28 सितम्बर, 2018
काफी दिनों से लंबित मामले में कल सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आ गया। भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को अब समाप्त कर दिया गया है। यह धारा व्यभिचार से सम्बंधित था। इस धारा के अनुसार, अगर कोई शादीशुदा महिला किसी पराये मर्द से सम्बद्ध रखती है, तो महिला का पति उस पराये मर्द पर व्यभिचार का मुकदमा कर सकता है। लेकिन महिला को दोषी नहीं माना जायेगा। एक तरह से यह धारा व्यभिचार के साथ साथ लिंग समानता से भी सम्बंधित था।
व्यभिचार तो दोनों ने ही किया, पुरुष ने भी और महिला ने भी। फिर मुकदमा सिर्फ पुरुष के खिलाफ ही क्यों ? महिला को क्यों निर्दोष माना गया ? दूसरा ये कि किसी भी बालिग महिला या पुरुष को पूरा हक़ होना चाहिए कि वह अपनी मर्जी से किसी के साथ सम्बन्ध रखे। यह धारा महिलाओं को पुरुष की संपत्ति मानने का भी एक जरिया सा हो गया था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसी बात पर जोर दिया कि शादीशुदा महिला अपने पति की संपत्ति नहीं है, इसलिए इस धारा को ख़त्म किया जाए।
हम अभी इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। हमारा समाज विकास की नित नई इबारत लिख रहा है, लेकिन आज भी अगर महिला पर पुरुष का मालिकाना हक़ हो तो यह अत्यंत ही दुखद है। इस धारा के समर्थकों का कहना है कि इससे शादी बेमायने हो जाएँगी, शादी जैसी पवित्र बंधन की पवित्रता कम हो जाएगी। लेकिन वही लोग भूल रहे हैं कि ऐसा नहीं है कि अब ये अपराध नहीं रहा तो सारे पति-पत्नी शादी की मर्यादा को ताक पर रख कर पर-पुरुष एवं पर-पत्नी संसर्ग में लिप्त हो जायेंगे। ऐसा कतई नहीं है।
जो अपनी शादीशुदा जिंदगी से संतुष्ट हैं, खुश हैं, वो क्यों विवाहेत्तर सम्बन्ध रखेंगे ? इंसान बहार ख़ुशी तभी ढूंढता है जब उसको घर में ख़ुशी नहीं मिल पाती।
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