19 दिसंबर, 2017
कल गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आये। यूँ तो चुनाव हिमाचल प्रदेश में भी हुआ था और वहाँ के भी नतीजे आने थे। लेकिन नेताओं के साथ साथ मीडिया और जनता की भी रूचि गुजरात चुनाव के नतीजों में ज्यादा थी। हिमाचल प्रदेश कुछ चुनिंदा राज्यों में से है जिधर सत्ता का हस्तांतरण बारी बारी से भाजपा और कांग्रेस के बीच में होता रहता है। अत: हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार बननी लाजमी थी, और नहीं भी बनती तो अगली बार बन जाती। लेकिन गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की इज्जत का सवाल था। 22 साल के निष्कंटक राज का अगर खात्मा हो जाता तो भाजपा का मनोबल अगर टूटता नहीं तो कम जरूर हो जाता। इसके लिए दोनों तरफ से जोरदार कोशिशें भी हो रही थी। एक तरफ मोदी और अमित शाह की जोड़ी इस चुनाव को येन केन प्रकारेण भारी बहुमत से जीतना चाहती थी, तो दूसरी तरफ राहुल गाँधी भी 22 साल के राज को ख़त्म करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए थे।
2014 के आम चुनाव में केंद्र की सत्ता भाजपा के हाथो गँवाने के बाद पंजाब को छोड़कर हर चुनाव में कांग्रेस को मुंह की ही खानी पड़ी है। गोवा में तो सबसे बड़ी पार्टी बन जाने के बावजूद भाजपा वाले सत्ता चुरा कर ले गए। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का भी मनोबल दिन प्रति दिन गिरता ही जा रहा था। सारी उम्मीदे राहुल गांधी से ही थी। वैसे कांग्रेस का मतलब ही गाँधी परिवार से है, यानि की कांग्रेस और गाँधी परिवार अब एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। गुजरात चुनाव जीतने के लिए राहुल गांधी ने वह सब किया जो कर सकते थे। पाटीदार आंदोलन, दलित आंदोलन और ठाकुर आंदोलन के कर्ता धर्ता हार्दिक पटेल, जिग्नेश मवानी और कल्पेश ठाकुर को अपनी तरफ मिलाकर राहुल गाँधी ने अपनी कूटनीतिक कौशल का ही परिचय दिया है। चुनाव के आखिरी दिनों में मंदिरों में भी पूजा पाठ किया था उन्होंने।
भाजपा के लिए भी गुजरात चुनाव मान सम्मान से जुड़ा हुआ था। अगर उत्तर प्रदेश चुनाव को विपक्षियों ने नोटबंदी पर जनता के मुहर से जोड़ा था तो गुजरात चुनाव में प्रचारित किया गया कि GST से परेशान जनता भाजपा को करारा जवाब देगी। गुजरात चुनाव मोदी जी के मान सम्मान से भी जुड़ा हुआ था। अगर भाजपा की सरकार नहीं बनती तो कहा जाता कि मोदी का जादू ख़त्म हो गया है, उनकी नीतियाँ असफल साबित हुई है। इस चुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव के सेमी फाइनल के रूप में भी देखा जा रहा था। अगर भाजपा सफल नहीं होती तो लोकसभा चुनाव के लिए भी मनोबल में कमी आती। इसलिए पूरी की पूरी भाजपा, इसके सारे मंत्री और सांसद, सभी एक जूट होकर गुजरात चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने में लगे थे।
सूरत और मेहसाणा में व्यापारियों ने भी भाजपा का साथ नहीं छोड़ा। पार्टी को इन क्षेत्रो में भी जीत हासिल हुई है, जबकि कहा जा रहा था कि GST के कारण व्यापारी परेशान हैं, उनका व्यापार ठप्प हो गया है और वो भाजपा को इस चुनाव में मुंह तोड़ जवाब देंगे। अब जबकि गुजरात में एक बार फिर से भाजपा की सरकार बनने जा रही है, तो क्या समझे ? जनता GST से बहुत खुश है ? नोटबंदी से भी बहुत खुश है ? मोदी जी के वादों से भी बहुत खुश है ? मोदी सरकार के काम-काज से बहुत खुश है ? क्योंकि अगर भाजपा की हार होती तो यही बात कही जाती न कि नोटबंदी, GST, मोदी सरकार की नीतियों से परेशान जनता ने करारा जवाब दिया है। अगर हार को जनता का इन मुद्दों पर गुस्सा कहा जाता तो जीत को इन मुद्दों पर जनता की मुहर क्यों नहीं मानी जाए ?
कुछ भाजपाइयों ने भी अपना पूरा दम लगा दिया था भाजपा की हवा निकालने में। शत्रुघ्न सिन्हा कहते दिखे कि अगर ताली कैप्टन को तो गाली भी कैप्टन को। यशवंत सिन्हा ने तो चुन चुन कर सरकार की जड़ खोदने का तो जैसे बीड़ा ही उठा रखा हो। अब क्या बोलेंगे ये लोग ? या सबको जनता ने करारा जवाब दे दिया है ?
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