14 अप्रैल, 2017
कल देश में कई निर्वाचन क्षेत्रों में हुए उप चुनाव का परिणाम आया। खबर है कि भाजपा 10 सीटों पर लड़ी थी और 5 सीटों पर विजयी हुई, कांग्रेस को भी 2 सीटों पर विजय हासिल हुई। लेकिन पूरे देश की नजर थी सिर्फ एक सीट पर जहाँ से आम आदमी पार्टी भी लड़ रही थी। दिल्ली के राजौरी गार्डन विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी हार गई और सिर्फ हारी ही नहीं बल्कि तीसरे स्थान पर रही। सिर्फ 7000 के करीब ही वोट पा सकी पार्टी। मीडिया और भाजपा-कांग्रेस के नेताओं और समर्थकों को जैसे सिर्फ इसी का इंतज़ार था। बस शुरू हो गए, आम आदमी पार्टी समाप्त हो गई, केजरीवाल को झटका आदि आदि जुमलों के साथ।
किसी को इस बात की फ़िक्र नहीं कि सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस, 8 सीटों पर हारी है। दिल्ली विधानसभा में उसके सदस्यों की संख्या शून्य है, और उसको एक सुनहरा अवसर मिला था अपना खाता खोलने का, जिससे वह बुरी तरह चूक गई। बस इनको सब्र इस बात का है कि केजरीवाल को झटका लगा, आम आदमी पार्टी अपनी सीट बचा न सकी। मानो हिंदुस्तान के लोकतंत्र के इतिहास में इससे पहले कोई पार्टी अपनी जीती सीट नहीं हारी हो। चुनावी राजनीति में हार जीत लगी रहती है। एक समय था जब 1984 से लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी भी चुनाव हार गए थे।
लेकिन उसके बाद से उसी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में 3 बार केंद्र में सरकार बनी और उसके प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बने। अभी भी केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में ही सरकार है और देश के कई राज्यों में भी इनकी सरकार है। इसलिए कुछ चुनाव हार जाने से कोई पार्टी ख़त्म नहीं हो जाती और इसकी भविष्यवाणी अभी से करना भी बिल्कुल बेमानी है। अगर यही तर्क माना जाए तो भारतीय जनता पार्टी को तो 1984 के चुनाव के बाद ही ख़त्म हो जाना चाहिए था। लेकिन अगले ही लोकसभा चुनाव में पार्टी को 86 सीटे मिली थी और उसके बाद 4 राज्यों में सरकार भी बनी थी।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "विनम्र निवेदन - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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