मुझे याद है, मुंबई के एक ऑटो ड्राइवर का चेहरा और कद काठी तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी से मिलती थी। उन्होंने अपने बाल भी महामहिम की तरह रखे थे। मीडिया वालों ने उनसे एक बार बातचीत भी की थी कैमरे पर।
उन्होंने एक बड़ी अच्छी बात कही थी, कि चूँकि मेरा हाव-भाव महामहिम से मिलता है तो मैं उनकी गरिमा का भी पूरा ध्यान रखता हूँ। कभी कोई ओछी हरकत नहीं करता, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को आँच आए।
कितने उत्तम विचार थे उनके।
आज स्थिति कितनी उल्ट हो गयी है। एक आदमी जिसको ट्वीटर पर प्रधानमंत्री जी फॉलो करते हैं, और जो इस बात का ढिंढोरा भी पीटता है, इसको बहुत बड़ी उपलब्धि भी बताता है।
क्या उसकी नैतिकता मर गयी है ? क्या उसका फर्ज नहीं कि कोई ऐसी हरकत नहीं करे, ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करे, जिससे प्रधानमंत्री जी की गरिमा को ठेस पहुँचे ?
जिस देश में अभी 2 - 4 दिन पहले ही बकरे की कुर्बानी का पुरजोर विरोध किया हो कुछ वर्ग ने, जबकि ये धार्मिक रीत है, एक संप्रदाय के त्यौहार मनाने है हिस्सा है,वहीं एक नीच मानसिकता का व्यक्ति, एक महिला को कुतिया बोलता है, उसकी मौत को कुत्ते की मौत बोलता है। उपर से प्रधानमंत्री जी द्वारा फॉलो किए जानते का दम भरता है।
क्या सोचा उसने ? ऐसी हरकत से प्रधानमंत्री जी खुश होंगे ? शाबाशी देंगे ? कल कुछ करोड़ लोगों ने ट्वीटर पर प्रधानमंत्री जी की ID को ब्लॉक कर दिया। यह सांकेतिक विरोध का माध्यम है। इससे लोगों का गुस्सा परिलक्षित होता है। लोग ऐसा करने को क्यों मजबूर हुए, इसको गंभीरता से सोचने की जरुरत है।
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