20 अगस्त, 2017
कल मुजफ्फरनगर में खतौली के पास रेल दुर्घटना हुई जिसमें बहुत से लोगों की मौत हो गई, बहुत से लोग घायल हुए। बहुत ही दुखद घटना है ये, कोशिश की जानी चाहिए कि ऐसी दुर्घटना की पुनरावृति न हो भविष्य में। खबर है कि राहत और बचाव कार्य बहुत ही तेजी से हुआ और कुछ ही घंटो में पूरा भी हो गया। सरकार या सम्बद्ध विभाग की कार्य-कुशलता और चुस्ती इसी में देखी जाती है। दुर्घटना के कारणों की अभी तक अपुष्ट खबरे ही आ रही है। कोई कह रहा है कि रेल ट्रैक पर मरम्मत का कार्य चल रहा था और ड्राइवर को इसकी खबर नहीं थी तो कोई कर रहा है कि रेल पटरी टूटी हुई थी। निश्चित रूप से ये एक ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती है। किसी की जान जाने से बड़ी कोई क्षति नहीं हो सकती।
लेकिन कुछ लोग इस पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे। ऐसे लोगों में एक पूर्व रेल मंत्री भी शामिल हैं, जिनपर खुद भ्रष्टाचार के न जाने कितने मुकदमे चल रहे हैं, शायद एक मामले में सजा भी मिल चुकी है और मामला ऊपरी अदालत में है। तनिक भी देर नहीं लगाई उन्होंने, रेल मंत्री का इस्तीफा माँगने में। कह रहे है कि रेल मंत्री दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे। जब वो खुद रेल मंत्री थे तब कहते थे कि रेल तो विश्वकर्मा भगवान चला रहे हैं। अभी पिछले दिनों ही इनके परिवार के कई सदस्यों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। इनके पुत्र और बिहार के तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे, शायद सीबीआई जांच भी शुरू हो गई, लेकिन अपने आज्ञाकारी पुत्र से इस्तीफा नहीं दिलवा पाए।
नीतिश कुमार करीब एक महीने तक इंतज़ार करते रहे, हर संभव कोशिश करके देख ली, हर उस चौखट पर गए जिससे उनको उम्मीद थी कि वो तेजस्वी को इस्तीफा देने के लिए राजी करवा पायेंगे। ताकि सरकार और नीतिश कुमार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की छवि बची रहे, धूमिल न हो। लेकिन मजाल है कि 28 साल का युवा नेता इस्तीफा देकर सरकार की किरकिरी होने से बचा ले ! उलटे दलील देते रहे कि जब का मामला है तब तो मेरी मूछे भी नहीं थी। नतीजन, मजबूरन नीतिश कुमार को भाजपा का दामन थामना पड़ा। आज उन्ही लालू प्रसाद यादव को इस्तीफा चाहिए सुरेश प्रभु का, उस प्रभु का जिसने सही मायने में रेलवे का कायाकल्प किया है। लालू जी तो आंकड़ों की बाजीगरी करके रेलवे को मुनाफा में दिखाते रहे, ऐसा उस समय विरोधी नेता बोलते थे।
सुरेश प्रभु जी ने रेलवे की परियोजनाओ के क्रियान्वयन में अभूतपूर्व तेजी लाई है। उन्ही की देन है कि एक समय में लेट-लतीफी के लिए मशहूर भारतीय रेल की गाड़ीयां अब समय पर पहुँचने लगी है। रेलगाड़ियों में सुविधाओं में वृद्धि हुई है। कभी किसी ने सोचा था कि चलती ट्रेन में बैठकर सिर्फ एक टवीट करके, चंद मिनटों में ही शिकायत दूर हो सकती है ? ऐसा सिर्फ प्रभु जी की कार्य-कुशलता और दूरदर्शिता के कारण संभव हो सका है। ऐसे प्रभु जी का इस्तीफा चाहिए। अरे, संवादहीनता में कमी थी, किसी सरकारी कर्मचारी की लापरवाही थी तो जिम्मेदार लोगो को ऐसी सजा दी जाए कि किसी की भविष्य में ऐसी लापरवाही करने की सोचने पर भी रूह काँप जाए। इस्तीफा से क्या होगा ?