17 दिसंबर, 2016
कल संसद के दोनों सदनों को अनिश्चित काल के लिए अस्थगित कर दिया गया। इस तरह समापन हुआ संसद के शीतकालीन सत्र का। सिर्फ एक बिल पास हो सका आखिरी दिन, Rights of Persons with Disabilities Bill. इसके अलावा कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं हो सका इस पूरे सत्र में, जैसी कि खबर है। 31 दिनों में कुल मिलाकर 21 बैठकें हुई। लोकसभा में सिर्फ 19 घंटे और राज्यसभा में सिर्फ 22 घंटे ही काम हो सका। पूरे सत्र के दौरान सदन में हंगामा ही होता रहा। लगभग हर रोज ही लोकसभा और राज्यसभा अगले दिन के लिए स्थगित होती रही।
ऐसा लग रहा था कि सरकार बुरी तरह से असहाय हो चुकी है। विपक्षी दलों के सांसद हंगामा मचाते रहे, एक के एक बाद नई माँग रखते रहे। जबकि सत्ता पक्ष किसी न किसी बहाने इनकी मांगो को नजरअंदाज करता रहा, मूकदर्शक बना रहा। ऐसा प्रतीत होता रहा कि दोनों की ही मंशा नहीं थी कि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले। प्रधानमंत्री जी कहते रहे कि विपक्ष सदन नहीं चलने दे रहा है। लोकसभा में 91.59 घंटे और राज्य सभा में 86 घंटे हंगामे में बर्बाद हुए।
सदन चलाने की जिम्मेदारी किसकी है ? सत्ता पक्ष इतना असहाय कैसे हो सकता है ? क्या सरकार के पास कोई और तरीका नहीं विपक्ष के हंगामे से निपटने के, बजाय उनसे शांति के सदन चलने देने के निवेदन करने के ? सच तो ये है कि विपक्ष में रहकर भारतीय जनता पार्टी भी वही सब कर रही थी जो अब कांग्रेस कर रही है।
यही कारण है कि नरम रुख अपनाया जा रहा है विपक्षी पार्टियों के प्रति सदन में। लेकिन इन सब के बीच नुकसान किसका हो रहा है ? सिर्फ और सिर्फ जनता के पैसे बर्बाद हो रहे हैं। खबरों की माने, तो लगभग 1.5 करोड़ रुपये प्रति घंटे खर्च होते हैं सदन के संचालन में। इन सभी माननीयों को वेतन और सदन की बैठक के भत्ते तो मिलते ही रहते हैं बेशक सदन स्थगित हो जाए। मतलब कि संसद में काम हो या न हो, जनता के पैसे खर्च होने ही हैं।
क्यों नहीं मोदी सरकार ऐसा कानून बनाती है कि अगर सदन दिन भर के लिए स्थगित हो गया तो उस दिन का भत्ता नहीं मिलेगा सांसदों को ? क्यों नहीं सख्ती से निपटा जाता हंगामा करने वाले माननीयों से ? सिर्फ टिप्प्णी से क्या फर्क पड़ता है ? लेकिन बात वहीं आकर रुक जाती है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को यह रास्ता भाजपा ने ही तो दिखाया है। वरना कांग्रेस तो शुरू से ही सत्ता में रही है, विपक्ष का आचरण उसको क्या पता ? कांग्रेस तो भाजपा का ही अनुकरण कर रही है, और सत्ता पक्ष में रहकर भाजपा कांग्रेस का अनुकरण कर रही है।
जरुरत ऐसे कानून बनाए जाने की है जिससे सदन दिन भर के लिए कभी भी स्थगित नहीं हो, सिर्फ अपरिहार्य परिस्थिति को छोड़कर।
मृत्युंजय जी, आपने बहुत अच्छा लिखा है...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रश्मि जी।
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