24 जून, 2013
अचानक से लोगों के सामान्य ज्ञान में वृधि हो गयी
है, आजकल एफ डी आइ का जिक्र सबकी जुबान पर है। सरकार इसके फायदे बताते
नहीं थक रही है, जबकि उसके विरोधी जनता को समझाने में लगे हैं जैसे कि ए
आतंकवाद, भूकंप, बाढ, आगलगी से भी बड़ा दुश्मन है।
सरकार में जो पार्टी रहती है वो इसका समर्थन करती है और विपक्ष में जाती
है तो इसका विरोध करने लगती है। भई विरोधी पार्टी हैं, तो सरकार के हर कदम
का विरोध ही करेगी ना, अगर नहीं करेगी तो अगली बार सत्ता में कैसे आयेगी ?
तो सरकार के हर कदम का यथासंभव विरोध करना ही विरोधी पार्टी का परम धर्म
है चाहे वो कदम सही ही क्यों ना हो। अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा साबित
करना ही तो वाक कला की निपुणता है।
हमें समझा रहे हैं कि विदेशी कॉम्पनियों के आने से हमारा घरेलू व्यापार
चौपट हो जायेगा। क्या हमारे यहाँ पहले से विदेशी कॉम्पनियाँ नहीं हैं ?
घरेलू कॉम्पनियाँ ने ही जनता का क्या भला कर दिया है ? कितनी सारे छोटे
बड़े व्यापारी हैं हिन्दुस्तान में, कितने लेबर लॉ फॉलो करते हैं ए ?
मुश्किल से आकस्मिक अवकाश देते हैं ए वो भी इस तरह से जैसे कोई अहसान कर
रहे हों। पी एल और मेडिकल लीव की तो बात ही छोड़ दीजिये। एक एक दिन के पैसे
तनख्वाह में से काटे जाते हैं अगर छुट्टी कर ली किसी कारणवश तो। उपर से
नौकरी से निकालने की धमकी तो आये दिन देते रहते हैं। शनिवार को छुट्टी कर
लो तो रविवार के भी पैसे काट लेंगे। अगर लम्बी छुट्टी कर लो किसी दुर्घटना
की वजह से या फिर घर में कोई विशेष स्थिति आ जाये, तब तो नौकरी गयी ही
समझो।
आप नौकरी खुद से छोडो या फिर वो निकाल दें उस स्थिति में पैसे लेने के
लिये कितने चक्कर काटने पड़ते हैं वो आप दिल्ली की फॅक्ट्री या दुकान में
काम करने वाले से पूछ सकते हैं। नियुक्ति पत्र कितने लोगो को मिलता है, या
तनख्वाह चेक से कितनों को देते हैं ए छोटे उद्योग धंधे वाले जिनके लिये
इतने बड़े आर्थिक सुधार की अरथी उठाने में लगे हैं लोग ए तो इनके यहाँ
नौकरी करने वाले ही जानते हैं। विदेशी कम्पनियाँ हर तरह के श्रम कानून का पालन सख्ती से करती है यह मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से कहता हूँ।
कहते हैं कि रेहडी पटरी पर सब्जी बेचने वालों, छोटे दुकानदारों को खतरा
है विदेशी निवेश से। आज भी रीटेल में कॉर्पोरेट घराना है, लेकिन वो देशी
घराना है तो इससे कोई खतरा नहीं है, उसी में विदेशी पैसा लग जायेगा तो खतरा
हो जायेगा। ए कैसा तर्क दिया जा रहा है। किसानो को भी नुकसान होने की बात
कह रहे हैं ए लोग। कहते हैं कि किसानों को उचित पैसा नहीं मिलेगा उनके
उत्पादों का। सच तो ये है कि वर्तमान स्थिति में किसानों को सबसे ज्यादा
नुकसान है। किसान दूर गांव से जैसे तैसे करके अपने उत्पाद को लेकर शहर की
बड़ी मंडी में लाता है। अब जितनी देर उसको यहाँ मंडी में रुकना होगा, गाड़ी
का खर्च बढ़ता जायेगा. इसलिये वो चाहता है कि जल्दी माल खाली हो जाये।
लेकिन इसी का फायदा उठाते हैं बीच के दलाल। वो सामान की कीमत औने पौने लगाते हैं मजबूरी में किसान को बेचना भी पड़ता है क्योंकि जितनी देर होगी उतना किसान का ही नुकसान होगा। अब ये 5 रुपये में आलू खरीद कर 20 रुपये में रेहडी वालों को बेचते हैं और रेहडी वाला 30 रुपये में हमें देता है। इसमें सरकार को क्या टैक्स मिलता है पता नहीं। तो जो भी नुकसान है वो इन बीच के दलालों का है, किसानों, उपभोक्ता या फिर रेहडी वालों का नहीं है।
लेकिन इसी का फायदा उठाते हैं बीच के दलाल। वो सामान की कीमत औने पौने लगाते हैं मजबूरी में किसान को बेचना भी पड़ता है क्योंकि जितनी देर होगी उतना किसान का ही नुकसान होगा। अब ये 5 रुपये में आलू खरीद कर 20 रुपये में रेहडी वालों को बेचते हैं और रेहडी वाला 30 रुपये में हमें देता है। इसमें सरकार को क्या टैक्स मिलता है पता नहीं। तो जो भी नुकसान है वो इन बीच के दलालों का है, किसानों, उपभोक्ता या फिर रेहडी वालों का नहीं है।
इसी दलालों की मोटी कमाई की फिक्र है हमारे राजनेता को जिसके हक की लड़ाई ये विदेशी निवेश का विरोध करके कर रहे हैं। हमारा एक उपभोक्ता, एक नौकरी पेशा, एक किसान के रूप में तो हर तरह से फायदा है. और देश का भी फायदा है कि राजस्व बढेगा।
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