10 अप्रैल, 2017
बड़े-बड़े ज्ञानी विद्वान ही नहीं बल्कि अनपढ़ को भी पता है कि शराब तमाम बुराई की जड़ है। इससे बुद्धि और धन का नाश होता है। इसके चक्कर में इंसान ही नहीं उसका पूरा परिवार दुःख झेलता है। यही सोच कर बिहार में नीतीश कुमार जी ने बेहद कड़ाई से शराबबंदी लागू करवाई। अब तो एक साल भी सफलता पूर्वक व्यतीत हो गया बिहार में शराब बंदी के। सड़क शराब पीकर गाड़ी चलाने से भी सड़क दुर्घटना की बहुत सी खबरें आती रहती है। यही सोचकर शराब पीकर गाड़ी चलाने को एक जुर्म माना गया है और इसके लिए कानून में कड़ी सजा का भी प्रावधान है। फिर भी दुर्घटनाओं में कमी नहीं आ रही है।
हाइवे पर गाड़ी तेज चलती रहती है जिस कारण दुर्घटना होने के बहुत आसार होते हैं। सड़क किनारे शराब की दुकान हो तो शराब पीकर गाड़ी चलाने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है। इसी सब बातों को ध्यान में रखते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि हाइवे के आस पास शराब की कोई दुकान न हो। बस क्या था, सरकारों ने इसकी तोड़ निकालने के तरीके ढूढ़ने शुरू कर दिए। महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने सैकड़ों किलोमीटर के हाइवे को जिला, स्थानीय या फिर म्युनिसिपल सड़क में बदल दिया है।
हालाँकि की इसके पक्ष में दलीलें देने की कोशिश करके तर्क और न्यायसंगत बताने की कोशिश की जा रही है। लेकिन जनता सब समझती है। ऐसा बदलाव माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले के आने के बाद ही झटपट में क्यों हुआ ? स्पष्ट है कि न्यायालय के आदेश के कारण इन शराब की दुकानों को बंद होने से बचाने के लिए ही सरकार ऐसा कर रही है। लोगों के स्वास्थ्य और जान की कोई फ़िक्र नहीं सरकार को ? एक तो कोई सरकार खुद कठोर और कड़े निर्णय लेने से बचती रहती है और लोगों को खतरे की और धकेलती रहती है। दूसरी तरफ माननीय न्यायालय द्वारा जनहित में कड़े आदेश आते हैं तो उसको भी निर्मूल ही करने की कोशिश करती रहती है।
भगवान ही मालिक है निर्दोष और मासूम जनता का।
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