकार दे दिया और अगर भाजपा अपने अंतर्कलह से नहीं उबरी तो 2014 के चुनाव में भी कॉंग्रेस ही बाजी मार लेगी।
बिहार में शासन करने के लिये सामाजिक ताने-बाने को समझना बहुत जरूरी है। लालू जी भी सामाजिक समीकरण के कारण ही इतने दिन सत्ता में रह पाए। नीतीश जी के साथ पिछड़ी जातियों का जबरदस्त समर्थन है। उंची जाति के लोग भी नीतीश जी से कुछ खास नफरत नहीं करते हैं। मुस्लिम समुदाय में भी ये खासे लोकप्रिय हैं। ऊपर से उन्होने जो विकास के कार्य किये हैं वो सोने में सुगंध है। उनके विकास कार्य की चर्चा देश विदेश में हो रही है। ये अलग बात है कि मोदी जी के विकास कार्य के सामने इनका कार्य थोड़ा कमतर है, यह एक अलग चर्चा का विषय है।
अब भाजपा को देख लीजिये। ये सिर्फ मोदी मोदी का जाप करके बिहार में चुनावी मैदान में कूदना चाहते हैं। इनके वोट का आधार क्या है ? बनिये और उंची जाति के लोगों में इनकी ज्यादा पैठ है। जो कट्टर हिन्दूवादी होंगे वो मोदी जी के नाम पर इनको वोट दे भी सकते हैं। लेकिन जो विकास दे नाम पर वोट देना चाहेंगे वो यह जरूर सोचेंगे कि भई नीतीश जी विकास करने में कौन सा कोर कसर छोड़े हुये हैं? फिर क्यों मोदी जी पर दाव खेलें?
ज्योंहि नीतीश जी मोदी जी के समर्थन में आयेंगे, लालू जी प्रदेश में घूम घूम कर लोगों को समझायेंगे कि देखो में ना कहता था कि जेडीयू के लोग सम्प्रदायिक ताकतों से मिले हुये हैं। अब बिहार में भी ये गुजरात की तरह दंगे करवायेंगे (बेशक अभी गुजरात दे दंगो पर फैसला नहीं आया है)।लगे हाथ दो चार और भविष्यवाणी कर देंगे, कि मोदी की तरह ये भी फासिस्ट, नाजीवादी है, आदि आदि। साथ में राम विलास जी की भी पार्टी है, वो भी अपने हिसाब से जनता को नीतीश जी के बारे में आगह करेंगे। इससे कम से कम मुस्लिम वोट का बहुत बड़ा हिस्सा तो नीतीश जी के पाले से इन दोनों की तरफ जरूर खिसक सकता है।
मतलब कुछ फायदा हो ना हो नुकसान जरूर हो जायेगा नीतीश जी का। बेचारे अभी तक अपनी सेखूलर छवि को चमका कर रखे हुये हैं (हालांकि भाजपा के साथ रह कर धर्मनिरपेक्ष कहलाना बड़ा मुश्किल होता है) ।
अब इस अवस्था में चुनरी में दाग लगेगा तो कैसे छुड़वाएंगे......
अब इस समय में अच्छा मौका है। अगर एनडीए से हट कर कांग्रेस के साथ चले जाते हैं तो कम से कम बिहार का तो भला हो ही जायेगा। विशेष राज्य का दर्जा तो मिलेगा ही, लगे हाथ दो चार अच्छे अच्छे प्रॉजेक्ट भी बिहार में आ जायेंगे। क्या पता कोल लिंकेज भी बिहार को दे दे। नई महबूबा को तो खुश करना ही पड़ता है ना, चाहे पुरानी बीवी थोड़ा नाराज ही क्यों ना हो जाये।
तो नीतीश जी, बेधडक एनडीए से बाहर हो जाओ, इसमें आपकी हो ना हो परंतु बिहार और बिहारियों का भला ही भला है. बेशक 2014 के बाद घर वापसी का मौका मिले तो कर लेना।
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