4 जनवरी, 2018
ये मैं नहीं कह रहा लेकिन आज अधिकतर कार्यकर्ताओं के यही बोल हैं, यही उनके दिल की आवाज़ है। कल दिल्ली में राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन की आखिरी तिथि है। दिल्ली से राज्यसभा की 3 सीट है और विधानसभा में संख्या बल के हिसाब से तीनो ही सीटे आम आदमी पार्टी की झोली में जानी तय है। मतलब जिसको भी पार्टी टिकट देती है, उसका राज्यसभा तय है। कल तीन नाम पार्टी द्वारा घोषित भी कर दिए गए। इनमे से एक नाम तो प्रबल रूप से पूर्व अपेक्षित था, लेकिन बाकि के दो नाम चौंकाने वाले हैं। चौंकाने वाले इसलिए है कि राज्यसभा की सदस्यता या अन्य जनप्रतिनिधित्व का पद या फिर कोई भी पद किसी भी पार्टी द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को अनुगृहीत और पुरस्कृत करने के लिए दिया जाता है। इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी अपने पहली पंक्ति के नेताओं जैसे, आशुतोष और कुमार विश्वास को राज्यसभा भेजेगी।
लेकिन जो दो नाम सुशील गुप्ता और एन डी गुप्ता के आये हैं, इनका पार्टी से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। इनको किस लिए टिकट दिया गया ये पार्टी सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल ही जानते हैं या बता सकते हैं। कल ही पता चला कि इनमे से एक बहुत बड़े समाजसेवी, एवं शिक्षाविद हैं और दूसरे बहुत बड़े चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। इतना सुनकर किसी के मन में भी ख्याल आएगा कि अगर पार्टी से बाहर के ही व्यक्ति को टिकट देना था तो और भी विशेषज्ञ हैं देश में, उनको क्यों नहीं राज्यसभा भेजा गया ? इस बात का भी रहस्योद्घाटन कर मनीष सिसोदिया ने कर दिया। उन्होंने कहा कि रघु राम राजन और के टी एस तुलसी सहित 18 प्रसिद्ध विशेषज्ञों से राज्यसभा के लिए बातचीत की गई थी, लेकिन सब ने किसी न किसी कारण से मना कर दिया।
पार्टी के कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करके देशहित में, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को वरीयता देकर राज्यसभा भेजने की कोशिश करना बहुत बड़ी बात है। कोई भी पार्टी इस तरह का खतरा मोल नहीं लेती है, क्योंकि इससे पार्टी की रीढ़ टूटने का पूरा अंदेशा रहता है। इसके लिए अरविन्द केजरीवाल को साधुवाद। अब विशेषज्ञ राजी नहीं हुए ये दूसरी बात है। लेकिन टिकटों की घोषणा के साथ ही आम आदमी पार्टी का अंतर्कलह प्रचंड रूप से सामने आ गया। काफी दिनों से नाराज चल रहे कुमार विश्वास ने अपनी पीड़ा का वर्णन अच्छे अच्छे साहित्यिक शब्दों में किया। कहा कि मुझे मेरी शहादत मंजूर है। कार्यकर्ताओं का भी एक बड़ा वर्ग कुमार विश्वास के टिकट काटे जाने से नाराज है। जिस तरह से कुमार विश्वास पार्टी के फैसलों पर पिछले कुछ महीनो से सवाल उठा रहे थे, ऐसे में उनको पार्टी द्वारा राज्यसभा भेजा जाना नामुमकिन सा ही लग रहा था। लेकिन कुमार समर्थको को आखिरी वक्त तक उम्मीद थी। यह सर्वविदित है कि कुमार विश्वास जैसी वाक्पटुता, वाक्कुशलता पार्टी के और किसी नेता में नहीं है। लेकिन कुमार विश्वास की यही वाककला विरोधियो के बदले अपने नेताओं पर शब्द बाण चलाने लगे तो उनकी यही क़ाबलियत उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है। और यही हुआ कुमार विश्वास के साथ।
संसद में पहुँचने के बाद ये तीनो पार्टी के पक्ष में कितने तर्क रख पाते हैं, पार्टी को कितना फायदा पहुंचा पाते हैं, ये भविष्य की बात है। फिलहाल इन तीनो उम्मीदवारों को बधाई !
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